दुर्योधन उवाच
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥
पांडुपुत्र की हे गुरुजी, सेना खड़ी विशाल।
द्रुपद पुत्र ने व्यूह रचा, बुद्धिभरी है चाल ॥1-3॥
है आचार्य! अपने बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा पाण्डवों की विशाल सेना की व्यूह रचना का अवलोकन करे।
O my teacher, behold the great army of the sons of Pandu, so expertly arranged by your intelligent disciple the son of Drupada.