सुनकर जाने हित कहाँ, सुनकर जाने पाप ।
सुनकर जाने हित-अहित, चुने उचित फिर आप ॥2.19.1.245॥
सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जणइ पावगं ।
उभयं पि जाणए सोच्चा, जं छेयं तं समायरे ॥1॥
श्रुत्वा जानाति कल्याणं, श्रुत्वा जानाति पापकम्।
उभयमपि जानाति श्रुत्वा, यत् छेकं तत् समाचरेत् ॥1॥
सुनकर ही हित और अहित का मार्ग जाना जा सकता है
और उस पर आचरण करना चाहिये।