Nectar Of Wisdom

आप भी ऐसी स्थितियों से रुबरु हुए होंगे जब दो सगे भाई या बहन आपस में लड़ रहे हैं और उनमें से एक रोने लगता है और पिता से शिकायत करता है तो पिता अपने दूसरे बच्चे का पक्ष जाने या स्थिति को जांचे बिना ही उस बच्चे को डपट देते हैं जो रोया नहीं।

जीवन में कई बार ऐसा होता है जब हम एक पक्ष को सुनकर दूसरे पक्ष के बारे में गलत धारणाएँ या राय बना लेते हैं। यदि आप गहराई में जाएंगे या दोनों पक्षों को सुनेंगे तो आप पाएंगे कि कोई एक पक्ष मात्र दोषी नहीं है, बल्कि दोनों ने गलतियाँ की हैं और अंततः जो बात आप तक पहुँची थी वह स्थिति की अतिशयोक्तिपूर्ण व्याख्या थी।

अक्सर हम भी किसी एक पक्ष के प्रति झुकाव रखते हैं अथवा जो कमजोर है उसके प्रति लगाव रखते हैं लेकिन यदि हम फैसला करते वक़्त दोनों पक्ष को नहीं सुनते हैं तो हमें बाद में पछताना पड़ सकता है। आदत बनाइए कि जब भी आप न्यायाधीश की भूमिका में हों, भले ही एक पक्ष के लिए कितनी ही सहानुभूति महसूस करें, बिना दूसरे पक्ष की सुने कोई फैसला नहीं सुनाएंगे।

बेहतर फैसला सुनाने के पांच उपाय 

  1. बेहतर फैसले के लिए धैर्य अनिवार्यतः जरुरी है।
  2. बिना आग्रह के दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए।
  3. यह जरुरी नहीं कि कमजोर ही हमेशा सही होगा।
  4. गलत और सही के बीच फैसला करना कठिन नहीं होता है, कम सही या ज्यादा सही अथवा कम गलत या ज्यादा गलत के बीच फैसले में ही कठिनाई होती है।
  5. फैसले लेते समय दिमाग में वृहद लक्ष्य होने चाहिए।

 

कहे पंच-परमेश्वर , उत्तम यही उपाय।
दोनों पक्षों की सुनें , फिर दें अपनी राय।।

 

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