Nectar Of Wisdom

कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित्  कस्यचित् रिपु:।
अर्थतस्तु   निबध्यन्ते,    मित्राणि   रिपवस्तथा॥

मीत  नहीं  कोई  यहाँ,   ना  है  शत्रु  समान।
लोग  कार्यवश  ही मिले, मित्र  ना  शत्रु  जान॥1॥

न कोई किसी का मित्र है और न ही शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं।

There is no foe and no friend here. Everyone meets with purpose.

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मूर्खशिष्योपदेशेन     दुष्टास्त्रीभरणेन        च।
दु:खितै:    सम्प्रयोगेण     पण्डितोऽप्यवसीदति ॥

ज्ञान  सिखाये  मूर्ख  को, या  पतिता  अपनाय ।
रुग्ण  दुखित  के  बीच में, पंडित भी दुख पाय ॥2॥

मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर, दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दु:खियों-रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दु:खी हो ही जाता है।

Even learned will be in pain while teaching a fool, or living with a rascal lady or among sick and miserable people.

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दुष्टा   भार्या   शठं   मित्रं  भृत्यश्चोत्तरदायक:।
ससर्पे   गृहे    वासो    मृत्युरेव   न   संशय:॥

दुष्टा  पत्नी  भ्ाूल  सखा,  सेवक  कर्कश  राग ।
सर्प  संग  घर  वास  यदि,  नि:शंक मृत्यु भाग ॥3॥

दुष्ट भार्या मित्र या, सेवक हो वाचाल, सांप वास करते जहाँ, नि:सन्देह तहँ काल।

Death is destiny if wife is malign, friend is dishonest, in-obedient servant and snake in House. Don’t doubt on this.

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धनिक:  श्रोत्रियो  राजा  नदी  वैद्यस्तु   पञ्चम:।
पञ्च  यत्र  न  विद्यन्ते  न  तत्र  दिवसे   वसेत ॥

ज्ञानी,  राजल,  सेठ,  नद,  नहीं वैद्य  हो पास।
पाँच जहाँ बसते नहीं, करें  न  इक  पल  वास ॥4॥

जहां कोई सेठ, वेदपाठी विद्वान, राजा और वैद्य न हो, जहां कोई नदी न हो, इन पांच स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।

Don’t live in a place where there is no businessman, intellectual, king, river and doctor.

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जानीयात्प्रेषणेभृत्यान्     बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे।
मित्रं   याऽऽपत्तिकालेषु   भार्यां च   विभवक्षये॥

सेवक  परखें  काम   से,  भाई   परखें  कष्ट ।
विपदा  परखें  मित्र  को, पत्नी  जब धन  नष्ट ॥5॥

किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेज़ते समय सेवक की पहचान होती है। दु:ख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है।

Employee by work, brothers in sorrow, friend in problem and wife in poverty can be tested.

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यस्मिन्  देशे  न  सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवा:।
न  च  विद्यागमोऽप्यस्ति  वासस्तत्र  न कारयेत् ॥

मान  नहीं  जिस  देश  में, अपनापन  ना पास ।
ज्ञानार्जन  सम्भव  नहीं,  तज  दें  ऐसा  वास ॥6॥

जिस देश में सम्मान न हो, जहाँ कोई आजीविका न मिले, जहाँ अपना कोई भाई-बन्धु न रहता हो और जहाँ विद्या-अध्ययन सम्भव न हो, ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए।

Don’t live in a place where you have no respect, you have no relatives and friends and education is not possible.

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माता  यस्य  गृहे  नास्ति  भार्या चाप्रियवादिनी।
अरण्यं  तेन   गन्तव्यं  यथारण्यं  तथा   गृहम्॥

माता  जिस  घर  में नहीं,  ना नारी  का मान।
ऐसे जन को  वन भला, घर  वन  एक  समान ॥7॥

जिसके घर में न माता हो और न स्त्री प्रियवादिनी हो, उसे वन में चले जाना चाहिए क्योंकि उसके लिए घर और वन दोनों समान ही हैं।

Where there is no mother or no sweet talker lady, he must go to the jungle because, for him, home and jungle are the same.

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आपदर्थे  धनं  रक्षेद्   दारान्   रक्षेद्  धनैरपि।
आत्मानं   सततं    रक्षेद्   दारैरपि   धनैरपि॥

धन  हो  आड़े  वक़्त  पे,  ऊँचा  पत्नी  स्थान।
निज रक्षा  हो सर्वप्रथम, फिर  दोनों को  जान॥8॥

विपत्ति के समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए। धन से अधिक रक्षा पत्नी की करनी चाहिए। किन्तु अपनी रक्षा का प्रश्न सम्मुख आने पर धन और पत्नी का बलिदान भी करना पड़े तो नहीं चूकना चाहिए।

Money is a must to deal with the problems but the wife is more important than money. However, if your existence is at stake than don’t hesitate to sacrifice money and wife.

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लोकयात्रा  भयं  लज्जा  दाक्षिण्यं  त्यागशीलता।
पञ्च  यत्र  न  विद्यन्ते  न   कुर्यात्तत्र  संगतिम्॥

दान त्याग भय लाज ना,  ना  व्यापारिक आस ।
जहाँ  पाँच  ये  हो  नहीं, वहाँ  न करना वास ॥9॥

जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, और लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी पांच जगहों को भी मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं चुनना चाहिए।

Don’t live at a place where you can’t earn your bread, people are not having fear and shame, sacrifice and giving a donation is not a way of life.

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आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसण्कटे।
राजद्वारे श्मशाने च यात्तिष्ठति स बान्धव:॥

व्यग्र व्यसन दुर्भिक्ष हो, दुश्मन हो या रोग।
राजपथ से श्मशान तक, खरा मित्र संजोग॥10॥

बीमार होने पर, असमय शत्रु से घिर जाने पर, राजकार्य में सहायक रूप में तथा मृत्यु पर श्मशान भूमि में ले जाने वाला व्यक्ति सच्चा मित्र और बन्धु है।

A true friend helps when you are sick, saves you from enemies, help in government work and stay together till your last rites.

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भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर वरांगना।
विभवो दानशक्तिश्च नाऽल्पस्य तपस: फलम्॥

भोजम् भोजन शक्ति या, कुलटा से संभोग।
दान – शक्ति, वैभव कभी, नहीं अल्प तप योग॥11॥

भोज्य पदार्थ, भोजन-शक्ति, रतिशक्ति, सुन्दर स्त्री, वैभव तथा दान-शक्ति, ये सब सुख किसी अल्प तपस्या का फल नहीं होते।

Good food, beautiful women, prosperity and capability to donate can not be achieved without perseverance and hard work.

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यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी।
विभवे यस्य सन्तुष्टिस्तस्य स्वर्ग इहैव हि॥

आज्ञाकारी पुत्र हो, पत्नी वेदिक चाल।
मन वैभव संतोष तो, स्वर्ग यही हर हाल॥12॥

जिसका पुत्र वश में हो, पत्नी वेदों के मार्ग पर चलने वाली हो और जो वैभव से सन्तुष्ट हो, उसके लिए यहीं स्वर्ग है।

Heaven is here for those whose son is obedient, the wife is intellectual and satisfied with prosperity.

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ते पुत्रा ये पितुर्भक्ता: स: पिता यस्तु पोषक:।
तन्मित्रं यत्र विश्वास: सा भार्या या निवृति:॥

पुत्र पिता का भक्त हो, पोषक पिता सुजान।
मीत धरे विश्वास गुण, सुख पत्नी पहचान॥13॥

पुत्र वही है, जो पिता का भक्त है। पिता वही है, जो पोषक है, मित्र वही है, जो विश्वासपात्र हो। पत्नी वही है, जो हृदय को आनन्दित करे।

A good son is devoted to father, a good father is who can feed the entire family, a good friend is who can be trusted and a good wife who can make you feel good.

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कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्ट च खलु यौवनम्।
कष्टात्कष्टतरं चैव परगृहेनिवासनम्॥

मूरखता ही कष्ट है, यौवन कष्ट समान।
परगृह में रहना पड़े, परम कष्ट यह जान॥14॥

मूर्खता कष्ट है, यौवन भी कष्ट है, किन्तु दूसरों के घर में रहना कष्टों का भी कष्ट है।

Foolishness is pain. Youthfulness is also pain but the greatest pain is to live like a guest in another’s house with insult.

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माता शत्रु पिता बैरी, जो येनवालो न पाठित:।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये वको यथा॥

मात – शत्रु बैरी पिता, जो न पढ़ाय बाल।
हंस बीच शोभा न दे, जो हो अनपढ़ चाल॥15॥

बच्चे को न पढ़ानेवाली माता शत्रु तथा पिता वैरी के समान होते हैं। बिना पढ़ा व्यक्ति पढ़े लोगों के बीच में कौए के समान शोभा नहीं पाता।

Parents are enemies if they don’t educate the child. Illiterate is like crow among goose.

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परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम्॥

छूरा भोंके पीठ पर, सम्मुख मीठा राग।
दुग्ध भेष जो विष घड़ा, इन मित्रों का त्याग॥16॥

पीठ पीछे काम बिगाड़नेवाले तथा सामने प्रिय बोलने वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे हुए विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए।

Abandon a friend, like you discard a pot full of poison but milk on top, if he is a sweet talker but back biter.

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न विश्वसेत्कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्।
कदाचित्कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत्॥

कभी न मित्र कुमित्र पर, करियेगा विश्वास।
मित्र क्रोध में कर सके, गोपनीयता हास॥17॥

कुमित्र पर विश्वास नहीं करना चाहिए और मित्र पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। कभी कुपित होने पर मित्र भी आपकी गुप्त बातें सबको बता सकता हैं।

Don’t trust bad friends and even a friend because he can reveal your secret once he is angry with you.

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मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत्।
मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्य चापि नियोजयेत्॥

मन में सोचे काम का, करना नहीं प्रचार।
गुप्त रखे मन में सदा, करें कार्य साकार॥18॥

मन में सोचे हुए कार्य को मुंह से बाहर नहीं निकालना चाहिए। मन्त्र के समान गुप्त रखकर उसकी रक्षा करनी चाहिए। गुप्त रखकर ही उस काम को करना भी चाहिए।

Don’t reveal the tasks you have thought of. Keep it a secret. Do it keeping it secret.

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शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने॥

हर परबत माणिक न दे, मिले न मणि गज पास।
चंदन हर वन में नहीं, संत न घट-घट वास॥19॥

न प्रत्येक पर्वत पर मणि-माणिक्य ही प्राप्त होते हैं न प्रत्येक हाथी के मस्तक से मुक्ता-मणि प्राप्त होती है। संसार में मनुष्यों की कमी न होने पर भी साधु पुरुष नहीं मिलते। इसी प्रकार सभी वनों में चन्दन के वृक्ष उपलब्ध नही होते।

Every mountain doesn’t have precious stones, every elephant doesn’t have Mukta mani, sages are not everywhere and every forest is not with sandalwood.

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लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणा:।
तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत्॥

दोष बढ़े बहु लाड़ से, ताड़न से ग्ाुण आय।
पुत्र – शिष्य कोई रहे, ताड़न सही उपाय॥20॥

अधिक लाड़ से अनेक दोष तथा अधिक ताड़न से गुण आते हैं। इसलिए पुत्र और शिष्य को लालन की नहीं ताड़न की आवश्यकता होती है।

Too much love results in bad qualities hence the child and students need to be disciplined.

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बलं विद्या च विप्राणां राज्ञ: सैन्यं बलं तथा।
बलं वित्तं च वैश्यानां शूद्राणां च कनिष्ठता॥

ब्राह्मण बल विद्या रहे, सेना राजन शान।
वैश्य बने धन से बली, सेवा शूद्रक मान॥21॥

विद्या ही ब्राह्मणों का बल है। राजा का बल सेना है। वैश्यों का बल धन है तथा सेवा करना शूद्रों का बल है।

Education is strength for Brahmans, the army is the strength of the king, money is the strength of vaishyas and service is the strength of Sudras.

दुराचारी च दुर्द़ृष्टिर्दुराऽऽवासी च दुर्जन:।
यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नर: शीघ्र विनश्यति॥

दुराचार या दुष्टता, दुर्जन की पहचान।
मैत्री इनसे जो करे, पतन सुनिश्चित जान॥22॥

दुराचारी, दुष्ट स्वभाववाला, बिना किसी कारण दूसरों को हानि पहुँचानेवाला तथा दुष्ट व्यक्ति से मित्रता रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाते है क्योंकि संगति का प्रभाव बिना पड़े नहीं रहता है।

Even a good person is destroyed if he keeps the company of bad people.

समाने शोभते प्रीती राज्ञि सेवा च शोभते।
वाणिज्यं व्यवहारेषु स्त्री दिव्या शोभते गृहे॥

मैत्री हो सम – भाव में, सेवा पालनहार।
उद्यम शोभा वैश्य की, घर की शोभा नार॥23॥

समान स्तरवालों से ही मित्रता शोभा देती है । सेवा राजा की शोभा देती है। वैश्यों को व्यपार करना ही शोभा देता है। शुभ स्त्री घर की शोभा है।

Friendship is better in the same status. Service is good to an employer. Enterprise is good for businessman and woman increases the grace of home.

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यो ध्रुवाणि परित्यज्य ह्यध्रुवं परिसेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव तत्॥

जो निश्चित को छोड़कर, ढुलमुल करता ध्यान।
निश्चय अपना नष्ट करे, अंत अनिश्चित जान॥24॥

जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का सहारा लेता है, उसका निश्चित भी नष्ट हो जाता है। अनिश्चित तो स्वयं नष्ट होता ही है।

Who abandons permanent and take the support of temporary, his permanent get destroyed and temporary will destroy at its own.

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वरयेत्कुलजां प्राज्ञो निरूपामपि कन्यकाम्।
रूपवतीं न नीचस्य विवाह: सद़ृशे कुले॥

वरिये समकुल नार को, भले रंग ना रूप।
बंध न छोटों से करे, जीवन हो विद्रूप॥25॥

बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह रूपवती न होने पर भी कुलीन कन्या से विवाह कर ले, किन्तु नीच कुल की कन्या यदि रूपवती तथा सुशील भी हो, तो उससे विवाह न करे, क्योंकि विवाह समान कुल में ही करना चाहिए।

Intelligent shall marry in the same race even if the girl is not beautiful

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कस्य दोष: कुले नास्ति व्याधिना को न पीडित:।
व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम्॥

दोष किस कुल में नहीं, किसे नहीं है रोग।
कौन व्यसन से मुक्त यहाँ, किसे सदा सुख योग॥26॥

किसके कुल में दोष नहीं होता? रोग किसे दु:खी नहीं करते? दु:ख किसे नहीं मिलता और निरंतर सुखी कौन रहता है अर्थात कुछ न कुछ कमी तो सब जगह है और यह एक कड़वी सच्चाई है।

Whose clan is not tainted? Who is not painful due to illness? Who is not having pain in life and who remain always happy? Some or other deficiency is everywhere and this is the truth of life

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आचार: कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम्।
सम्भ्रम: स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम्॥

कुल का परिचय आचरण, भाषा देश विधान।
आदर प्रेम प्रतीक है, भोजन तन का मान॥27॥

आचरण से व्यक्ति के कुल का परिचय मिलता है। बोली से देश का पता लगता है। आदर-सत्कार से प्रेम का तथा शरीर को देखकर व्यक्ति के भोजन का पता चलता है।

Behavior reflects clan, language reveals country, hospitality indicates love and body reflects food habits.

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सकुले योजयेत्कन्या पुत्रं पुत्रं विद्यासु योजयेत्।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत्॥

कन्या ब्याहें उच्च कुल, उत्तम ज्ञान सुपुत्र।
व्यसन लिप्त शत्रु रहे, जुड़े धर्म से मित्र॥28॥

कन्या का विवाह किसी अच्छे घर में करना चाहिए, पुत्र को पढ़ाई-लिखाई में लगा देना चाहिए, मित्र को अच्छे कार्यो में तथा शत्रु को बुराइयों में लगा देना चाहिए। यही व्यवहारिकता है और समय की मांग भी।

Give daughter to the good clan. Give education to son. Bad vices good for the enemy and engage a friend in good work.

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दुर्जनेषु च सर्पेषु वरं सर्पो न दुर्जन:।
सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे – पदे॥

चुनिए दुर्जन – सर्प में, सर्प उचित आधार।
पग-पग पे दुर्जन डसे, साँप एक ही बार॥29॥

दुष्ट और साँप, इन दोनों में साँप अच्छा है, न कि दुष्ट । साँप तो एक ही बार डसता है, किन्तु दुष्ट तो पग-पग पर डसता रहता है।

Between scoundrel and snake, the snake is better. The snake will bite once but scoundrel will give you pain again and again.

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एतदर्थ कुलीनानां नृपा: कुर्वन्ति संग्रहम्।
आदिमध्यावसानेषु न त्यजन्ति च ते नृपम्॥

राजन अपने साथ सदा, रखते निज समुदाय।
रहते सदा कुलीन जन, आदि – अंत सहाय॥30॥

कुलीन लोग आरम्भ से अन्त तक साथ नहीं छोड़ते। वे वास्तव में संगति का धर्म निभाते हैं। इसलिए राजा लोग कुलीन का संग्रह करते हैं ताकि समय-समय पर सत्परामर्श मिल सके।

King keeps aristocrats with him because they keep giving him advice till the end.

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प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागरा:।
सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधव:॥

सागर मर्यादा तजे, प्रलय समय जब आय।
मगर सिंधु से श्रेष्ठ जन, संकट झुका न पाय॥31॥

जिस सागर को हम इतना गम्भीर समझते हैं, प्रलय आने पर वह भी अपनी मर्यादा भूल जाता है और किनारों को तोड़कर जल-थल एक कर देता है; परन्तु साधु अथवा श्रेष्ठ व्यक्ति संकटों का पहाड़ टूटने पर भी श्रेष्ठ मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करता। अत: साधु पुरुष सागर से भी महान होता है।

Ocean can forget their limits, calamities have no control however real Sant is better than ocean who never forgets their discipline.

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मूर्खस्तु परिहर्तव्य: प्रत्यक्षो द्विपद: पशु:।
भिनत्ति वाक्यशूलेन अदृश्ययं कण्टकं यथा॥

दो पैरों का पशु समझ, मूरख का परित्याग।
शूलवचन जिसके सदा, चुभे देह में आग॥32॥

मूर्ख व्यक्ति को दो पैरोंवाला पशु समझकर त्याग देना चाहिए, क्योंकि वह अपने शब्दों से शूल के समान उसी तरह भेदता रहता है, जैसे अद़ृश्य कांटा चुभ जाता है।

Leave the fool assuming 2 legs animal. With his foolish words, he will be stinging you like an invisible thorn.

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कोकिलानां स्वरो रूपं नारी रूपं पतिव्रतम्।
विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम्॥

स्वर कोयल का रूप है, पतिव्रता सिंगार।
विद्या रूप कुरूप का, क्षमा तपस्वी सार॥34॥

कोयल का रूप उनका स्वर है। पतिव्रता होना ही स्त्रियों की सुन्दरता है। कुरूप लोगों का ज्ञान ही उनका रूप है तथा तपस्वियों का क्षमा-भाव ही उनका रूप है।

The voice of cuckoo is its beauty. Faithfulness is the beauty of women. Wisdom is the beauty of not so beautiful people and forgiveness is the beauty of Sant.

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त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥

कुल ख़ातिर तज एक को, ग्राम हेतु कुल त्याग।
राज्य हेतु तज ग्राम को, आत्म हेतु भूभाग॥35॥

व्यक्ति को चाहिए की कुल के लिए एक व्यक्ति को त्याग दे। ग्राम के लिए कुल को त्याग देना चाहिए। राज्य की रक्षा के लिए ग्राम को तथा आत्म के लिए संसार को भी त्याग देना चाहिए।

Sacrifice one person to save the clan, sacrifice one family to save the village. Sacrifice one village to save the country but to give meaning to soul one shall not hesitate to ignore the world.

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उद्योगे नास्ति दारिद्रयं जपतो नास्ति पातकम्।
मौनेन कलहो नास्ति जागृतस्य च न भयम्॥

दरिद्रता उद्योग से, जप से मिटता पाप।
मौन मिटाए कलह को, जागृत निर्भय आप॥36॥

उद्यम से दरिद्रता तथा जप से पाप दूर होता है। मौन रहने से कलह और जागते रहने से भय नहीं होता।

Enterprise wipe poverty, prayer removes sins, silence stops fights and awaken becomes fearless.

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अति रूपेण वै सीता चातिगर्वेण रावण:।
अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्॥

रूप अति सीय का हरण, गर्वित रावण हार।
अधिकदान से बलि छला, अति वर्जित हर द्वार॥37॥

अधिक सुन्दरता के कारण ही सीता का हरण हुआ था, अति घमंडी हो जाने पर रावण मारा गया तथा अत्यन्त दानी होने से राजा बलि को छला गया। इसलिए अति सभी जगह वर्जित है।

Sita got kidnapped because of her excess beauty and Ravan was killed because of excess proud. King Bali deceived because he was an excessive philanthropist hence excess of everything is poison.

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को हि भार: समर्थानां किं दूर व्यवसायिनाम्।
को विदेश सुविद्यानां को पर: प्रियवादिनम्॥

समरथ को है भार क्या, क्यों दूरी व्यापार।
ज्ञानी को परदेश क्या, लब मीठे सब यार॥38॥

सामर्थ्यवान व्यक्ति को कोई वस्तु भारी नहीं होती। व्यपारियों के लिए कोई जगह दूर नहीं होती। विद्वान के लिए कहीं विदेश नहीं होता। मधुर बोलने वाले का कोई पराया नहीं होता।

For capable everything is light, for businessman nothing is far, for intellectual no country is foreign and for sweet talker no one is stranger.

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एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगन्धिता।
वसितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥

एक पुष्प पर्याप्त है, महके वन उद्यान।
सारा कुल रौशन करे, पुत्र एक गुणवान॥39॥

जिस प्रकार वन में सुन्दर खिले हुए फूलोंवाला एक ही वृक्ष अपनी सुगन्ध से सारे वन को सुगन्धित कर देते है उसी प्रकार एक ही सुपुत्र सारे कुल का नाम ऊंचा कर देता है।

One flower is enough to make the entire garden aromatic and one son is enough to make the entire pedigree proud.

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एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना।
दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा॥

जैसे सूखे पेड़ से, वन में संभव आग।
वैसे एक कपूत से, कुल का बिगड़े राग॥40॥

जिस प्रकार एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने पर सारा वन जल जाता है इसी प्रकार एक ही कुपुत्र सारे कुल को बदनाम कर देता है।

One dry tree is enough to burn the entire jungle and one bad son is enough to defame entire lineage.

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एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्ते च साधुना।
आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी॥

ज़्यादा एक सपूत ही, सज्जन अरु विद्वान।
रोशन कुल को जो करे, चांद रात की शान॥41॥

जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा रात की शोभा बढ़ा देता है, ठीक उसी प्रकार एक ही विद्वान-सज्जन पुत्र कुल को आह्लादित करता है।

One son is enough if he is an intelligent and good human being the same as one moon is enough to illuminate the night.

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लालयेत् पंचवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्॥

पांच वर्ष लालन करें, अनुशासन दस साल।
साल सोलवां जब लगे, रखें मित्र सी चाल॥43॥

पुत्र का पांच वर्ष तक लालन करें। दस वर्ष तक ताड़न करें। सोलहवां वर्ष लग जाने पर उसके साथ मित्र के समान व्यवहार करना चाहिए।

Love a child till the age of five, discipline for the next ten years and as soon as he enters sixteen, treat him like a friend.

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उपसर्गेऽन्यच्रके च दुर्भिक्षे च भयावहे।
असाधुजनसम्पर्के पलायति स जीवति॥

युद्ध अगर आरम्भ को, भीषण पड़े अकाल।
दुर्जन जब हो साथ में, उचित पलायन चाल॥44॥

उपद्रव या लड़ाई हो जाने पर, भयंकर आकाल पड़ जाने पर और दुष्टों का साथ मिलने पर भागजाने वाला व्यक्ति ही जीता है।

In case of riots, or severe drought, or bad people are after you, it is better to change the place to save a life.

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धर्मार्थकाममोश्रेषु यस्यैकोऽपि न विद्यते।
जन्म जन्मानि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्॥

धर्म काम अरु मोक्ष ही, जीवन का है सार।
यदि एक भी ना रहे, तो जीवन बेकार॥45॥

जिस मनुष्य को धर्म, काम-भोग, मोक्ष में से एक भी वस्तु नहीं मिल पाती, उसका जन्म केवल मरने के लिए ही होता है।

Men shall get at least one of things among righteousness (dharma), pleasures (Kaama) or liberation (moksha) otherwise his life is useless.

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मूर्खा: यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसंचितम्।
दाम्पत्यो: कलहो नास्ति तत्र श्री स्वयमागता॥

मूर्ख जहाँ पूजित नहीं, भरा धान भंडार।
कलह नहीं दम्पत्ति में, आती लक्ष्मी द्वार॥46॥

जहां मूर्खों का सम्मान नहीं होता, अन्न का भण्डार भरा रहता है और पति-पत्नी में कलह नहीं हो, वहां लक्ष्मी स्वयं आती है।

Where fools are not worshiped, stores are full of food material and couples don’t fight each other, prosperity enters without invitation.

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आयु: कर्म वित्तञ्च विद्या निधनमेव च ।
पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिन: ॥

आयु विद्या वित्त करम, या मृत्यु की बात।
पाँच सुनिश्चित जीव में, मातु गर्भ में आत॥47॥

आयु, कर्म, वित्त, विद्या, निधन ये पांचों चीजें प्राणी के भाग्य में तभी लिख दी जाती हैं, जब वह गर्भ में ही होते है।

5 things Age, destiny, wealth, wisdom and death are written when we are in the womb.

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साधुम्यस्ते निवर्तन्ते पुत्र: मित्राणि बान्धवा:।
ये च तै: सह गन्तारस्तद्धर्मात्सुकृतं कुलम्॥

साधु संगति चाह नहीं, पुत्र बन्धु और यार।
करते जो सत्संग हैं, कुल का हो उद्धार॥48॥

संसार के अधिकतर पुत्र, मित्र, भाई साधु-महात्माओं व विद्वानों आदि की संगति से दूर रहते हैं। जो लोग सत्संगति करते हैं, वे अपने कुल को पवित्र कर देते हैं।

Most of the sons, friends, and brothers of the world don’t enjoy the company of sage and intellectuals. Who enjoys such a company makes their family name famous.

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दर्शनध्यानसंस्पर्शैर्मत्स्यी कूर्मी च पक्षिणि।
शिशु पालयते नित्यं तथा सज्जनसंगति:॥

कच्छप, मादा, मीन, चिड़ी, करे बाल का पाल।
सत संगति भी आपकी, रखती सदा ख़्याल॥49॥

जैसे मछली, मादा, कछुवा और चिड़ियां अपने बच्चों का पालन क्रमश: देखकर, ध्यान देकर तथा स्पर्श से करती हैं, उसी प्रकार सत्यसंगति भी हर स्थिति में मनुष्यों का पालन करती है।

Like fish, tortoise, bird, and women take care of a child by holding properly, the same way a good company of spiritual people takes care of human beings.

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यावत्स्वस्थो ह्यय देह: तावन्मृत्युश्च दूरत: ।
तावदात्महितं कुर्यात् प्रणान्ते किं करिष्यति॥

जब तक ये तन स्वस्थ है, निज हित कर ले जाप।
मर जाने के बाद में, शेष है पश्चात्ताप॥50॥

जब तक शरीर स्वस्थ है, तभी तक मृत्यु भी दूर रहती है। अत: तभी आत्मा का कल्याण कर लेना चाहिए। प्राणों का अन्त हो जाने पर क्या करेगा? केवल पश्चात्ताप ही शेष रहेगा।

As long as you are fit, death will not come near and it is better to take knowledge of soul before death. Other death only remorse will remain.

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कामधेनुगुणा विद्या ह्ययकाले फलदायिनी।
प्रवासे मातृसदृशा विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्॥

कामधेनु सी है विद्या, दु:ख में दे फलदान।
माँ सी रहे प्रवास में, धन ज्यों छिपे समान॥51॥

विद्या कामधेनु के समान गुणोंवाली है, बुरे समय में भी फल देनेवाली है, प्रवास काल में माँ के समान है तथा गुप्त धन है।

Education is having qualities like kamdhenu cow (who can fulfill all desires). Education is very useful in bad time, it is like a mother in a foreign country and it’s like a secret treasure.

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श्लोकेन वा तदर्धेन तदर्धार्धाक्षरेण वा।
अबन्ध्यं दिवसं कुर्याद्दानाध्ययनकर्मभि:॥

इक दिन भी जाया नहीं, किया नहीं अभ्यास।
पाव, आधा, श्लोक ग्ाुनें, या अक्षर आभास॥52॥

ऐसा एक भी दिन नहीं जाना चाहिए जब आपने एक श्लोक, आधा श्लोक, चौथाई श्लोक, या श्लोक का केवल एक अक्षर नहीं सीखा हो।

Let not a single day pass without your learning a verse, half a verse, or a fourth of it, or even one letter of it.

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मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वर:।
मृत: स चाल्पदु:खाय यावज्जीवं जडो दहेत्॥

मूरख पुत्र चिरायु अगर, मृत्यु हरे संताप।
मृत्यु क्षणिक ये दु:ख रहे, जिन्दा हर पल पाप॥53॥

मूरख पुत्र चिरायु होने से, मर जाना अच्छा है, क्योंकि ऐसे पुत्र के मरने पर एक ही बार दु:ख होता है, जिन्दा रहने पर वह जीवन भर जलाता रहता है।

If the son is a fool, long life is not good for him. If he dies, sorrow will be for few days only otherwise the whole life will be suffering.

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कुग्रामवास: कुलहीन सेवा कुभोजन क्रोधमुखी च भार्या।
पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्॥

क्रोधित पत्नी, सेवक-दुष्ट, रहे कुवास, कुभोज।
मूर्ख सुत, बेटी विधवा, जले अगन बिन रोज़॥54॥

दुष्टों के गावं में रहना, कुलहीन की सेवा, कुभोजन, कर्कशा पत्नी, मुर्ख पुत्र तथा विधवा पुत्री ये सब व्यक्ति को बिना आग के जला डालते हैं।

Living in a village with evil people, serving rascals bad food, evil wife, fool son and widow daughter leads to a miserable life.

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किं तया क्रियते धेन्वा या न दोग्ध्रो न गर्भिणी।
कोऽर्थ: पुत्रेण जातेन यो न विद्वान्न भक्तिमान॥

नहीं दुधारू गर्भिणी, धेनु भला किस काम।
नहीं विद्वता भक्ति नहीं पूत जन्म नाकाम॥55॥

उस गाय से क्या करना, जो न दूध देती है और न गाभिन होती है। इसी तरह उस पुत्र के जन्म लेने से क्या लाभ, जो न विद्वान हो और न ईश्वर का भक्त हो।

The cow is of no use if it can’t give milk or it can’t be pregnant. The same way the son who is neither intellect nor devotee is of no use.

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संसारातपदग्धानां त्रयो विश्रान्तिहेतव:।
अपत्यं च कलत्रं च सतां संगतिरेव च॥

सांसारिक इस ताप में, त्रिजन देत आराम।
सुजन – संगति, पतिव्रता, संतति इनके नाम॥56॥

सांसारिक ताप से जलते हुए लोगों को तीन ही चीजें आराम दे सकती हैं – सन्तान, पत्नी तथा सज्जनों की संगति।

Three things can give relief in this miserable world. Wife, children, and the company of good people.

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एकाकिना तपो द्वाभ्यां पठनं गायनं त्रिभि:।
चतुर्भिगमन क्षेत्रं पञ्चभिर्बहुभि रणम्॥

तप एकल, दो में पठन, गायन में हों तीन।
पाँच खेत, चारो सफ़र, युद्ध अनेकों लीन॥57॥

तप अकेले में करना उचित होता है, पढ़ने में दो, गाने में तीन, जाते समय चार, खेत में पाँच व्यक्ति तथा युद्ध में अनेक व्यक्ति होना चाहिए।

Sole in tenacity, two in the study, three for singing, four in traveling, five in the field and many for war is a batter.

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सा भार्या या सुचिदक्षा सा भार्या या पतिव्रता।
सा भार्या या पतिप्रीता सा भार्या सत्यवादिनी॥

दक्ष श्ाुचिता पतिव्रता, पत्नी की पहचान।
प्रीत पति से करे सदा, सत्य शील ग्ाुणवान॥58॥

वही पत्नी है, जो पवित्र और कुशल हो। वही पत्नी है, जो पतिव्रता हो। वही पत्नी है, जिसे पति से प्रीति हो। वही पत्नी है, जो पति से सत्य बोले।

Pure and skilled wife is best. She shall be faithful and loving to the husband. She shall be always truthful.

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अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिश: शून्यास्त्वबान्धवा:।
मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्यं दरिद्रता॥

सूना नि:संतान घर, जगत बंध्ाु बिन सून।
सूना मूरख हिय सदा, निर्धन सब विधि सून॥59॥

पुत्रहीन के लिए घर सुना हो जाता है, जिसके भाई न हों उसके लिए दिशाएं सूनी हो जाती हैं, मूर्ख का हृदय सूना होता है, किन्तु निर्धन के लिए सब कुछ सूना हो जाता है।

House is deserted without a son. Without brother, all directions are deserted. Fool’s heart is empty and for poor everything is dark.

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अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्॥

शास्त्र विष अभ्यास बिन, भोजन जहर अजीर्ण।
मरी – मरी निर्धन सभा, कु-मेल लग्न संकीर्ण॥60॥

शास्त्र बिना अभ्यास बेकार है, भोजन बदहजमी मेें ज़हर सा लगता है, निर्धनो की सभा में जान नहीं होती है और बेमेल विवाह नहीं टिकता है।

Without practice, knowledge becomes like poison. Food becomes poison whose stomach is upset. Meetings of the poor will be useless & incompatible wedding will not stay for long.

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त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या नि:स्नेहान्बान्धवांस्यजेत्॥

अज्ञानी ग्ाुरु को तजें, दया रहित तज धर्म।
तज पत्नी ग्ाुस्सैल को, बंध्ाु तजें बिन मर्म॥61॥

धर्म में यदि दया न हो तो उसे त्याग देना चाहिए। विद्याहीन गुरु को, क्रोधी पत्नी को तथा स्नेहहीन बान्धवों को भी त्याग देना चाहिए।

Leave the compassionless religion. Leave uneducated teachers. Leave angry women and leave loveless brothers.

क: काल: कानि मित्राणि को देश: को व्ययागमो:।
कस्याहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहु:॥

कौन काल कोउ मित्र है, कौन देश क्या आय।
कौन है मेरा मैं किसका, चिन्तन सदा सहाय॥62॥

कैसा समय है? कौन मित्र है? कैसा स्थान है? आय-व्यय क्या है? मैं किसका और मेरी क्या शक्ति है? इसे बार-बार सोचना चाहिए।

All the time think, whether the time is favorable or not, who are friends, the place, the income, who is useful for me and for whom I am useful.

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जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता पञ्चैता पितर: स्मृता:॥

जनम देत शिक्षित करे, उपनयन संस्कार।
पोषण या रक्षण करे, पालक पांच प्रकार॥63॥

जन्म देनेवाला, उपनयन संस्कार करनेवाला, विद्या देनेवाला, अन्नदाता तथा भय से रक्षा करनेवाला, ये पाँच प्रकार के पिता होते हैं।

There are five types of fathers. Who gives you birth or raise you, teacher, employer or who protects you.

राजपत्नी गुरो: पत्नी मित्रपत्नी तथैव च।
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैता: मातर स्मृता:॥

गुरु राजा अरु मित्र की पत्नी का सम्मान।
माँ सास निज पत्नी यहाँ, पाँचों मात समान॥64॥

राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माँ तथा अपनी माँ, ये पाँच प्रकार का माता होती है।

Queen, mother of teacher, friend’s wife, mother in law and own mother are 5 types of mothers.

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गुरुरग्निर्द्विजातीनां वर्णानां ब्राह्मणो गुरु:।
पतिरेव गुरु: स्त्रीणां सर्वस्याभ्यगतो गुरु:॥

विप्र अगन पूजा करे ब्राह्मण की नर – नार।
पति पूजन गुरुदेव सा पूज्य अतिथि संसार॥65॥

ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए। दूसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए। पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आये उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए।

Brahmin shall worship fire but all other class shall worship Brahmin. The wife shall treat husband as a teacher and the guest shall be respected by all family members.

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यथा चतुर्भि: कनकं परीक्ष्यते निर्घषणच्छेदन तापताडनै:।
तथा चतुर्भि: पुरुष: परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा॥

कटे – पिटे घिसकर तपे, कनक कसौटी चार।
त्याग शील गुण कर्म से, परखें पुरुष प्रकार॥66॥

घिसने, काटने, तापने और पीटने, इन चार प्रकारों से जैसे सोने का परीक्षण होता है, इसी प्रकार त्याग, शील, गुण, एवं कर्मों से पुरुष की परीक्षा होती है।

Gold is verified by rubbing, cutting, hitting and heating the same way a man is to be checked for sacrifice, character, qualities, and actions.

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तावद् भयेषु भेतव्यं यावद्भयमनागतम्।
आगतं तु भयं द़ृष्टवा प्रहर्तव्यमशङ्कया॥

भय का संकट है क्षणिक, जब तक है वो दूर।
आते करें प्रहार ही, रहें नहीं मजबूर॥67॥

आपत्तियों और संकटों से तभी तक डरना चाहिए जब तक वे दूर हैं, परन्तु वह संकट सिर पर आ जाय तो उस पर शंकारहित होकर प्रहार करना चाहिए उन्हें दूर करने का उपाय करना चाहिए।

One shall worry about problems as long as they are far off but once the problem comes, fight with all might.

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एकोदरसमुद्भूता एक नक्षत्र जातका।
न भवन्ति समा शीले यथा बदरिकण्टका:॥

एक कोख से जन्म हो, सम नक्षत्र विधान।
पर स्वभाव ना एक सा, कांटे – बेर समान॥68॥

एक ही उदर से, एक ही नक्षत्र में जन्म लेने पर भी दो लोगों का स्वभाव एक समान नहीं होता। उदाहरण के लिए बेर और काँटों को देखा जा सकता है।

Two-person may take birth from the same womb or have the same stars but they are different in nature same as berry and thorn.

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निस्पृहो नाधिकारी स्यान्न कामी भण्डनप्रिया।
नो विदग्ध: प्रियं ब्रूयात् स्पष्ट वक्ता न वञ्चक:॥

विषय न साथ विरक्त के, संयम को न श्रृंगार।
ज्ञानी वचन हरदम कटु, ठग ना स्पष्ट विचार॥69॥

विरक्त व्यक्ति किसी विषय का अधिकारी नहीं होता, जो व्यक्ति कामी नहीं होता, उसे बनाव-श्रृंगार की आवश्यकता नहीं होती। विद्वान व्यक्ति प्रिय नहीं बोलता तथा स्पष्ट बोलनेवाला ठग नहीं होता।

A detached person have no passions, makeup is not needed who is not sensual, intelligent may not be a sweet talker and who talks straight is not a deceiver.

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आलस्योपहता विद्या परहस्तं गतं धनम्।
अल्पबीजहतं क्षेत्रं हतं सैन्यमनायकम्॥

आलस विद्या को हरे, धन क्षय दूजे हाथ।
खेत नष्ट कम बीज से, सैन्य नष्ट बिन नाथ॥70॥

आलस्य से विद्या नष्ट हो जाती है। दूसरे के हाथ में धन जाने से धन नष्ट हो जाता है। कम बीज से खेत तथा बिना सेनापति वाली सेना नष्ट हो जाती है।

Laziness kills knowledge, money is finished on the other hand, the field destroys without seeds and the army is useless without its leader.

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अभ्यासाद्धार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते।
गुणेन ज्ञायते त्वार्य कोपो नेत्रेण गम्यते॥

विद्या झलके पाठ से, कुल का शील स्वभाव।
गुण से उत्तमता दिखे, क्रोध नेत्र में भाव॥71॥

अभ्यास से विद्या का, शील-स्वभाव से कुल का, गुणों से श्रेष्टता का तथा आँखों से क्रोध का पता लग जाता है।

Practice makes knowledge solid, good nature reflects your roots, good qualities show your superiority and eyes reveal anger.

 

वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते।
मृदुना रक्ष्यते भूप: सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम्॥

धन है रक्षक धर्म का, विद्या रक्षक योग।
राजन रक्षक मृदुलता, सदगृहिणी गृह भोग॥72॥

धन से धर्म की, योग से विद्या की, मृदुता से राजा की तथा अच्छी स्त्री से घर की रक्षा होती है।

Wealth can protect dharma, yog can protect wisdom, kind nature protect kings and good women protects home.

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दारिद्रयनाशनं दानं शीलं दुर्गतिनाशनम्।
अज्ञानतानाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी॥

घटे दरिद्री दान से, दुर्गति मिटे सुभाव।
बुद्धि हरे अज्ञान को, भय से भाव – अभाव॥73॥

दान दरिद्रता को नष्ट कर देता है। शील स्वभाव से दु:खों का नाश होता है। बुद्धि अज्ञान को नष्ट कर देती है तथा भावना से भय का नाश हो जाता है।

The donation can remove poverty, pain can be eliminated by good nature, the intellect can remove ignorance and emotions can control fear.

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नास्ति कामसमो व्याधिर्नास्ति मोहसमो रिपु:।
नास्ति कोप समो वह्नि र्नास्ति ज्ञानात्परं सुखम्॥

काम भयंकर रोग है, मोह शत्रु सम जान।
क्रोध भयंकर आग है, सुख ना ज्ञान समान॥74॥

काम के समान व्याधि नहीं है, मोह के समान कोई शत्रु नहीं है, क्रोध के समान कोई आग नहीं है तथा ज्ञान के समान कोई सुख नहीं है।

There is no disease like desires, no enemy like attachment, no fire like anger and no pleasure like wisdom.

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जन्ममृत्युर्नियत्येको भुनक्तयेक: शुभाशुभम्।
नरकेषु पतत्येक: एको याति परां गतिम्॥

जन्म मृत्यु है शाश्वत, शुभो – अशुभ निज भोग।
एकाकी है नर्क गमन स्वत: परमगति योग॥75॥

व्यक्ति संसार में अकेला ही जन्म लेता है, अकेला ही मृत्यु को प्राप्त करता है, अकेला ही शुभ-अशुभ कामों का भोग करता है, अकेला ही नरक में पड़ता है तथा अकेला ही परमगति को भी प्राप्त करता है।

A person is alone at the time of birth or death, he himself is responsible for good or bad deeds, he alone goes to hell, heaven or moksha.

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तृणं ब्रह्मविद स्वर्गं तृणं शूरस्य जीवनम्।
जिमाक्षस्य तृणं नारी नि:स्पृहस्य तृणं जगत्॥

ब्रह्मज्ञान तृण स्वर्ग को, जीवन तृण कह वीर।
नार – मोह को संयमी, जग तिनका मुनि धीर॥76॥

ब्रह्मज्ञानी को स्वर्ग, वीर को अपना जीवन, संयमी को अपनी स्त्री तथा निस्पृह को सारा संसार तिनके के समान लगता है।

Heaven is like straw for enlightened. Life is like grass for a warrior. Women have no attraction for self-contained and the world is like straw for a detached person.

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विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च।
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च॥

विद्या मित्र प्रवास में, घर में पत्नी साथ।
मित्र दवा बीमार की, मृतक धरम है नाथ॥77॥

घर से बाहर विदेश में रहने पर विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगी के लिए दवा मित्र होती है तथा मृत्यु के बाद व्यक्ति का धर्म ही उसका मित्र होता है।

Education is like a friend in the journey, the wife is a companion at home, medicine is useful to sick and dharma is a friend after death.

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वृथा वृष्टि: समुद्रेषु वृथा तृप्तेषु भोजनम्।
वृथा दानं धनाढ्येषु वृथा दीपो दिवापि च॥

वर्षा व्यर्थ समुद्र में, भोज तृप्त को व्यर्थ।
व्यर्थ धनी को दान है, दिन में दीप निरर्थ॥78॥

समुद्र में वर्षा व्यर्थ है। तृप्त को भोजन कराना व्यर्थ है। धनी को दान देना व्यर्थ है और दिन में दीपक व्यर्थ है।

Rain is useless in the ocean and food is of no use who is not hungry. The donation has no meaning to rich and candle is useless in daylight.

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नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम्।
नास्ति चक्षुसमं तेजो नास्ति चान्नसमं प्रियम्॥

बादल सा है जल नहीं, निज बल ना बलवान।
दिव्य ज्योति ना नयन सम, प्रिय ना अन्न समान॥79॥

बादल के समान कोई जल नहीं होता। अपने बल के समान कोई बल नहीं होता। आँखों के समान कोई ज्योति नहीं होती और अन्न के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं होती।

No water is better than the cloud and no power is better than own power. No light is better than the light of eyes and food is dearest to all.

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अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदा:।
मानवा: स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवता:॥

निर्धन धन है मांगता, चौपाये उच्चार।
मानव चाहे स्वर्ग को, देव मोक्ष का द्वार॥80॥

निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और चौपाये अर्थात पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं। मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा करते हैं और इस प्रकार जो प्राप्त है सभी उससे आगे की कामना करते हैं।

Poor wants money and four-legged want to speak. Human wants heaven and deity wants moksha.

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सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रवि:।
सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्॥

सच धारण धरती करे, सत्य रवि का ताप।
सत्य से ही वायु बहे, सच का सब परताप॥81॥

सत्य ही पृथ्वी को धारण करता है। सत्य से ही सूर्य तपता है। सत्य से ही वायु बहती है। सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है।

The truth is balancing earth and sunlight is due to truth. Air is blowing because of truth and everything is manifesting because of truth.

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चला लक्ष्मीश्चला: प्राणाश्चले जीवितमन्दिरे।
चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चल:॥

लक्ष्मी चंचल है सदा, चंचल है तन जीव।
चंचल नश्वर जग सखल, अटल धर्म की नींव॥82॥

लक्ष्मी चंचल है, प्राण, जीवन, शरीर सब कुछ चंचल और नाशवान है। संसार में केवल धर्म ही निश्चल है।

Money is mobile. Life is also not certain. The universe keeps changing but dharma is stable.

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श्रुत्वा धर्म विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्॥

सुनकर प्राप्ति धर्म की, सुन दुर्मति का त्याग।
सुनकर ही सज्ञान सुलभ, सुनकर मोक्ष सुभाग॥83॥

सुनकर ही मनुष्य को अपने धर्म का ज्ञान होता है, सुनकर ही वह दुर्बुद्धि का त्याग करता है। सुनकर ही उसे ज्ञान प्राप्त होता है और सुनकर ही मोक्ष मिलता है।

Dharma to be learned by listening. Wrong intellect can be improved by listening. Wisdom to be earned by listening. Liberation to be achieved by listening.

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यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवा:।
यस्यार्था: स पुमांल्लोके यस्यार्था: स च पण्डित:॥

सहज मित्र धनवान के, बन्धु-बान्धव पास।
धनिक सदा नरश्रेष्ठ है, पण्डित है वह खास॥84॥

जिस व्यक्ति के पास पैसा है लोग स्वत: ही उसके मित्र बन जाते हैं। बन्धु- बान्धव भी उसे आ घेरते हैं। जो धनवान है उसी को आज के युग में विद्वान् और सम्मानित व्यक्ति माना जाता है।

If you are rich, many will become your friends and relatives will care for you. In the current era, If you are rich people will think that you are intellectual and they will respect you too.

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तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोऽपि ताद़ृश:।
सहायास्ताद़ृशा एव याद़ृशी भवितव्यता॥

बुद्धि भाग्य अनुरूप ही, भाग्य बने व्यापार।
तद्नुरूप साथी सखा, यथा भाग्य संसार॥85॥

मनुष्य जैसा भाग्य लेकर आता है उसकी बुद्धि भी उसी समान बन जाती है, कार्य-व्यपार भी उसी अनुरूप मिलता है। उसके सहयोगी, संगी-साथी भी उसके भाग्य के अनुरूप ही होते हैं। सारा क्रियाकलाप भाग्यानुसार ही संचालित होता है।

Destiny is decided on birth. One gets intellect and enterprise accordingly. One gets relatives and friends as per destiny. Everything is controlled by destiny.

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काल: पचति भूतानि काल: संहरते प्रजा:।
काल: सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रम:॥

जीव काल के गाल में, काल जगत संहार।
काल जागता नींद से, काल की गति अपार॥86॥

काल प्राणियों को निगल जाता है। काल सृष्टि का विनाश कर देता है। यह प्राणियों के सो जाने पर भी उनमें विद्यमान रहता है। इसका कोई भी अतिक्रमण नहीं कर सकता।

Time is very powerful, it can finish all living beings. Time runs even if we are sleeping. No one can fight with time.

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स्वयं कर्म कोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विमुच्यते॥

जीव करम ख्ाुद ही करे, खुद ही भोगे भोग।
ख्ाुद भटके संसार में, स्वयं मुक्ति का योग॥88॥

प्राणी स्वयं कर्म करता है और स्वयं उसका फल भोगता है। स्वयं संसार में भटकता है और स्वयं इससे मुक्त हो जाता है।

Human does all actions himself. He has to take all the fruits. He keeps wandering in this universe. He only is responsible for liberation.

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राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्य पाप गुरुस्तथा॥

राज – पाप राजन सहे, पण्डित राजन पाप।
पत्नी पाप भोगत पति, शिष्य दे गुरु संताप॥89॥

राष्ट्र द्वारा किये गए पाप को राजा भोगता है। राजा के पाप को उसका पुरोहित, पत्नी के पाप को पति तथा शिष्य के पाप को गुरु भोगता है।

If the country makes a mistake, the king is responsible, if the king makes mistakes then his advisors are responsible. If the wife makes a mistake his husband is responsible and if the pupil make mistake then his teacher is responsible

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ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी।
भार्या रुपवती शत्रु: पुत्र शत्रु र्न पण्डित:॥

ऋणी पिता शत्रु सदा, माँ दुश्मन बदजात।
पत्नी दुश्मन रूपसी, मूर्ख पुत्र दे घात॥90॥

ऋण करनेवाला पिता शत्रु के समान होता है व्यभिचारिणी मां भी शत्रु के समान होती है। रूपवती पत्नी शत्रु के समान होती है तथा मूर्ख पुत्र भी शत्रु के समान होता है।

Borrower’s father is an enemy, the characterless mother is an enemy, a very beautiful wife is an enemy and foolish son is enemy.

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लुब्धमर्थेन गृह्णीयात्स्तब्धमञ्जलिकर्मणा।
मूर्खश्छन्दानुरोधेन यथार्थवादेन पण्डितम्॥

धन से वश हो लालची, दंभी जोड़ के हाथ
मूरख वश उपदेश के, पण्डित सच के साथ॥91॥

लालची को धन देकर, अहंकारी को हाथ जोड़कर, मुर्ख को उपदेश देकर तथा पण्डित को यथार्थ बात बताकर वश में करना चाहिए।

Greedy is controlled by money, egoist by politeness, foolish can be controlled by wisdom and intellectual by giving facts.

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कुराजराज्येन कृत: प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिवृत्ति:।
कुदारदारैश्च कुतो गृहे रति: कृशिष्यमध्यापयत: कुतो यश:॥

दुष्ट राजा प्रजा दुखी, दुष्ट मित्र अभिशाप।
दुष्टा पत्नी सुख नहीं, दुष्ट शिष्य भी शाप॥92॥

दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा सुखी कैसे रह सकती है! दुष्ट मित्र से आनन्द कैसे मिल सकता है! दुष्ट पत्नी से घर में सुख कैसे हो सकता है! तथा दुष्ट – मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से यश कैसे मिल सकता है!

If the king is a rascal, people can’t be happy. If a friend is scoundrel, you can’t enjoy. If the wife is characterless, you will have no pleasure and if a student is naughty, the teacher can’t have a good name.

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सिंहादेकं बकादेकं शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्।
वायसात्पञ्च शिक्षेच्च षट् शुनस्त्रीणि गर्दभात्॥

इक इक बगुले सिंह से, मुर्गे से गुण चार।
काग पांच – छह श्वान से, तीन गधे से सार॥93॥

मनुष्य को सिंह और बगुले से एक-एक, मुर्गे से चार, कौए से पाँच, कुत्ते से छह और गधे से तीन गुण सीखने चाहिएँ।

One shall learn one thing each from lion and bagula, four things from cock, five from crow, six from dog and three from a donkey.

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प्रभूतं कार्यमपि वा तत्पर: प्रकर्तुमिच्छति।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते॥

छोटा हो या हो बड़ा, जो भी करना काम।
लगा शक्ति अपनी सकल, गुण यह सिंह के नाम॥94॥

छोटा हो या बड़ा, जो भी काम करना चाहें, उसे अपनी पूरी शक्ति लगाकर करें? यह गुण हमें शेर से सीखना चाहिए।

Small or big one shall complete the task with full power. This one shall learn from the lion.

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इन्द्रियाणि च संयम्य बकवत्पण्डितो नर:।
देशकाल: बलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत्॥

करे इन्द्रियों को वश में, ज्यूँ बगुला कर ध्यान।
देश काल बल जानकर करते काम सुजान॥95॥

बगुले के समान इंद्रियों को वश में करके देश, काल एवं बल को जानकर विद्वान अपना कार्य सफल करें।

A wise person Control senses like heron. They act wisely after knowing the place, time and situation.

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धनधान्य प्रयोगेषु विद्या समहेषु च।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्॥

धन – अनाज का मामला, लेना हो जब ज्ञान।
भोजन या व्यवहार में, शर्म नही, सुख जान॥96॥

धन और अनाज के लेन-देन, विद्या प्राप्त करते समय, भोजन तथा आपसी व्यवहार में लज़्जा न करनेवाला सुखी रहता है।

One will remain happy if he does not hesitate In business, education, eating food, and dealings.

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सुश्रान्तोऽपि वहेद् भारं शीतोष्णं न पश्यति।
सन्तुष्टश्चरतो नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात॥

सर्द – गर्म चिंता नहीं, लेकर बोझ थकान।
संतोषी चरता रहे, यही गधे से ज्ञान॥97॥

विद्वान व्यक्ति को चाहिए की वे गधे से तीन गुण सीखें जिस प्रकार अत्यधिक थका होने पर भी वह बोझ ढोता रहता है, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति को भी आलस्य न करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति और सिद्धि के लिए सदैव प्रयत्न करते रहना चाहिए। कार्य सिद्धि में ऋतुओं के सर्द और गर्म होने का भी चिंता नहीं करना चाहिए और जिस प्रकार गधा संतुष्ट होकर जहां-तहां चर लेता है, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति को भी सदा सन्तोष रखकर कर्म में प्रवृत रहना चाहिए।

An intellectual shall learn 3 things from donkey. Untiring work towards target. Keep working without worrying weather and working with satisfaction.

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प्रत्युत्थानं च युद्धं च संविभागश्च बन्धुषु।
स्वयमाक्रम्य भोक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्॥

युद्ध तत्पर उठे समय पर, खाये जो मिल बाँट।
मार झपट्टा खाय जो, कुक्कुट ज्ञान विराट॥98॥

समय पर जागना, लड़ने को तैय्यार रहना, भाइयों को भाग देना और झपटकर खा जाना, ये चार बातें मुर्गे से सीखें।

Learn 4 things from cock. Get up on time, be ready for the fight, giving a share to brothers and grab on your own share.

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गूढ मैथुनकारित्वं काले काले च संग्रहम्।
अप्रमत्तवचनमविश्वासं पञ्च शिक्षेच्च वायसात्॥

जमाखोर सह ढ़ीठ जो, गुप्त करे संभोग।
अविश्वासी सजग सदा, काग पाँच उद्योग॥99॥

छिपकर मैथुन करना, ढीठ होना, समय-समय पर संग्रह करना, सावधान रहना और किसी पर विश्वास न करना ये पाँच गुण कौए से सीखें।

Learn 5 things from the crow. Secretly intercourse, be adamant, collecting things, be alert and don’t trust anyone.

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वह्वशी स्वल्पसन्तुष्ट: सुनिद्रो लघुचेतन:।
स्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेते श्वानतो गुणा: ॥

स्वल्प भोज संतोष दे, शयन चेतना ध्यान।
स्वामिभक्ति ओ वीरता, छह गुण रखता श्वान॥100॥

खाने को मिले तो खाना, अधिक भूखा होने पर भी थोड़े में ही सन्तोष कर लेना, गहरी नींद में होने पर भी सतर्क रहना, स्वामिभक्त होना और वीरता-कुत्ते से ये छ: गुण सीखने चाहिए।

Learn 6 things from the dog. Eat when get, satisfaction in less, sleep but alert all the time, loyalty to owner and braveness.

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अर्थनाश मनस्तापं गृहिण्याश्चरितानि च।
नीचं वाक्यं चापमानं मतिमान्न प्रकाशयेत॥

जाने पत्नी का चरित्र, मन:स्ताप आघात।
अर्थ नाश अपशब्द की, कभी न छेड़ें बात॥101॥

धन का नाश हो जाने पर, मन में दुख: होने पर, पत्नी के चाल-चलन का पता लगने पर, नीच व्यक्ति से कुछ घटिया बातें सुन लेने पर तथा स्वयं कहीं से अपमानित होने पर अपने मन की बातों को किसी को नहीं बताना चाहिए। यही समझदारी है।

Don’t broadcast followings: loss of money, own sorrow, bad character of wife, bad words of bad people and insult of self by others.

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पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं गुरुं ब्राह्मणमेव च।
नैव गावं कुमारीं च न वृद्धं न शिशुं तथा॥

पग से ना छूना कभी, गुरु ब्राह्मण अरु आग।
कन्या शिशु या वृद्ध हो, लग जाता है दाग॥104॥

आग, गुरु, ब्राह्मण, गाय, कुंआरी कन्या, बूढ़े लोग तथा बच्चों को पांव से नहीं छूना चाहिए। ऐसा करना असभ्यता है क्योंकि ये सभी आदरणीय, पूज्य और प्रिय होते हैं।

Don’t touch by feet to fire, teacher, brahman, unmarried girl, elder, and children. This will be uncivilized behavior.

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शकटं पञ्चहस्तेन दशहस्तेन वाजिनम्।
हस्तिनं शतहस्तेन देशत्यागेन दुर्जनम्॥

पांच बैलगाड़ी रहे, घोड़े से दस हाथ।
सौ हाथ गज दूर रहे, दुर्जन कभी न साथ॥105॥

बैलगाड़ी से पाँच हाथ घोड़े से दस हाथ और हाथी से सौ हाथ दूर रहना चाहिए किन्तु दुष्ट व्यक्ति से बचने के लिए थोड़ा – बहुत अन्तर पर्याप्त नहीं। उससे बचने के लिए तो आवश्यकता पड़ने पर देश भी छोड़ा जा सकता है।

One shall stay away 5 hands from ox cart, 10 hands from the horse, 100 hands from elephant but may leave even country to avoid the bad person.

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सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्य: स्वदारे भोजने धने।
त्रिषु चैव न कर्तव्योऽध्ययने जपदानयो:॥

पत्नी, भोजन, धन रहे, संतोषामृत पान।
असीमित और अनन्त हैं, जाप अध्ययन दान॥107॥

अपनी पत्नी, भोजन और धन इन तीनों में सन्तोष कर लेना चाहिए। अर्थात जो प्राप्त हो, वही पर्याप्त होना चाहिए। इसके विपरीत अध्ययन, जप और दान ये तीनों अनन्त हैं, असीमित हैं। अधिक से अधिक प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। सन्तुष्ट होकर नहीं बैठ जाना चाहिए।

One must remain satisfied and contended with spouse, food, and money however one shall always strive for unlimited learning, prayers, and donation.

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हस्ती त्वंकुशमात्रेण बाजो हस्तेन तापते।
शृङ्गीलकुटहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जन:॥

अंकुश से गज वश रहें, घोड़ा लगे लगाम।
सींग पशु को लट्ठ से, दुष्ट खड़ग से काम॥108॥

हाथी को अंकुश से, घोड़े को हाथ से, सींगोंवाले पशुओं को हाथ या लकड़ी से तथा दुष्ट को खड्ग हाथ में लेकर पीटा जाता है।

To control elephant use goad, rein for the horse, stick for animals with horns and keep sword for satan.

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नात्यन्तं सरलेन भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपा:॥

अधिक सिधाई ठीक ना, जंगल जाकर झाँक।
सीधा वृक्ष कटे प्रथम, कुबडा होय न चाक॥109॥

अधिक सीधा नहीं होना चाहिए। जंगल में जाकर देखने से पता लगता है कि सीधे वृक्ष काट लिया जाते हैं, जबकि टेढ़ा-मेढ़ा पेड़ छोड़ दिए जाते हैं।

It is not good to be too straight and simple. Look in forest, straight trees are cut first and zigzag trees are left out.

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उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम्।
तडागोदरसंस्थानां परिदाह इदाम्मससाम्॥

रक्षा धन की हो उचित, करे निरंतर त्याग।
निर्मल जल तालाब का, बहते रहना राग॥110॥

तलाब के जल को स्वच्छ रखने के लिए उसका बहते रहना आवश्यक है। इसी प्रकार अर्जित धन का त्याग करते रहना ही उसकी रक्षा है।

Safety of money is in circulation only like ever flowing water of pond is much cleaner.

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स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे।
दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी देवार्चनं ब्राह्मणतर्पणं च॥

देव बसे इस लोक मे, होते लक्षण चार।
दान नीति, वाणी मधुर, ईश्वर ब्राह्मण प्यार॥111॥

दान देने में रूचि, मधुर वाणी, देवताओं की पूजा तथा ब्राह्मणों को संतुष्ट रखना, इन चार लक्षणोंवाला व्यक्ति इस लोक में देव समान होता है।

There are 4 characteristics of God like a human on earth. They love to give, pleasant voice, worship god and keep satisfied brahman.

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अत्यन्तलेप: कटुता च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम्।
नीच प्रसङ्ग: कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम्॥

कटुता औ अति क्रोध या, स्वजन बैर कटु बोल।
कुसंगति कुलहीन सखा, रहे नर्क ही डोल॥112॥

अत्यन्त क्रोध, कटुता व वाणी की दरिद्रता, स्वजनों से वैर, नीच लोगों का साथ, कुलहीन की सेवा-नरक की आत्माओं के यही लक्षण होते हैं।

Excessive anger and bitterness, poor language and animosity with own people, service to low caste are signs of souls in hell.

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शुन: पुच्छमिव व्यर्थं जीवितं विद्यया विना ।
न गुह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे॥

पूँछ गुप्त ना अंग ढ़ँके, मच्छर काटे श्वान।
नहीं सुरक्षित मूर्ख नर, वैसे ही बिन ज्ञान॥113॥

जिस प्रकार कुत्ते की पुंछ से न तो उसके गुप्त अंग छिपते हैं और न वह मच्छरों के काटने से रोक सकती है, इसी प्रकार विद्या से रहित जीवन भी व्यर्थ है। क्योंकि विद्याविहीन मनुष्य मूर्ख होने के कारण न अपनी रक्षा कर सकते है न अपना भरण-पोषण।

Like the tail of the dog is useless, neither it can cover private parts nor it can save from mosquitos, people are useless without education. Uneducated person’s safety and survival both are stakes.

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वाचा च मनस: शौचं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
सर्वभूतदया शौचमेतचछौचं परमार्थिनाम्॥

मन वाणी पावन रहे, इन्द्रिय-सुख न विचार।
दया भाव हर जीव पर, पावन पर – उपकार॥114॥

मन, वाणी पावन रहे, इंद्रियों को निग्रह, सभी प्राणियों पर दया करना और दूसरों का उपकार करना सबसे बड़ी शुद्धता है।

Who is pure? Who has pure mind and pure words, who has control on senses, who is kind and help others selflessly.

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अधमा धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमा:।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्॥

अधम लोभ धन का करे, मध्यम धन सम्मान।
मान चाह उत्तम करे, सज्जन को धन मान॥115॥

अधम धन की इच्छा करतें हैं, मध्यम धन और मान चाहते हैं, किन्तु उत्तम केवल मान चाहते हैं महापुरुषों का धन मान ही है।

Low people desires money only. Middle people desires money and respect both but high people look for respect only. For them respect is the highest wealth.

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अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे तद् बलप्रदम्।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्तें विषप्रदम्॥

भोजन जब पचता नहीं, जल है दवा समान।
भोजन में अमृत रहे, बाद नीर विषपान॥116॥

भोजन न पचने पर जल औषधि के समान होता है। भोजन करते समय जल अमृत है तथा भोजन के बाद विष का काम करता है।

If food is not getting digested, waterworks like medicine. In between food, water is like nectar but water immediately after food works like poison.

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काष्ठपाषाण धातुनां कृत्वा भावेन सेवनम्।
श्रद्धया च तथा सिद्धिस्तस्य विष्णो: प्रसादत:॥

धातु पत्थर काष्ट में, प्रभ्ाु मूरत के भाव।
सदा मिले ईश्वर कृपा, श्रद्घा सहित स्वभाव॥117॥

काष्ट, पाषण या धातु की मूर्तियों की भी भावना और श्रद्धा से उपासना करने पर भगवान की कृपा से सिद्धि मिल जाती है।

One gets blessings of god if he has feelings for service to others and strong faith even in the statue of god which is made of metal, stone or wood.

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न देवो विद्यते काष्ठे न पाषाणे न मृण्मये।
भावे हि विद्यते देवस्तस्माद् भावो हि कारणम्॥

मूरत माटी काठ की, नहीं देव का वास।
देव बसे बस भाव में, मन में हो विश्वास॥118॥

ईश्वर न काष्ट में हैं, न मिट्टी में, न मूर्ति में। वह केवल भावना में रहता है। अत: भावना ही मुख्य है।

God is not in any statue of wood or sand. God lives in faith and belief.

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शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम्।
न तृष्णया परो व्याधिर्न च धर्मो दयापर:॥

शान्ति जैसा तप नहीं, सुख संतोष समान।
लोभ न जैसी व्याधियाँ, धर्म दया का मान॥119॥

शान्ति के समान तपस्या नहीं है, सन्तोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है, तृष्णा से बढ़कर कोई व्याधि नहीं है और दया से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।

No devotion is better than peace, no pleasure is better than satisfaction, greed is an acute illness and no religion is above compassion.

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क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी।
विद्या कामदुधा धेनु: संतोषो नन्दनं वनम्॥

लालच वैतरणी नदी, यम है क्रोध समान।
नंदनवन संतोष है, कामधेनु है ज्ञान॥120॥

क्रोध यमराज है, तृष्णा वैतरणी नदी है, विद्या कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन है।

Anger is like Yamraja, greed is like a river through the hell (VAITARNI), knowledge and education like kaamdhenu and contentment is like NANDANVAN.

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गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम्।
सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम॥

गुण से शोभा रूप की, शील बढ़े कुल मान।
विद्या से सिद्धि बढ़े, भोग से धन सम्मान ॥121॥

गुण रूप कि शोभा बढ़ाते हैं, शील – स्वभाव कुल की शोभा बढ़ाता है, सिद्धि विद्या की शोभा बढ़ाती है और भोग करना धन की शोभा बढ़ाता है।

Qualities add glory of beauty, morality increases reputation of family, expertise glorifies education and consumption justifies wealth.

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निर्गुणस्य हतं रूपं दु:शीलस्य हतं कुलम्।
असिद्धस्य हता विद्या अभोगस्य हतं धनम्॥

रूप व्यर्थ गुणहीन का, शील बिना कुल नाश।
विद्या व्यर्थ अयोग्य की, भोग बिना धन ह्वास ॥122॥

गुणहीन का रूप, दुराचारी का कुल तथा अयोग्य व्यक्ति की विद्या नष्ट हो जाती है। धन का भोग न करने से धन भी नष्ट हो जाता है।

Beauty is not worth for talentless, family name gets spoil for characterless, education is of no use for incapable person and wealth is useless if it is not used.

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किं कुलेन विशालेन विद्याहीने च देहिनाम्।
दुष्कुलं चापि विदुषी देवैरपि हि पूज्यते॥

बसे जहाँ विद्या नहीं, क्या विशाल परिवार।
ज्ञानी पूजे देवता, कुल का नहीं विचार॥123॥

विद्याहीन होने पर विशाल कुल का क्या करना? विद्वान नीच कुल का भी हो, तो देवताओं द्वारा भी पूजा जाता है।

Big clan is of no meaning for education less people and if one is intellectual than even deity also worship him irrespective of his clan.

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परस्परस्य मर्माणि ये भाषन्ते नराधमा:।
ते एव विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत॥

रख ना सके रहस्य को, ऐसे नर बेकार।
बाँबी में ज्यों नष्ट हो, सांपों की फुफकार॥125॥

जो व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे की बातों को अन्य लोगों को बता देते हैं वे बांबी के अन्दर के सांप के समान नष्ट हो जाते हैं।

People are of no worth if they can’t maintain secret same like snake becomes useless when it is locked in a snake box.

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सर्वौषधीनामममृतं प्रधानं सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम् ।
सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं सर्वेषु गात्रेषु शिर: प्रधानम् ॥

अमृत सर्वोत्तम दवा, भोजन सुखद प्रधान ।
इन्द्रिय सर्वोत्तम नयन, शीश उच्चतम मान ॥126॥

सभी औषधियों में अमृत (गिलोय) प्रधान है। सभी सुखों में भोजन प्रधान है। सभी इंद्रियों में आँखे मुख्य हैं। सभी अंगों में सर महत्वपूर्ण है।

Elixir is best medicine, food is best pleasure, eyes are best among all senses and head is best among all body parts.

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विद्यार्थी सेवक: पान्थ: क्षुधार्तो भयकातर:।
भाण्डारी च प्रतिहारी सप्तसुप्तान् प्रबोधयेत॥

छात्र सेवक या पथिक, भंडारी, भयभीत।
भ्ाूखा प्रहरी सात ये, रखो जगाकर मीत॥127॥

विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूख से दु:खी, भयभीत, भण्डारी, द्वारपाल-इन सातों को सोते हुए से जगा देना चाहिए।

It is no offence if you wake these seven people. Student, servant, traveller, fearful, hungry, store keeper and guard.

अहिं नृपं च शार्दूलं वराटं बालकं तथा।
परश्वानं च मूर्खं च सप्तसुप्तान् बोधयेत्॥

राजा बालक सर्प हो, शेर बर्र या श्वान।
नहीं जगाएं मूर्ख को, कहते लोग सुजान॥128॥

सांप, राजा, शेर, बर्र, बच्चा, दूसरे का कुत्ता तथा मूर्ख इनको सोए से नहीं जगाना चाहिए।

Snake, king, lion, wasp, child, others dog and fool. Don’t wake them up if they are sleeping.

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दरिद्रता धीरयता विराजते कुवस्त्रता स्वच्छतया विराजते।
कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते॥

निर्धन शोभा धीर से, स्वच्छ वस्त्र मन भाये।
बासा रुचिकर गर्म हो, शील रूप दमकाय॥129॥

धीरज से निर्धनता भी सुन्दर लगती है, साफ रहने पर मामूली वस्त्र भी अच्छे लगते हैं, गर्म किये जाने पर बासी भोजन भी सुन्दर जान पड़ता है और शील-स्वभाव से कुरूपता भी सुन्दर लगती है।

Even poor is respected for patience, ordinary clothes are liked if they are clean, stale food becomes eatable after heating and not so beautiful person is liked if have good character.

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धनहीनो न च हीनश्च धनिक स सुनिश्चय:।
विद्या रत्नेन हीनो य: स हीन: सर्ववस्तुषु॥

धनहीन जन हीन नहीं, समझो वह धनवान।
विद्या से जो हीन है, हर सू निर्धन मान॥130॥

धनहीन व्यक्ति हीन नहीं कहा जाता। उसे धनी ही समझना चाहिए। जो विद्यारत्न से हीन है, वस्तुत: वह सभी वस्तुओं में हीन है।

Don’t treat poor like poor. Consider him rich. However uneducated is poor in all respect.

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दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत्।
शास्त्रपूतं वदेद् वाक्यं मन: पूतं समाचरेत्॥

द़ृष्टि पथ पर बनी रहे, नीर वस्त्र से छान।
शास्त्र सम्मत बात कहे, कर्म मनोगत मान॥131॥

आँख से अच्छी तरह देख कर पांव रखना चाहिए जल वस्त्र से छानकर पीना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार ही बात कहनी चाहिए तथा जिस काम को करने का मन आज्ञा दे, वही करना चाहिए।

One must keep eye on path while walking, drink water after filtering, talk as per scriptures and shall do as conscious allows.

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सुखार्थी चेत् त्यजेद्विद्यां त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी चेत् त्यजेत्सुखम्।
सुखार्थिन: कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिन:॥

तज विद्या सुख चाह जो, लो विद्या, सुख त्याग ।
सुख हो तो विद्या नहीं, सुख नहीं विद्या भाग ॥132॥

यदि सुखों की इच्छा है, तो विद्या त्याग दो और यदि विद्या की इच्छा है, तो सुखों का त्याग कर दो। सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ तथा विद्या चाहने वाले को सुख कहाँ।

If you desire pleasure than education has to be sacrificed however if you are a student and want to study then you have to sacrifice pleasures. Education and pleasure can’t be at the same place.

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कवय: किं न पश्यन्ति किं न कुर्वन्ति योषित:।
मद्यपा किं न जल्पन्ति किं न खादन्ति वायसा:॥

कवि क्या नहीं देखता, स्त्री न असंभव काम।
बके पियक्कड़ क्या नहीं, कागा खाय तमाम॥133॥

कवि क्या नहीं देखते? स्त्रियां क्या नहीं करतीं? शराबी क्या नहीं बकते? तथा कौए क्या नहीं खाते?

What is that poet can’t see or lady can’t do or drunk can’t talk or crow can’t eat?

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रंक करोति राजानं राजानं रंकमेव च।
धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधि:॥

रंक कभी राजा बनें, राजन रंक समान।
धनिक भाग निर्धन करे, निर्धन को धनवान॥134॥

भाग्य रंक को राजा और राजा को रंक बना देता है। धनी को निर्धन तथा निर्धन को धनी बना देता है।

Luck can make king a pauper or pauper to king. Rich to poor or poor to rich.

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येषां न विद्या न तपो न दानं न चापि शीलं च गुणो न धर्म:।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता मनुष्यरुपेण मृगाश्चरन्ति॥

ज्ञान दान तप शील गुण, नहीं धर्म का ज्ञान।
वे मानव जग – भार हैं, बीच मनुज पश्ाु मान॥135॥

जिनमें विद्या, तपस्या, दान देना, शील, गुण तथा धर्म में से कुछ भी नहीं है, वे मनुष्य पृथ्वी पर भार हैं। वे मनुष्य के रूप में पशु हैं, जो मनुष्यों के बीच में घूमते रहते हैं।

A person is of no use on this earth if he lacks education, penance, donation, character, virtues and dharma. They are animal in the form of a human.

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वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालय: पत्रफलाम्बु सेवनम्।
तृणेशु शय्या शतजीर्णवल्कलं न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम्॥

रह जा वन में सिंह संग, पेड़ तले सो यार।
लेकिन निर्धन बन कभी, जा न स्वजन के द्वार॥136॥

बाघ, हाथी और सिंह जैसे भयंकर जीवों से घिर हुए वन में रह ले, वृक्ष पर घर बनाकर, फल-पत्ते खाकर और पानी पीकर निर्वाह कर ले, धरती पर घास-फूस बिछाकर सो ले और फटे-पुराने टुकड़े-टुकड़े हुए वृक्षों की छल को ओढ़कर शरीर को धक ले, परन्तु धनहीन होने की दशा में अपने संबन्धियों के साथ कभी न रहे, क्योंकि इससे उसे अपमान और उपेक्षा का जो कड़वा घूंट पीना पड़ता है, वह सर्वथा असह्य होता है।

Live in the jungle among lions or elephants, eat fruits and leaves in the jungle or use a bed of grass or wear torn clothes but don’t live with any relatives if you have no money.

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माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दन:।
बान्धवा विष्णुभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥
लक्ष्मी जैसी मात हो, पिता हो विष्णु समान।
बांधव विष्णु भक्त हो, तीन लोक घर जान॥137॥

जिस मनुष्य की माँ लक्ष्मी के समान है, पिता विष्णु के समान है और भाई-बन्धु विष्णु के भक्त है, उसके लिए अपना घर ही तीनों लोकों के समान है।

Who has a mother like a goddess Laxmi and father like Vishnu, brother and sisters are devoted to Laxmi and Vishnu, for them home is no less than the entire universe.

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बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्।
वने सिंहो मदोन्मत्त: शशकेन निपातित:॥

बल की महिमा बुद्धि से, कुछ न बुद्धि बिन ताड़।
बुद्धि मिली ख़रगोश को, सिंह को दिया पछाड़॥138॥

जिस व्यक्ति के पास बुद्धि होती है, बल भी भी उसी के पास होता है। बुद्धिहीन का तो बल भी निरर्थक है, क्योंकि बुद्धि के बल पर ही उसका प्रयोग कर सकता है अन्यथा नहीं। बुद्धि के बल पर ही एक बुद्धिमान खरगोश ने अहंकारी सिंह को वन के कुएं में गिराकर मार डाला था।

Strength is of no use without intellect. Here killed the lion with his intellect by directing him in the well.

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दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता।
अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वार: सहजा गुणा:॥

दानशूरता प्रिय वचन, धीरज उचित सज्ञान।
मिलते ना अभ्यास से, इन्हें सहज गुण जान॥139॥

दान देने की आदत, प्रिय बोलना, धीरज तथा उचित ज्ञान – ये चार व्यक्ति के सहज गुण हैं; जो अभ्यास से नहीं आते।

Donating, polite talk, patience and right wisdom is natural qualities. Can’t be gained by practice.

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अन्तर्गतमलो दुष्टस्तीर्थस्नानशतैरपि।
न शुद्धयतियथाभाण्डं सुरया दाहितं च तत्॥

जिस मन में अति मैल हो, शुद्धि तीर्थ ना स्नान।
सुरापात्र हो शुद्ध नहीं, अग्नि करो विधान॥140॥

जैसे सुरापात्र अग्नि में जलाने पर भी शुद्ध नहीं होता। इसी प्रकार जिसके मन में मैल हो, वह दुष्ट चाहे सैकड़ों तीर्थ-स्नान कर ले, कभी शुद्ध नहीं होता।

Like a wine pot can’t be pious even if put on the fire, same way a person with bad intention can’t be pure with bath on holy places.

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कामं क्रोधं तथा लोभं स्वाद शृङ्गारकौतुकम्।
अतिनिद्राऽतिसेवा च विद्यार्थी ह्याष्ट वर्जयेत्॥

काम – क्रोध व लोभ हो, कौतुक स्वाद श्रृंगार।
अति निन्द्रा सेवा अधिक, आठ न छात्र विचार॥141॥

काम, क्रोध, लोभ, स्वाद, शृंगार, कौतुक, अधिक सोना, अधिक सेवा करना, इन आठ कामों को विद्यार्थी छोड़ दे।

A student shall avoid following 8 things. Sensual pleasure, anger, greed, taste, make up, amusement, more sleep and more service.

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सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा।
शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम बान्धव॥

धर्म है भाई मित्र दया, मात-पिता, सच-ज्ञान।
क्षमा पुत्र पत्नी अमन, छह ये बंधु समान॥142॥

सत्य मेरी माता है, ज्ञान पिता है, भाई धर्म है, धर्म भ्राता, मित्र दया, ये छ: ही मेरे सगे-सम्बन्धी हैं।

I have only six relatives. Truth is my mother, knowledge is my father, dharma is my brother, kindness is my friend, peace is my wife and forgiveness is my son.

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मातृवत् परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत्।
आत्मवत् सर्वभूतानि य: पश्यति स: पण्डित:॥

पर नारी को माँ समझ, पर-धन धूल समान।
हर जन को इस जगत में, अपने जैसा मान॥143॥

अन्य व्यक्तियों की स्त्रियों को माता के समान समझे, दूसरें के धन पर नज़र न रखे, उसे पराया समझे और सभी लोगों को अपनी तरह ही समझे।

Wise is one who considers other women as mothers, others money as sand and other people like self.

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जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:।
स हेतु सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च॥

घड़ा भरे हर बूँद से, डाले उसमे जान।
दौलत विद्या धर्म भी, संचय करे सुजान॥144॥

एक-एक बूंद डालने से क्रमश: घड़ा भर जाता है। इसी तरह विद्या, धर्म और धन का भी संचय करना चाहिए।

Like pot can be filled by continuing drops, one shall accumulate dharma, knowledge and wealth.

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गतं शोको न कर्तव्यं भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणा:॥

दुख ना बीती बात पर, भविष्य न चिंता जान।
वर्तमान विचरण करे, ज्ञानी उसको मान॥145॥

बीती बात पर दु:ख नहीं करना चाहिए। भविष्य के विषय में भी नहीं सोचना चाहिए। बुद्धिमान लोग वर्तमान समय के अनुसार ही चलते है।

Wise is one who don’t keep sorrow of past events or don’t think too much about future but always tries to remain in present.

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स्वभावेन हि तुष्यन्ति देवा: सत्पुरुषा: पिता:।
ज्ञातय: स्नानपानाभ्यां वाक्यदानेन पण्डिता:॥

पिता देव सज्जन सुखी, दे संतुष्टि सु-भाव।
स्नान पान से बंधु गण, विद्जन वाणी प्रभाव॥146॥

देवता, सज्जन और पिता स्वभाव से, भाई-बन्धु स्नान-पान से तथा विद्वान वाणी से प्रसन्न होते हैं।

Deity, gentlemen and father will be satisfied with your good nature, brothers, friends and relatives will be happy with party and wise man will be happy with your good speech.

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यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दु:खस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दु:खानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥

स्नेह भय का मूल है, दुख का कारण राग।
प्रीत दुखों का मूल है, सुख लो बंधन त्याग॥147॥

जिसे किसी के प्रति प्रेम होता है उसे उसी से भय भी होता है, प्रीति दु:खो का आधार है। स्नेह ही सारे दु:खो का मूल है, अत: स्नेह-बन्धनों को तोड़कर सुखपूर्वक रहना चाहिए।

Attachment is the main cause of sorrow and fear. Happy are those who are not attached.

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अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्नगतिस्तथा।
द्वावातौ सुखमेवेते यद्भविष्यो विनश्यति॥

रहता सजग भविष्य से, विपत्तियों का ध्यान।
सुखी वही जो जागता, भागी नष्ट समान॥148॥

जो व्यक्ति भविष्य में आनेवाली विपत्ति के प्रति जागरूक रहता है और जिसकी बुद्धि तेज़ होती है, ऐसा ही व्यक्ति सुखी रहता है। इसके विपरीत भाग्य के भरोसे बैठा रहनेवाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है।

Who is intelligent and alert about future problems remains happy. Who just believes in luck and don’t act gets destroyed.

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जीवन्तं मृतवन्मन्ये देहिनं धर्मवर्जितम्।
मृतो धर्मेण संयुक्तो दीर्घजीवी न संशय:॥

धर्महीन जो जीव है, जीवित मरे समान।
धर्मपाल बन जो मरे, दीर्घ काल तक शान॥149॥

जो मनुष्य अपने जीवन में कोई भी अच्छा काम नहीं करता, ऐसा धर्महीन मनुष्य ज़िंदा रहते हुए भी मरे के समान है। जो मनुष्य अपने जीवन में लोगों की भलाई करता है और धर्म संचय कर के मर जाता है, वे मृत्यु के बाद भी यश से लम्बे समय तक जीवित रहता है ।

Living person is like dead if one lacks Dharma. He who is on path of dharma lives long with good name even after death.

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धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्वते।
अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम्॥

काम मोक्ष ना अर्थ धरम, नहीं एक भी ज्ञान।
स्तन ज्यूँ बकरी कण्ठ में, जनम व्यर्थ ही मान॥150॥

धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष में से जिस व्यक्ति को एक भी नहीं पता, उसका जीवन बकरी के गले के स्तन के समान व्यर्थ है।

The four purusharth are Dharma (righteousness, moral values), Artha (prosperity, economic values), Kama (pleasure, love, psychological values) and Moksha (liberation, spiritual values). If one is not knowledgeable of even one out of four than his life is as useless as breast of goat in her neck.

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दह्यमानां सुतीव्रेण नीचा: परयशोऽग्निना।
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते॥1

औरों की लख उन्नति, जलते छोटे लोग।
ख़ुद में है क्षमता नहीं, निन्दा उनका रोग॥151॥

दुष्ट व्यक्ति दूसरे की उन्नति को देखकर जलता है वह स्वयं उन्नति नहीं कर सकता। इसलिए वह निन्दा करने लगता है।

People of lower mentality get jealous with progress of others. Since they are incapable to progress they criticise others.

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बन्धन्य विषयासङ्ग: मुक्त्यै निर्विषयं मन:।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयो:॥

विषय संग बंधन रहे, मोक्ष मुक्तता मान ।
मन बंधनकारक सदा, मोक्ष मार्ग मन जान॥152॥

बुराइयों में मन को लगाना ही बन्धन है और इनसे मन को हटा लेना ही मोक्ष का मार्ग दिखता है। इस प्रकार यह मन ही बन्धन या मोक्ष देनेवाला है।

Attachment to material thing binds and detached person goes to moksha. Mind is the cause for bondage and mind is cause for freedom (moksha).

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देहाभिमानगलिते ज्ञानेन परमात्मन:।
यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधय:॥

मान देह का ना रहे, परम आत्म का ज्ञान।
तब जाता है मन जहाँ, वहीं समाधि विधान॥153॥

परमात्मा का ज्ञान हो जाने पर देह का अभिमान गल जाता है। तब मन जहां भी जाता है, उसे वहीं समाधि लग जाती है।

When one get realisation of God or super soul, his pride for body dilutes. He remains in state of meditation, wherever he is.

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ईप्सितं मनस: सर्वं कस्य सम्पद्यते सुखम् ।
दैवायत्तं यत: सर्वं तस्मात् सन्तोषमाश्रयेत्॥

सुख सभी मिलते नहीं, चाह अनंत मन जान।
रहे भाग्य के वश सभी, यह संतोष समान॥154॥

मन के चाहे सारे सुख किसे मिले हैं। क्यूंकि सब कुछ भाग्य के अधीन है। अत: सन्तोष करना चाहिए।

Our mind have unlimited desires for worldly pleasures but whose all desires got fulfilled? Every thing is controlled by destiny so better be satisfied with what you get.

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यथा धेनु सहस्नेषु वत्सो गच्छति मातरम्।
तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छ॥

बछड़ा माँ से ही मिले गायें खड़ी हज़ार।
कर्ता पीछे कर्म है, करें करम सुविचार॥155॥

जैसे हजारों गायों में भी बछरा अपनी ही माँ के पास जाता है, उसी तरह किया हुआ कर्म कर्ता के पीछे-पीछे जाता है।

Like calf will follow his mother inspire of thousands of cows are there, same way karma (act) follows karta (doer) so be careful in action.

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अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्।
जनो दहति संसर्गाद् वनं सगविवर्जनात॥

अस्थिर जिसका चित्त हो, जन – वन नहीं सुहाय।
दुखी भीड़ के बीच में, वन एकांत जलाय॥156॥

जिसका चित्त स्थिर नहीं होता, उस व्यक्ति को न तो लोगों के बीच में सुख मिलता है और न वन में ही। लोगो के बीच में रहने पर उनका साथ जलता है तथा वन में अकेलापन जलाता है ।

One whose mind is not stable, he will not find pleasure neither among people nor in forest.he will neither like company nor loneliness.

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यथा खनित्वा खनित्रेण भूतले वारि विन्दति।
तथा गुरुगतां विद्यां शुश्रुषुरधिगच्छति॥

खोद फावड़े से धरा, ज्यों जल बाहर आय।
गुरु की सेवा जो करे, विद्या सहज सुहाय॥157॥

जैसे फावड़े से खोदकर भूमि से जल निकला जाता है, इसी प्रकार सेवा करनेवाला विद्यार्थी गुरु से विद्या प्राप्त करता है।

Like by digging earth we can get water, by serving teacher we can get education.

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पृथिव्यां त्रीणी रत्नानि अन्नमाप: सुभाषितम्।
मूढै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते॥

तीन रत्न है विश्व में, नीर अन्न मधु-बोल।
हीरा भी पत्थर सदा, मूर्ख न समझे मोल॥158॥

अनाज, पानी और सबके साथ मधुर बोलना – ये तीन चीजें ही पृथ्वी के सच्चे रत्न हैं। हीरे जवाहरात आदि पत्थर के टुकड़े ही तो हैं। इन्हें रत्न कहना केवल मूर्खता है।

There are only 3 most precious things in this world. Water, food and sweet words. Fool consider jewels as precious which are pieces of stone only.

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आत्मापराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम्।
दारिद्रयरोग दु:खानि बन्धनव्यसनानि च॥

कर्मों के ही फल सभी, मिलते हैं हर काल।
रोग, गरीबी, दुख, व्यसन, बंधन दुख का जाल॥159॥

निर्धनता, रोग, दु:ख, बन्धन, और बुरी आदतें सब-कुछ मनुष्य के कर्मो के ही फल होते हैं। जो जैसा बोता है, उसे वैसा ही फल भी मिलता है, इसलिए सदा अच्छे कर्म करने चाहिए।

What you sow that you reap. Fruits of bad karma keep following in form of poverty, diseases, sorrows, bondage, bad vices etc.

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बहूनां चैव सत्तवानां रिपुञ्जय:।
वर्षान्धाराधरो मेधस्तृणैरपि निवार्यते॥

भले शत्रु बलवान हो, एकजूट से हार।
लघ्ाु तिनकों की छत रहे, वर्षा जल नहीं पार॥160॥

शत्रु चाहे कितना बलवान हो; यदि अनेक छोटे-छोटे व्यक्ति भी मिलकर उसका सामना करे तो उसे हरा देते हैं। छोटे-छोटे तिनकें से बना हुआ छप्पर मूसलाधार बरसती हुई वर्षा को भी रोक देता है। वास्तव में एकता में बड़ी भारी शक्ति है।

When weak unites, they can defeat even strong enemy same like roof made of straw can stop rain water pouring in.

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त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम्।
कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यत:॥

साथ दुष्ट का छोड़ दो, सज्जन संगत बात।
ईश स्मरण हर पल रहे, पुण्य कर्म दिन – रात॥161॥

दुष्टों का साथ छोड़ दो, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन अच्छे काम करो तथा सदा ईश्वर को याद करो। यही मानव का धर्म है।

Avoid company of bad people. Keep company of good people. Keep doing good work regularly and keep god always in your thoughts.

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जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि।
प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारे वस्तुशक्तित:॥

तेल जल, संवाद खल, योग्य पात्र को दान।
अल्प सही फैले मगर, बुद्धिमान को ज्ञान॥162॥

जल में तेल, दुष्ट से कही गई बात, योग्य व्यक्ति को दिया गया दान तथा बुद्धिमान को दिया ज्ञान थोड़ा सा होने पर भी अपने-आप विस्तार प्राप्त कर लेते हैं।

4 things spreads in world without much efforts. Oil in water, secret talk to bad person, donation to eligible person and knowledge to intelligent.

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उत्पन्नपश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवति यादृशी।
तादृशी यदि पूर्वा स्यात्कस्य स्यान्न महोदय:॥

गलती कर पछताय हम, पूर्व मति यदि आय।
उन्नति करता आदमी, फिर काहे पछताय॥163॥

गलती करने पर जो पछतावा होता है, यदि ऐसी मति गलती करने से पहले ही आ जाए, तो भला कौन उन्नति नहीं करेगा और किसे पछताना पड़ेगा?

A wise person thinks about consequences before action so that he need not to repent after actions.

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दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये।
विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा॥

नीतिपरक विज्ञान सह, शौर्य विनय तप दान।
विस्मित ना इनसे रहें, बने है लोग महान॥164॥

दान, तप, शूरता, विज्ञान, विनम्रता और नीतिमत्ता इनके विषय में आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि अनेक विभूति-रत्न इस जगत में हुए हैं, जिन्होंने ऐसे सद्ग्ाुणों से पूरी वसुंधरा को आश्चर्यचकित किया है।

One shall not surprise with qualities of donation, tenacity, bravery, knowledge, politeness and morality. On this earth lot of great personalities had already lived in past with these qualities.

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दूरस्थोऽपि न दूरस्थो यो यस्य मनसि स्थित:।
यो यस्य हृदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरत:॥

रहे दूर पर पास हो, मन में जो बस जाय।
पास हो पर दूर रहे, मन में ना बस पाय॥165॥

जो व्यक्ति हृदय में रहता है, वह दूर होने पर भी दूर नहीं है। जो हृदय में नहीं रहता वह समीप रहने पर भी दूर है।

He who lives in heart, he is close even if one is away. He who is not in heart, he will always be far even if seating beside you.

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तावन्मौनेन नीयन्ते कोकिलश्चैव वासरा:।
यावत्सर्वं जनानन्ददायिनी वाङ्न प्रवर्तते॥

कोयल जब तक मौन हो, मधुर न फूटें बोल।
बोल वही, आनन्द दें, तोल मोल फिर बोल॥166॥

कोयल तब तक मौन रहकर दिनों को बिताती है, जब तक कि उसकी मधुर वाणी नहीं फूट पड़ती। यह वाणी सभी को आनन्द देती है। अत: जब भी बोले, मधुर बोलो। कड़वा बोलने से चुप रहना ही बेहतर है।

Cuckoo remain silent till she gets sweet voice. One shall avoid bitter words and shall use words which gives pleasure to all.

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न निर्मिता केन न दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरंङ्गी।
तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धि:॥

सोने की हिरणी नहीं, देखा सुना न नाम।
विनाश काले जड़ बुद्धि, तृष्णा भटके राम॥167॥

सोने की हिरणी न तो किसी ने बनायी, न किसी ने इसे देखा और न यह सुनने में ही आता है कि हिरणी सोने का भी होती है। फिर भी रघुनन्दन की तृष्णा देखिये! वास्तव में विनाश का समय आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है।

No one made ever golden deer, neither it was seen nor heard but during bad time intellect gets rust and lust lead even Ram to run after golden deer.

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गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थितै: ।
प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काको गरुडायते ॥

मग्ाुज बनें गुण से बड़ा, बड़ा न ऊँचा स्थान ।
शिखर बैठ कौआ नहीं, होता गरुड़ समान ॥168॥

गुणों से ही मनुष्य बड़ा बनता है, न कि किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से। राजमहल के शिखर पर बैठ जाने पर भी कौआ गरुड़ नहीं बनता।

A person becomes great by his virtues not by seating on a higher place or position. A crow can’t be eagle by seating on top of palace.

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प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवा:।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥

मध्ाुर वचन है दान सम, जो सबके मन भाय।
इसमें क्यों हो दरिद्रता, मीठे वचन सुनाय॥169॥

मधुर वचन बोलना, दान के समान है। इससे सभी मनुष्यों को आनन्द मिलता है। अत: मधुर ही बोलना चाहिए। बोलने में कैसी गरीबी!

Everyone loves to hear soft words then why one shall be miser and impolite in speaking.

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पुस्तकेषु च या विद्या परहस्तेषु च यद्धनम्।
उत्पन्नेषु च कार्येषु न सा विद्या न तद्धनम्॥

विद्या पुस्तक में रहे, धन दूजे के हाथ।
काम पड़े जब जीव को, दोनों दें ना साथ॥170॥

जो विद्या पुस्तक में ही है, और जो धन दूसरे को हाथ में चला गया है, ये दोनों चीजें समय पर काम नहीं आती।

Knowledge in books and other’s money is useless because when we are in need both can’t be utilized.

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