आस्रवनिरोध: संवर:॥१॥
संवर को अब जानिये, कर्म बंध रुक जाय।
आस्रव का ही रोकना, संवर का फल पाय॥९.१.३०२॥
आस्रव का रोकना सो संवर है।
The obstruction of influx is stoppage of karma.
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स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रै:॥२॥
गुप्ति, समिति, धर्म भी, अनुप्रेक्षा संवर जान।
परीषह जय, चारित्र भी, संवर की पहचान॥९.२.३०३॥
गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषह जय और चारित्र से संवर होता है।
Stoppage of karma can be achieved in six ways. Self control, carefulness, virtue, contemplation, endurance and conduct.
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तपसा निर्जरा च॥३॥
तप से भी बंद रहे, बंधन का तूफ़ान।
हो संवर और निर्जरा, तप की ऐसी शान॥९.३.३०४॥
तप से संवर और निर्जरा होती है।
By penance stoppage and shedding of karma is possible.
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सम्यग्योगनिग्रहो गुप्ति:॥४॥
मन, वचन और काय की, योग सके तो रोक।
गुप्ति इसी का नाम है, संवर होता लोक॥९.४.३०५॥
मन, वचन और काय- इन तीन योगो की स्वेच्छाचारिता का अच्छी तरह से रोकना गुप्ति है।
Controlling activity of mind, words and activity is gupti.
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ईर्याभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गा: समिति:॥५॥
ईर्या, भाषा एषणा, लेना रखना जान।
उत्सर्ग भी अच्छी तरह, करे समिति पहचान॥९.५.३०६॥
ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेप और उत्सर्ग अच्छी तरह से करना समिति है।
Regulate properly walking, speaking, eating, lifting and laying down and disposing waste is called samiti.
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उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्म:॥६॥
क्षमा, मार्दव, आर्जव भी, संयम शौच सतवान।
तप, त्याग, आकिन्चन्य उत्तम, ब्रह्मचर्य धर्म पहचान॥९.६.३०७॥
उत्तमक्षमा, उत्तममार्दव, उत्तमआर्जव, उत्तमशौच, उत्तमसत्य, उत्तमसंयम, उत्तमतप, उत्तमत्याग, उत्तमआकिन्चन्य और उत्तमब्रह्मचर्य ये दस धर्म है।
10 supreme virtues (dharma) are as follow:
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अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्रवसंवरनिर्जरालोकबोधिदुर्लभधर्मस्वाख्यातत्त्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षा:॥७॥
अनित्य व अशरण भावना, एकत्व और संसार ।
अन्यत्व, अशुचि, आस्रव भी, संवर, निर्जरा धार॥
लोक, व बोधिदुर्लभ भी, धर्म हो बारम्बार।
चिन्तवन बारह भावना, अनुप्रेक्षा बेड़ापार॥९.७.३०८॥
अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म ये बारह अनुप्रेषित हैं जिनका बार बार चिंतवन करना चाहिए।
One must reflect on following 12 again and again:
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मार्गाच्यवननिर्जरार्थं परिषोढव्या: परीषहा:॥८॥
संवर पथ से च्युत नहीं, हो निर्जरा की चाह।
परीषह पर विजय करो, सहना ही है राह॥९.८.३०९॥
संवर के मार्ग से च्युत न हो और कर्मों की निर्जरा के लिए परीषहों को शान्तभाव से सहन करना चाहिए ।
The afflictions are to be endured to remain on path of stoppage and shedding of karmas.
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क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याक्रोशवधयाचनाऽलाभरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानाऽदर्शनानि॥९॥
भूख, प्यास, ठण्डी गरम, दंशमशक ना जान।
नग्नता, अरति, स्त्री रहे, चर्या, बैठक ध्यान॥
शय्या, आक्रोश, वध भी, याचना न स्वीकार।
अलाभ, रोग, शूल, मल, चाह नहीं सत्कार॥
प्रज्ञा या अज्ञान हो, अदर्शन का हो भार।
बाईस परीषह जानिये, मुनि ना करे विचार॥९.९.३१०॥
भूख, प्यास, ठण्ड, गर्मी, दंशमशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार-पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान, और अदर्शन ये बाईस परीषह है।
Following 22 afflictions to be conquered:
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सूक्ष्मसाम्परायछद्मस्थ वीतरागयोश्चतुर्द़॥१०॥
परीषह चौदह जय हो, दस बारह गुणस्थान।
सूक्ष्म साम्पराय को, वीतराग भी जान॥९.१०.३११॥
सूक्ष्म साम्पराय नामक दशवें गुणस्थान में और छद्मस्थ वीतराग दशा में अर्थात् ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में चौदह परीषह कहे है।
Fourteen afflictions may occur in 10th to 12th Gunsthana.
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एकादश जिने॥११॥
जिनेन्द्र देव संभव है, ग्यारह परीषह जान।
अलाभ, प्रज्ञा, अज्ञान ना, तेरहवाँ गुणस्थान॥९.११.३१२॥
जिनेन्द्र भगवान के अर्थात् तेरहवें गुण स्थान में ११ परिषह संभव है। अलाभ, प्रज्ञा और अज्ञान नहीं होता।
Upto eleven afflictions can occur to the omniscient Jina in 13th Gunasthana.
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बादरसाम्पराये सर्वे॥१२॥
स्थूल कषाय मुनिसंत के, सभी परीषह मान।
छठे से नौ स्थान तक, परीषह जय विधान॥९.१२.३१३॥
स्थूल कषाय अर्थात् छठे गुणस्थान से नौवें गुणस्थान तक मुनिराजों के सभी परीषह हो सकते है।
All the afflictions can arise in the case of the ascetic ( from 6-9th gunasthana) with gross passions.
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ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने॥१३॥
कर्म अनुसार परीषह का, देखे आज प्रभाव।
प्रज्ञा और अज्ञान मिले, ज्ञानावरण सद्भाव॥९.१३.३१४॥
ज्ञानावरण के सद्भाव में प्रज्ञा और अज्ञान परीषह होते है।
Knowledge and ignorance is caused by knowledge covering karmas.
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दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ॥१४॥
अदर्शन का परीषह हो, दर्शन मोह सद्भाव।
अलाभ का परीषह हो, अन्तराय के भाव॥९.१४.३१५॥
दर्शन मोह के सद्भाव में अदर्शन और अन्तराय के सद्भाव में अलाभ परीषह होता है।
Lack of faith is caused by faith deluding karma and lack of gain is caused by obstructive karmas.
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चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्कारा:॥१५॥
नग्न, अरति, स्त्री, निषद्या, चारित्र मोह सद्भाव।
षाचना आक्रोश, रहे, पुरस्कार का भाव॥९.१५.३१६॥
चारित्र मोह के सद्भाव में नाग्न्य, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचना और सत्कार- पुरस्कार परीषह होते है।
Conduct deluding karma causes following afflictions:
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वेदनीय शेषा:॥१६॥
ग्यारह परीषह बचे, वेदनीय सद्भाव।
जीवन भर बन कर रहे, परीषह का स्वभाव॥९.१६.३१७॥
शेष सभी परीषह वेदनीय कर्म के सद्भाव में होते हैं।
The other afflictions are caused by feeling karmas.
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एकादयो भाज्या युगपदेकस्मिन्नैकोनविंशते:॥१७॥
एक से उन्नीस तक हो, परीषहो का साथ।
चर्या शय्या या निषद्या, सर्दी या गर्मी हाथ॥९.१७.३१८॥
एक आत्मा के एकसाथ एक से लेकर उन्नीस तक परीषह हो सकते है।
One soul can have one to nineteen afflictions.
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सामायिकच्छ्दोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसाम्पराययथाख्यातमिति चारित्रम्॥१८॥
सामायिक या पुन: नया, परिहापविशुद्धि धार।
मंदकषाय, आचरण सही, ये है चरित प्रकार॥९.१८.३१९॥
सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात ये पाँच चारित्र के प्रकार है।
Conducts are of five types:
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अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशा बाह्यं तप:॥१९॥
अनशन और ऊणोदरी, वृत्तिपरिसंख्यान।
रसत्याग, एकान्त शयन, कायक्लेश तप जान॥९.१९
अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन और कायक्लेश ये छह बहिरंग तप है।
The 6 external austerities are as follow:
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प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम्॥२०॥
प्रायश्चित सह विनय हो, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय।
व्युत्सर्ग और ध्यान भी, अंतरंग तप ध्याय॥९.२०.३२१॥
प्रयश्चित, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान ये छह प्रकार के अंतरंग तप है।
The 6 internal austerities are as follow:
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नवचतुर्दशपञ्चद्विभेदा यथाक्रमम् प्राग्ध्यानात्॥२१॥
नव चार दस पाँच दो, यथाक्रमिक है भेद।
ध्यान पहले पाँच तप, आगम का है वेद॥९.२१.३२२॥
ध्यान के पहले के पाँच तप के भेद:
Prior to meditation these are of nine, four, ten, five and two types respectively.
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आलोचनप्रतिक्रमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गतपश्छेदपरिहारोपस्थापना:॥२२॥
प्रतिक्रमण आलोचना, तदुभय और विवेक।
व्युत्सर्ग, तप, छेद भी, प्रायश्चित हो नेक॥
परिहार उपस्थापना, प्रायश्चित नौ भेद।
संवर सह निर्जरा करो, मोक्षमार्ग का वेद॥९.२२.३२३॥
आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार और उपस्थापना ये प्रायश्चित तप के नौ भेद है।
Expiation Austerity is of 9 types:
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ज्ञानदर्शनचारित्रोपचारा:॥२३॥
ज्ञानविनय दर्शनविनय, चरित्रविनय पहचान
जान ले उपचारविनय, तप विनय का ज्ञान॥९.२३.३२४॥
विनय तप के चार भेद:
Reverence is of 4 types:
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आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणकुलसंघसाधुमनोज्ञानाम्॥२४॥
उपाध्याय आचार्य भी, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान।
गण, कुल, संघ व साधु भी, मनोज्ञ सेवा जान॥९.२४.३२५॥
दस प्रकार के परिस्थितियों के अनुसार मुनियों की सेवा करना वैयावृत्त्य तप है।
Selfless service penance is to serve 10 types of sants:
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वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशा:॥२५॥
स्वाध्याय तप भेद है, पढ़न पृच्छना ज्ञान।
अनुप्रेक्षा आम्नाय भी, धर्मोपदेश संज्ञान॥९.२५.३२६॥
स्वाध्याय तप के पाँच भेद है।
Self study penance are of 5 types:
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बाह्याभ्यन्तरोपध्यो:॥२६॥
व्युत्सर्ग तप भेद दो, बाह्य उपधिव्युत्सर्ग।
अंदर बाहर मोह नहीं, अभ्यंतर उपधिव्युत्सर्ग॥९.२६.३२७॥
व्युत्सर्ग तप के दो भेद है।
Penance of abandoning is of 2 types. Internal attachments and external attachments.
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उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमान्तर्मुहूर्तात्॥२७॥
उत्तम संहनन चाहिये, अन्तरमुहूर्त ध्यान।
चिन्तन अन्य निरोध रहे, एकाग्रता ही ध्यान॥९.२७.३२८॥
उत्तम संहनन वाले के अन्तरमुहूर्त तक एक विषय पर एकाग्रतापूर्वक चिन्तन व बाक़ी का निरोध रहे सो ध्यान है।
A person with best physical structure can concentrate for meditation upto one muhurta.
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आर्तरौद्रधर्म्यशुक्लानि॥२८॥
चार भेद है ध्यान के, आर्त रौद्र ध्यान।
धर्म्य शुक्ल ध्यान भी, एकाग्र रहे तो जान॥९.२८.३२९॥
ध्यान के ४ भेद है।
Meditation is of 4 types:
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परे मोक्षहेतू॥२९॥
मोक्ष की हो कामना, अंत के दो ध्यान।
धर्म्य ध्यान हो सदा, शुक्ल ध्यान भी जान॥९.२९.२३०॥
अन्त के दो ध्यान मोक्ष कारण है।
The last two type of meditation are the cause of liberation.
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आर्तममनोज्ञस्य सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहार:॥३०॥
अनिष्ट का संयोग हो, हो वियोग की चाह।
आर्त ध्यान का भेद है, अनिष्ट संयोगज राह॥९.३०.३३१॥
अनिष्ट पदार्थ के संयोग होने से उसको दूर करने के लिए बारम्बार विचार करना ‘अनिष्ट संयोगज’ नाम का आर्त ध्यान है।
On attaching to undesirable object, thinking again and again for disassociation of the same is called “undesirable association” concentration.
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विपरीतं मनोज्ञस्य ॥३१॥
इष्ट वस्तु वियोग रहे, वापस की हो चाह।
आर्त ध्यान का भेद है, इष्ट वियोगज राह॥९.३१.३३१॥
इष्ट पदार्थ का वियोग होने पर बार बार उसकी ध्यान करना ‘इष्ट वियोगज’ नाम का आर्त ध्यान है।
On disassociation with liked object focusing again and again on same is called “desirable disassociation’ meditation.
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वेदनायश्च॥३२॥
रोगजनित पीड़ा रहे, दूर करू हो चाह।
बारम्बार हो चिन्तवन, वेदनाजन्य गुनाह॥९.३२.३३३॥
रोगजनित पीड़ा होने पर उसे दूर करने के लिए बार बार चिन्तवन करना वेदनाजन्य आर्त ध्यान है।
Focusing again and again on suffering is called ‘pain inflicting sorrowful meditation”.
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निदानं च॥३३॥
भविष्य की चिंता रहे, चित्त निरन्तर ध्यान।
आर्तध्यान निदानज है, जिनवाणी का ज्ञान॥९.३३.३३४॥
भविष्यकाल संबंधी विषयों की प्राप्ति में चित्त को तल्लीन कर देना निदानज आर्तध्यान है।
Concentration on future enjoyments is called ‘future desires sorrowful meditation”.
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तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम्॥३४॥
अविरत देशविरत रहे, या प्रमत्तसंयत स्थान।
पहले से छठवें तलक, होता आर्तध्यान॥९.३४.३३५॥
वह आर्तध्यान अविरत- पहले चार गुण स्थान, देशविरत- पाँचवा गुणस्थान और प्रमत्तसंयत छट्ठे गुणस्थान में होता है।
Sorrowful meditation occurs in avirat mean upto 4th stage, desh Virat mean 5th stage and pramatt samyat mean 6th stage.
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हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयो:॥३५॥
हिंसा, असत्य, चोरी रहे, परिग्रह रौद्रध्यान।
अविरत देशविरत रहे, इसका है गुणस्थान॥९.३५.३३६॥
हिंसा, असत्य, चोरी और परिग्रह के भाव से उत्पन्न आन्न्द से हुआ ध्यान रौद्रध्यान है। अविरत और देशविरत गुणस्थानों में होता है।
Cruel concentration relating to violence, untruth, stealing and safeguarding possessions occurs in case upto 5th stage of layman.
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आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय धर्म्यम्॥३६॥
विचार चार प्रकार का, होता धर्म्य ध्यान।
आज्ञा और अपाय भी, विपाक व संस्थान॥९.३६.३३७॥
धर्म्य ध्यान में निम्न ४ बातों का चिन्तवन करना:
Virtuous concentration is of 4 types:
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शुक्ले चाद्ये पूर्वविद:॥३७॥
पृथक्त्ववितर्क एकत्ववितर्क, पूर्व शुक्ल द्वी ध्यान।
श्रुतकेवली संभव है, ज्ञानधारी पहचान॥९.३७.३३८॥
पहले दो प्रकार के शुक्ल ध्यान- पृथक्त्ववितर्क और एकत्ववितर्क, पूर्वज्ञानधारी श्रुतकेवली के होते है।
The first two types of pure meditation (multiple contemplation and unitary contemplation) are attained by the saints well versed in the purvas.
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परे केवलिन:॥३८॥
शुक्ल ध्यान दो अन्त के, केवलि ही कर पाय।
सयोग व अयोग क्रम हो, शुक्ल ध्यान सुहाय॥९.३८.३३९॥
अन्त के दो शुक्लध्यान (सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरकक्रियानिवर्ति) क्रमश: सयोग केवली और अयोग केवली के होते है।
The last 2 meditation (infallible state of pure meditation and cessation of activity) arises in omniscients only.
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पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रत्पातिव्युपरतक्रियानिवर्तीनि॥३९॥
पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, शुक्ल ध्यान है चार।
सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति है, ध्यान उच्च विचार॥
व्युपरतक्रियानिवर्ति भी, शुक्ल ध्यान का भेद।
उच्च स्थान ही पा सके, जिनवाणी का वेद॥९.३९.३४०॥
शुक्ल ध्यान के चार भेद है:
The four type of pure concentration are:
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त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम्॥४०॥
प्रथम तीन हो योग में, द्वी किसी एक योग।
तीसरा काय योग में, चौथा मिले अयोग॥९.४०.३४१॥
पहला शुक्ल ध्यान तीनों योगों में होता है। दूसरा तीनों में से किसी एक योग में होता है। तीसरा काय योग वाले के और चौथा अयोगी केवलियों के होता है।
Four type of pure meditation is soul with three activities, one activity, bodily activity and no activity respectively.
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एकाश्रये सवितर्कवीचारे पूर्वे॥४१॥
प्रथम दो श्रुत केवली, आश्रय एक विचार।
शुक्ल ध्यान सहित सदा, वितर्क और वीचार॥९.४१.३४२॥
आरंभ के दो शुक्लध्यान एक परिपूर्ण श्रुत केवली के ही होते हैं इसलिए दोनों का आश्रय एक ही है। वे वितर्क और वीचार सहित होते है।
The first two types of pure meditation is to scriptural knower and associated with contemplation and conceptual meditation.
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अवीचारं द्वितीयम्॥४२॥
शुक्लध्यान एकत्ववितर्क, रहित रहे वीचार।
लेकिन होता है सवितर्क, जैन आगम विचार॥९.४२.३४३॥
एकत्ववितर्क शुक्लध्यान वीचार से रहित किन्तु सवितर्क होता है।
The second type of pure meditation is free from shifting.
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वितर्क: श्रुतम्॥४३॥
श्रुत ज्ञान वितर्क कहा, तार्किक हो विचार।
विचार ही वितर्क है, श्रुत ज्ञान आधार॥९.४३.३४४॥
श्रुत ज्ञान को वितर्क कहते है। विशेषरुप से तर्क अर्थात् विचार करने को वितर्क कहते है।
Contemplation is scriptural knowledge.
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वीचारोऽर्थव्यञ्जनयोगसङ्क्रान्ति:॥४४॥
अर्थ व्यञ्जन योग बदल, कहलाता वीचार।
प्रथम शुक्ल ध्यान हो, शेष नहीं वीचार॥९.४४.३४५॥
अर्थसंक्रान्ति, व्यञ्जनसंक्रान्ति और योगसंक्रान्ति को वीचार कहते है। यह वीचार मात्र प्रथम शुक्ल ध्यान में होता है।
Conceptual meditation is with regard to object, words and activities.
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सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिना: क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जरा:॥४५॥
क्रम से असंख्यात गुणा, रहे निर्जरा जान।
सम्यग्दृष्टि, श्रावक हो, विरतमुनि का ज्ञान॥
संयोजन अनन्तानुबंधी, क्षय हो दर्शन मोह।
उपशम श्रेणी जो चढे, उपशान्त हो मोह॥
क्षपक श्रेणी मुनि चढे, क्षीणमोह हो जाय।
जिनेन्द्र देव की निर्जरा, उत्तरोत्तर बढ जाय॥९.४५.३४६॥
सम्यग्दृष्टि पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक, विरत मुनि, अनन्तानुबंधी का विसंयोजन करने वाला, दर्शन मोह का क्षय करने वाला, उपशमश्रेणी चढ़ने वाले, उपशान्तमोह, क्षपकश्रेणी चढ़ने वाले, क्षीणमोह और जिनेन्द्र देव इन सब के प्रति समय क्रम से असंख्यातगुणा निर्जरा होती है।
The dissolution of karma increases innumerable fold from stage to stage from right believer, the householder with partial vows, the ascetic with great vows, the separator of passions, the destroyer of faith deluding karmas, the saint with quiescent passions, the destroyer of delusion, the saint with destroyed delusion and spiritual victor.
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पुलाकबकुशकुशीलनिर्ग्रन्थस्नातका निर्ग्रनथा:॥
पाँच भेद निर्ग्रन्थ मुनि, पुलाक बकुल कुशील।
निर्ग्रन्थ व स्नातक भी, मुनि है संयमशील॥ ९.४७.३४८॥
पाँच प्रकार के निर्ग्रन्थ है।
Passionless saints are of 5 types
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संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिंगलेश्योपपादस्थानविकल्पत: साध्या:॥४७॥
संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिंग भी जान।
मुनि भेद लेश्या करे, उपपाद और स्थान॥९.४७.३४८॥
निम्न आठ प्रकार से पुलाकादि मुनियों में भेद है।
Previously mentioned Pulaka etc saints can be differentiated with following 8 differences.
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