मोहक्षयाज्ज्ञाननदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम्॥१॥
मोह का हो क्षय प्रथम, फिर क्षय तीनों साथ।
ज्ञानदर्शन आवरण, अन्तराय नहीं हाथ॥१०.१.३४९॥
मोहनीय कर्म के क्षय से व ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म के एक साथ क्षय होने से केवल ज्ञान प्रकट होता है।
Perfect knowledge is attained by destruction of deluding karma first and destruction of knowledge covering karma, faith covering karma and obstructive karma simultaneously.
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बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्ष:॥२॥
मोक्ष क्या है जानिये, कारण बंध अभाव।
निर्जरा भी पूर्ण हो, हो सब कर्म अभाव॥१०.२.३५०॥
बंध के कारणों का अभाव तथा निर्जरा से समस्त कर्मो का पूर्णत: अभाव हो जाना ही मोक्ष है।
Moksha is attained by absence of reasons of bondage and shedding of karmas completely.
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औपशमिकादिभव्यत्वानां च॥३॥
उपशमिक क्षायोपशमिक, औदयिक ना भाव।
भव्यत्व का भी भाव ना, मोक्ष पूर्ण अभाव॥१०.३.३५१॥
जीव के औपशमिकादि भाव तथा भव्यत्व भाव का मोक्ष में अभाव होता है।
Liberated soul is devoid of subsidence of karma, subsidence and destruction of karma, rise of karma and worthy of liberation state.
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अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्य:॥४॥
क्षायिक सम्यक्त्व रहे, केवल दर्शन ज्ञान।
सिद्धत्व भी साथ हो, अन्य भाव ना जान॥१०.४.३५२॥
मुक्त जीव के क्षायिक सम्यक्त्व, केवल ज्ञान, केवल दर्शन और सिद्धत्व इन भावों के अलावा अन्य भावों का अभाव हो जाता है।
Liberated soul to have infinite faith, infinite knowledge, infinite perception and infinite perfection.
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तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात्॥५॥
तदनन्तर ऊर्द्धव गमन, मुक्त जीव की चाल।
अन्त लोक पहुँच कर, ठहरे अनन्तकाल ॥१०.५.३५३॥
तदनन्तर मुक्त जीव लोक के अन्त तक ऊपर जाता है।
Immediately after that soul rockets upto the end of lokakash.
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पूर्वप्रयोगादसंगत्वाद्बनधच्छेदात् तथागतिपरिणामाच्च॥६॥
पूर्व प्रयोग से जीव गमन, संगत होय अभाव।
टूटे बन्धन है सभी, ऊर्ध्वगमन स्वभाव॥१०.६.३५४॥
पूर्व प्रयोग से, संग का अभाव होने से, बन्धन के टूटने से और ऊर्ध्वगमन स्वभाव होने से मुक्त जीव ऊर्ध्व गमन करता है।
Their are 4 reasons of going to the top of lokakash:
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आविद्धकुलालचक्रवद्वयपगतलेपालाबुवदेरण्डबीजवदग्निशिखावच्च॥७॥
ज्यूँ कुम्हार का चक्र है, तुम्बी लेप न जान।
बीज एरण्डी उछलते, अग्नि चल आसमान॥१०.७.३५५॥
वह मुक्त जीव घुमाये गये कुम्हार के चक्के के समान, लेप से मुक्त तुम्बी के समान, एरण्ड के बीज के समान और अग्नि की शिखा के समान ऊर्ध्वगमन करता है।
Above 4 reasons explained with example:
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धर्मास्तिकायाभावात्॥८॥
शिष्य करता प्रश्न है, उमा स्वामी समझाय।
अलोक विचरण हो नहीं, नहीं धर्मास्तिकाय॥१०.८.३५६॥
वह मुक्त जीव धर्मास्तिकायका अभाव होने से लोकान्त से और ऊपर नहीं जाता।
It can’t go beyond lokakash because there is no medium of motion in alokakash.
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क्षेत्रकालगतिलिंगतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धबोधितज्ञानावगाहनान्तरसंख्याबहुत्वत: साध्या:॥९॥
सिद्ध जीव के भेद है, क्षेत्र, गति और काल।
लिंग, तीर्थ, चारित्र भी, हरेक बुद्ध का जाल।
बोधित बुद्ध अनेक है, अवगाहन है ज्ञान।
अन्तर, संख्या, अल्पबहु, अन्तर यह पहचान॥१०.९.३५७॥
सिद्ध जीव के भेद:
The emancipated soul can be differentiated with reference to
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