मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतव:॥१॥
पाँच कारण कर्म बंध के, मिथ्यादर्शन भाव।
अविरति और प्रमाद भी, कषाय योग प्रभाव॥८.१.२७६॥
कर्म बंध के पाँच कारण है:
१। मिथ्यादर्शन
२। अविरति
३। प्रमाद
४। कषाय
५। योग
5 reason of bondage of karma
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सकषायत्वाज्जीव: कर्मणो योग्यान् पुद्गलानादत्ते स बन्ध:॥२॥
बंध क्या है कर्म का, ले अब यह तू जान।
कर्म पुद्गल ग्रहण करे, जब कषाय संग आन॥८.२.२७७॥
कषाय सहित होने से जीव कर्म के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है वह बंध है।
When soul (JEEV) is infected with passion (kasay), it attracts particles of karma (karman pudgal) which is called bondage (Bandh).
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प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशास्तद्विधय:॥३॥
है प्रकृति और स्थिति भी, बंध के चार प्रकार।
अनुभाग व प्रदेश भी, जैन दर्शन विचार॥८.३.२७८॥
वह बंध चार प्रकार का है:
१। प्रकृति बंध
२। स्थिति बंध
३। अनुभाग बंध
४। प्रदेश बंध
This bondage is of 4 types.
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आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तराया:॥४॥
ज्ञानदर्शन आवरण, कर्म वेदनीय पाठ।
मोह आयु नामो कर्म, गोत्र अंतराय आठ॥८.४.२७९॥
प्रकृति बंध के ८ भेद है:
१। ज्ञानावरण
२। दर्शनावरण
३। वेदनीय
४। मोहनीय
५। आयु
६। नाम
७। गोत्र
८। अन्तराय
Bondage of karmic nature is of 8 types:
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पञ्चनवद्व्यष्टावंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद् द्विपञ्चभेदा यथाक्रमम्॥५॥
पाँच, नौ, दो, है क्रम से, अट्ठाईस और चार।ब्यालीस व दो भेद है, पाँच भेद विचार॥८.५.२८०॥
इन आठ कर्मो के क्रमश: पाँच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, ब्यालीस, दो और पाँच भेद होते है।
The subdivisions are five, nine, two, twenty eight, four, forty two, two and five respectively.
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मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानाम्॥६॥
पाँच आवरण ज्ञान के, मति श्रुत अवधि जान।
मन:पर्यय व केवल भी, भेद आवरण ज्ञान॥८.६.२८१॥
ज्ञानावरण के ५ भेद है:
१। मतिज्ञानावरण
२। श्रुतज्ञानावरण
३। अवधिज्ञानावरण
४। मन:पर्यय ज्ञानावरण
५। केवलज्ञानावरण
5 kinds of knowledge obscuring karma are as follow:
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चक्षुरचक्षुरवधिक्वलानां निद्रानिद्रानिद्राप्रचलाप्रचलाप्रचलास्त्यानगृद्धयश्च॥७॥
चक्षु अचक्षु केवल अवधि, निद्रा प्रचला भेद।
गहरी नींद या झपकी, चले नींद नव भेद॥८.७.२८२॥
दर्शनावरण कर्म के ९ भेद है:
१। चक्षु दर्शनावरण
२। अचक्षुदर्शनावरण
३। अवधिदर्शनावरण
४। केवलदर्शनावरण
५। निद्रा
६। निद्रानिद्रा
७। प्रचला
८। प्रचलाप्रचला
९। स्त्यानगृद्धि – नींद में कार्य करना
9 kinds of faith covering karma:
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सदसद्वेद्ये॥८॥
वेदनीय साता रहे, असाता भी संसार।
वेदनीय के भेद दो, अंत समय तक भार॥८.८.२८३॥
वेदनीय कर्म के २ प्रकार है
१। सातावेदनीय
२। असातावेदनीय
2 kinds of feeling covering karma:
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दर्शनचारित्रमोहनीयाकषायकषायवेदनीयाख्यास्त्रिद्विनवषोडशभेदा:सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयान्यकषायकषायौहास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुन्नपुंसकवेदाअनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनविकल्पाश्चैकश: क्रोधमानमायालोभा:॥९॥
सम्यक्त्व मिथ्यात्व मिश्र भी, नोकषाय नौ जान।
चार कषाय व चौकड़ी, अट्ठाईस यह मान॥८.९.२८४॥
दर्शनमोहनीय के तीन भेद:
१। सम्यक्त्व मोहनीय
२। मिथ्यात्व मोहनीय
३। सम्यग्मिथ्यात्व मोहनीय
चारित्रमोहनीय के दो भेद:
१। अकषायवेदनीय और
२। कषायवेदनीय
अकषायवेदनीय के ९ भेद
१। हास्य
२। रति
३। अरति
४। शोक
५। भय
६। जुगुप्सा
७। स्त्रीवेद
८। पुरुषवेद
९। नपुंसकवेद
कषायवेदनीय के १६ भेद:
१। अनन्तानुबंधी (क्रोध, मान, माया, लोभ)
२। अप्रत्याखान (क्रोध, मान, माया, लोभ)
३। प्रत्याख्यान (क्रोध, मान, माया, लोभ)
४। संज्ललन (क्रोध, मान, माया, लोभ)
Faith Obscuring karma are of 3 types:
Conduct deluding is of 2 types:
Quasi passion feelings are of 9 kinds
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नारककतैर्यग्योनमानुषदैवानि॥१०॥
नर्क तिर्यंच और मनुज, देव आयु पहचान।
चार भेद है आयुकर्म, कर्म बंध का ज्ञान॥८.१०.२८५॥
आयुकर्म के ४ भेद:
१। नर्क आयु
२। तिर्यंच आयु
३। मनुष्य आयु
४। देव आयु
Life karma are of 4 kinds:
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गतिजातिशरीरांगोपांगनिर्माणबंधनसंघातसंस्थान-
संहननस्पर्शरसगंधवर्णानुपूर्व्यागुरुलघूपघात-
परघातातपोद्योतोच्छ्वासविहायोगतय:-
प्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्ति-
स्थिरादेययश:कीर्तिसेतराणी तीर्थकरत्वं च॥११॥
गति जाति व शरीर मिले, नामकर्म पहचान।
अंगोपांग बंधन भी, संघात संस्थान॥
संहनन स्पर्श रस व गंध, वर्ण आनुपूर्व पात।
विहायोगति निर्माण भी, अगुरुलघु व उपघात॥
परघात व आतप मिले, उद्योत व उच्छवास।
तीर्थंकर की गति मिले, नामकर्म है खास॥
तन अलग साधारण या, त्रस स्थावर भेद।
सुभग-दुर्भग सुस्वर दुस्वर, शुभ अशुभ का भेद॥
तन बादर व सूक्ष्म मिले, पर्याप्त या ना पाय।
स्थिर आदेय यश मिले, या उल्टा मिल जाय॥८.११.२८६॥
नामकर्म के ४२ भेद है।
नाम कर्म की पिण्ड प्रकृति १४
नाम कर्म की प्रत्येक प्रकृति ८
नामकर्म के १० जोड़े
The name Karma has 42 types divisions:
The state of existence, class, body, body parts, formation, binding, molecular inter fusion, structure, joints, touch, taste, smell, colour, migratory form after death, neither heavy nor light, self annihilation, annihilation by others, emitting warm light, emitting cool light, respiration, gait. 10 duals with opposites. Individual body and collective body, mobile and immobile, good tempered and bad tempered, melodious voice and unmelodious voice, attractiveness of form and unattractiveness, minute body and gross body, completion and incompletion, firmness and infirmness, lustrous and lustreless, glory and obscurity.
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उच्चैर्नीचैश्च॥१२॥
गोत्र कर्म के भेद दो, उच्च नीच हो हाल।
कर्मो की महिमा बड़ी, जीव बंधे चिरकाल॥८.१२.२८७॥
गोत्र कर्म के दो भेद है। उच्च गोत्र व नीच गोत्र
Status determining karma have 2 divisions. High status and low status.
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आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिशंत्सागरोपमकोटीकोट्य: परा स्थिति:॥१४॥
ज्ञान दर्शन आवरण, वेदनीय अन्तराय।
तीस कोटि है अधिकतम, सागर में बस जाय॥८.१४.२८९॥
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय (शुरु के तीन) और अन्तराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटि कोटि सागरोपम है।
Knowledge covering, faith covering, feeling producing and obstructive karma has maximum duration of thirty sagaropama kotakoti.
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सप्ततिर्मोहनीयस्य॥१५॥
सत्तर कोटाकोटि है, सागर अटके जान।
मोहनीय से अधिकतम, बंध मिले पहचान॥८.१५.२९०॥
मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटाकोटि सागरोपम है।
Maximum Duration of deluding karma is seventy kotakoti sagaropam.
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विशंतिर्नामगोत्रयो:॥१६॥
कोटाकोटी बीस है , सागर अटके जान।
नाम गोत्र अरु कर्म का, बंधन है पहचान॥८.१६.२९१॥
नाम और गोत्र कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटाकोटि सागरोपम है।
Maximum duration of name and status karma is twenty kotakoti sagaropam.
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त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणयायुष:॥१७॥
तैतीस कोटाकोटि है, सागर अटके जान।
आयु कर्म का अधिकतम, बंधन है पहचान॥८.१७.२९२॥
आयु कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम है।
Maximum duration of life determining karma is thirty three sagaropam.
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अपरा द्वादश मुहूर्ता वेदनीयस्य॥१८॥
कर्म वेदनीय की स्थिति, बारह मुहूर्त जान।
इससे कम बंधन नहीं, वेदन की पहचान॥८.१८.२९३॥
वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है।
The minimum duration of feeling producing karma is twelve muhurta.
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नामगोत्रयोरष्टो॥१९॥
नाम गोत्र अरु कर्म की, आठ मुहूर्त जान।
इससे कम बंधन नहीं, जघन्यता पहचान॥८.१९.२९४॥
नाम और गोत्र कर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त है।
The minimum duration of name and status determining karma is eight muhurta.
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शेषणामन्तर्मुहूर्ता ॥२०॥
ज्ञान दर्शन मोह कर्म, अन्तर्मुहूर्त जान।
अन्तराय आयु कर्म भी, स्थिति जघन्य समान॥८.२०.२९५॥
बाक़ी के पाँच ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय,अन्तराय और आयु कर्मो की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है।
The minimum duration of knowledge obscuring, faith obscuring, deluding, obscuring and age karma is upto one muhurta.
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विपाकोऽनुभव:॥२१॥
विविध यहाँ पे कर्म फल, कहलाते हैं पाक।
निर्जरा होती रहती, कर्मो की हो फाँक॥८.२१.२९६॥
विविध प्रकार का जो पाक (फल) है सो अनुभव है।
Fruition is the ripening or maturing of karmas.
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स यथानाम ॥२२॥
कर्मो की जब बात करे, बंध बंधे अनुभाग।
कर्म नाम अनुसार ही, बंटते अलग विभाग॥८.२२.२९७॥
यह अनुभाग बंध कर्मो के नाम के अनुसार ही होता है।
The nature of fruition is according to the names of the karmas.
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ततश्च निर्जरा॥२३॥
उदित कर्म होते जभी, हो निर्जरा शुरुआत।
होती आत्मा से अलग, जिन आगम की बात॥८.२३.२९८॥
उदय में आने के बाद कर्म आत्मा से पृथक् हो जाते है।
After fruition, the karma fall off.
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नाम प्रत्यया: सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाहसिथिता: सर्वात्मप्रदेष्वनन्तानन्तप्रदेशा:॥२४॥
प्रदेश बंध को समझ ले, एकक्षेत्रअवगाह।
आत्मा कर्म मिले जुले, मिले योग से राह॥८.२४.२९९॥
ज्ञानावरणादि कर्म प्रकृतियों के कारण, सर्व तरफ़ से योग विशेष से सूक्ष्म एकक्षेत्रअवगाहरुप स्थित और सर्व आत्म प्रदेशों में जो कर्म पुद्गल के अनन्तानन्त प्रदेश है सो प्रदेश बंध है।
The minute karmic molecules of infinite times and infinite space points always pervade in a subtle form the entire space points of soul in every birth.
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सद्वेद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् ॥२५॥
साता वेदनीय कर्म है, पुण्य प्रकृति जान।
शुभ आयु शुभ नाम भी, शुभ गोत्र पहचान॥८.२५.३००॥
साता वेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम और शुभ गोत्र ये पुण्य प्रकृतियाँ है।
The food variety of feeling producing karmas, auspicious life,auspicious name and auspicious status constitute merit (punya).
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अतोऽन्यत्पापम्॥२६॥
पुण्य प्रकृतियाँ छोड़कर, बाक़ी सब है पाप।
बंधन में बंधना नहीं, बात समझलो आप॥८.२६.३०१॥
इन पुण्य प्रकृतियों से अन्य पाप प्रकृतियाँ है।
The remaining varies of karma constitutes demerit (paap).
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