Nectar Of Wisdom

हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिर्व्रतम्॥१॥

पाप से जो रहित करे, व्रत है उसका नाम।
चोरी हिंसा झूठ चोरी कहे, कुशील, परिग्रह काम॥७.१.२३७॥

हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील व परिग्रह इन पाँच पापो से रहित होना व्रत है।

Be free from five sins such as violence, lies, stealing, bad character and possessions is observing vows.

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देशसर्वतोऽणुमहती॥२॥

पाँच पाप के भेद दो, सकल, आंशिक त्याग।
आंशिक को अणुव्रत कहा, सकल महाव्रत त्याग॥७.२.२३८॥

उक्त पाँचों पापों के एक देश त्याग को अणुव्रत कहते हैं और पूरी तरह त्याग को महाव्रत कहते है।

These vows is of two types. Partial and complete.

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तत्स्थैर्यार्थं भावना: पञ्च पञ्च॥३॥

स्थिर व्रत को कर सके, प्रति भावना पाँच॥
अहिंसा सत अचौर्य हो, शील अपरिग्रह आँच॥७.३.२३९॥

उक्त व्रतों की स्थिरता के लिए प्रत्येक व्रत की पाँच पाँच भावनायें हैं।

For the stability of these vows there are five observances in each.

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वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्ष्पणसमित्यालोकित पानभोजनानि पञ्च॥४॥

गुप्ति मन और वचन की, निक्षेपण आदान।
अहिंसा व्रत ईर्या समिति, सतर्क भोजन पान॥७.४.२४०॥

वचन गुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और आलोकितपानभोजन ये अहिंसा व्रत की पाँच भावनायें है।

To observer non-violence:

  1. Control on speech
  2. Control on thoughts
  3. Cautious in movements
  4. Cautious in taking and placing things
  5. Cautious in eating and drinking

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क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याखानान्यनुवीचिभाषणं च पञ्च ॥५॥

क्रोध लोभ भय हास्य का, करता है जो त्याग।
सत्य व्रत की भावना, वचन शास्त्र अनुराग॥७.५.२४१॥

क्रोध लोभ भय और हास्य का त्याग और शास्त्र के अनुसार बोलना ये सत्य व्रत की पाँच भावनायें है।

To observe truthfulness:

  1. Renunciation of anger
  2. Renunciation of greed
  3. Renunciation of fear
  4. Renunciation of humour
  5. Speaking as per scriptures

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शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्यशुद्धि सधर्माविसंवादा: पञ्च॥१६॥

रह सुनसान निर्जन जगह, रोक टोक ना जान।
भिक्षाशुद्धि, विवाद नहीं, अचौर्य भाव सम्मान॥७.६.२४२॥

जहाँ कोई न रहता हो (शून्यागारावास), किसी ने जगह छोड़ती हो वहाँ रहना (विमोचितावास), दूसरों को ठहरने से नहीं रोकना (परोपरोधाकरण), भिक्षा की शुद्धि और सधर्मियो से विवाद न करना ये पाँच अचौर्य की भावनायें हैं।

Living in either lonely place or deserted by someone, causing no hindrance to other, accepting clean and pure food, not having argumentative fight with colleagues in dharma are five non-staling vows.

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स्त्रीरागकथाश्रवण तन्मनोहरांगनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टरस स्वशरूरसंस्कारत्यागा: पञ्च॥७॥

अंग दर्शन ना कथा, नहीं याद संभोग।
इष्ट रस नहीं गर्व स्व, ब्रह्मचर्य का योग॥७.७.२४३॥

स्त्रियों में राग पैदा करने वाली कथा सुनने का त्याग, स्त्रियों के मनोहर अंगों को देखने का त्याग, पूर्व भोगों के स्मरण का त्याग, गरिष्ठ और इष्ट रस का त्याग तथा अपने शरीर के संस्कार का त्याग ये पाँच ब्रह्मचर्य व्रत की भावनायें है।

Non-listening of stories which excites attachment for women, looking at beautiful part of bodies of women, remembering earlier sexual pleasures, eating food which arouse sexual desires and adornment of own body are five celibacy vows.

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मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पञ्च॥८॥

राग द्वेष का भाव नहीं, बुरा न अच्छा भान।
इन्द्रिय विषय दूर रहे, अपरिग्रहव्रत जान॥७.८.२४४॥

मनोज्ञ और अमनोज्ञ इन्द्रियों के विषयों में क्रम से राग और द्वेष का त्याग करना ये अपरिग्रहव्रत की पाँच भावनायें है।

Giving up attachment to likeable objects or aversion for non-likeable objects to five senses constitutes five non-possession vow.

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हिंसादिष्विहामुत्रापाया वद्यदर्शनम्॥९॥

चोरी हिंसा झूठ कहे, कुशील परिग्रह काम।
निन्दा और विनाश हो, भाव त्याग हो नाम॥७.९.२४५॥

हिंसादि पाँच पाप इस लोक में और परलोक में विनाशकारी और निन्दनीय है। इसके त्याग की भावना भानी चाहिए।

The consequence of violence etc sins brings destructible results in this world or next world.

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दु:खमेव वा॥१०॥

चोरी हिंसा झूठ कहे, कुशील परिग्रह काम।
जीवनभर दुख ही रहे, भाव त्याग हो नाम॥७.१०.२४६॥

अथवा ये हिंसादि पाप दु:खरुप ही है। ऐसी भावना भाना चाहिए।

And brings suffering only.

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मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थ्यानि च सत्त्वगुणाधिकक्लिश्यमानाविनेयेषु॥११॥

मैत्री हो सब जीव से, गुणी हर्ष का भाव।
करुणा करु जीव दुखी, अविनयी तटस्थ भाव॥७.११.२४७॥

समस्त प्राणियों से मित्रता की भावना, गुणवानों के प्रति प्रमोदभाव, दुखी जीवों के प्रति करूणाभाव और अविनयी उद्दण्ड लोगों के प्रति माध्यस्थ भाव रखना चाहिए।

Keep Friendship feeling for all living being, feeling of joy for all virtuous people, compassion for suffering beings and neutral feeling for impolite people.

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जगत्कायस्वभावौ वा संवेगवैराग्यार्थम्॥१२॥

संसार चक्र का भय रहे, शरीर दुखी स्वभाव।
वैराग्य की जो चाह हो, मन में हर पल भाव॥७.१२.२४८॥

संवेग और वैराग्य के लिए जगत और शरीर के स्वभाव का विचार करते रहना चाहिए।

For detachment continuously keep in mind the fear of cycle of birth and death and suffering of this body.

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प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा॥१३॥

जीव हिंसा होती क्या, तू ले अब यह जान।
मन वचन और काय से, प्रमादवश हर प्राण॥७.१३.२४९॥

प्रमाद द्वार मन वचन व काया से किसी के प्राणों को हर लेना हिंसा है।

Taking life of someone with carelessness of thoughts, words and actions is called violence (hinsa).

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असदभिधानमनृतम्॥१४॥

क्या असत् है बोलना, तू ले अब यह जान।
योग और प्रमाद से, करता झूठ बखान॥ ७.१४.२५०॥

प्रमाद द्वार मन वचन व काया से असत्य बोलना झूठ है।

Speaking lie with carelessness of thoughts, words and actions is called falsehood.

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अदत्तादानं स्तेयम्॥१५॥

चोर कला किसको कहे, तू ले अब यह जान।
योग और प्रमाद से, ग्रहण वस्तु अंजान॥७.१५.२५१॥

प्रमाद द्वार मन वचन व काया से बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण करना चोरी है।

Taking anything with carelessness of thoughts, words and actions is called stealing.

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मैथुनमब्रह्म॥१६॥

ब्रह्मचर्य का अर्थ क्या, तू ले अब यह जान।
योग और प्रमाद से, मैथुन अब्रह्म मान॥७.१६.२५२॥

प्रमाद द्वार मन वचन व काया से मैथुन सेवन करना कुशील (अब्रह्म) है।

Sexual indulgence with carelessness of thoughts, words and actions constitutes absence of chastity.

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मूर्च्छा परिग्रह:॥१७॥

परिग्रह का है अर्थ क्या, तू ले अब यह जान।
ममता का हो भाव जहाँ, परिग्रह की पहचान॥७.१७.२५३॥

प्रमाद द्वार मन वचन व काया से ममत्व परिणाम होना परिग्रह है।

Attachment to anything with carelessness of thoughts, words and actions is called possessiveness (parigrahi).

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नि:शल्यो व्रती॥१८॥

काँटा है मिथ्यात्व भी, माया और निदान।
जीव नहीं वो कर सके, व्रत आदि का पान॥७.१८.२५४॥

जो शल्य रहित हो उसे व्रती कहते है। शल्य तीन कहे गये है। मिथ्यात्व, माया और निदान।

The votary is free from stings. There are 3 stings. Wrong belief, deceiving, anxiety for fulfilling desires (nidaan).

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अगार्यनगारश्च॥१९॥

गृहस्थ अगारी जानते, संत अनगारी जान।
व्रती के प्रकार दो, श्रावक साधु मान॥७.१९.२५५॥

गृहस्थ (अगारी) और संत (अनगारी) दो प्रकार के व्रती होते है।

Votaries are of two types. House holder (Shravak). House less ascetic (muni).

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अणुव्रतोऽगारी॥२०॥

अणुव्रत धारण करे, श्रावक वह कहलाय।
व्रतों की न कठोरता, गृहस्थ पालन भाय॥७.२०.२५६॥

जो गृहस्थ अणुव्रतों का पालन करता है वो अगारी है।

One who observes partial vows is called a shravak (house holder).

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दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागव्रतसंपन्नश्च॥२१॥

दिग देश अनर्थदण्ड विरति, सामायिक उपवास।
रोक भोगोपभोग की, अतिथि आदर ख़ास॥७.२१.२५७॥

दिग्विरति, देशविरति, अनर्थदण्डविरति, सामायिक व्रत, प्रोषधोपवासव्रत, भोगपरिभोगपरिमाणाव्रत और अतिथिसंविभागव्रत इन सात व्रतों सहित गृहस्थ अणुव्रती होता है।

Shravak follows following 7 additional vows to be anuvarti (minor vows).

  1. Abstaining from activity with regard to direction
  2. Abstaining from activity with regard to area
  3. Abstaining from activity with regard to purposeless activity
  4. Samayik ( periodical concentration)
  5. Fasting at regular intervals
  6. Limiting consumption and use of reconsumable things
  7. Feeding ascetics and guests

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मारणान्तिकीं सल्लेखनां जोषिता ॥२२॥

मरण समाधि चाह रहे, अंत समय जब आय।
जोश भरी सल्लेखना, मोक्ष मार्ग को पाय॥७.२२.२५८॥

मरणकाल आने पर समाधिमरण व्रत का प्रीतिपूर्वक सेवन करना चाहिए।

The householder seeks with pleasure voluntary death (sallekhana) at the end of his life.

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शंकाकांक्षाविचिकित्सान्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवा: सम्यग्दृष्टेरतीचारा:॥२३॥

शंका कांक्षा घृणा रहे, दर्शन अन्य विचार।
अन्य दृष्टि स्तवन रहे, सम्यग्दृष्टि अतिचार॥७.२३.२५९॥

शंका, कांक्षा, घृणा, अन्यदृष्टि प्रशंसा और अन्यदृष्टि का स्तवन ये पाँच सम्यग्दृष्टि जीव के अतिचार है।

Right believer knows about five violations and avoid them:

  1. Doubt in Jinvaani
  2. Desire for worldly enjoyments
  3. Feeling of disgust
  4. Admiration of wrong faith
  5. Worshiping wrong faith

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व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम्॥२४॥

उल्लंघन हो जब नियम का, कहलाता अतिचार।
व्रत शील प्रत्येक का, पाँच पाँच अतिचार॥७.२४.२६०॥

व्रत और शीलों में भी क्रम से प्रत्येक में पाँच पाँच अतिचार (उल्लंघन) है।

Vows and supplementary vows have five violations each.

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बन्धवधच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधा:॥२५॥

बंधन वध या छेदन हो, अधिक डाल दे भार।
अन्न जल बाधा करना, अहिंसा व्रत अतिचार॥७.२५.२६१॥

पाँच अहिंसाणुव्रत के अतिचार निम्न है।

१। बान्धना
२। वध करना या पीटना
३। छेदन भेदन करना
४। अधिक भार लादना
५। अन्न पान में बाधा डालना

Non violation vow have following five violations:

  1. Binding
  2. Beating or killing
  3. Mutilating limbs
  4. Overloading
  5. Withholding food and drink

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मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदा:॥२६॥

अफवाहें मिथ्या वचन, त्रुटिलेखन अतिचार।
नहीं धरोहर हड़पना, भेद गुप्त ही सार॥७.२६.२६२॥

सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार:

१। मिथ्या उपदेश
२। रहोभ्याखान- किसी युगल को देख कर अन्यथा सोचना
३। त्रुटिपूर्ण लेखन करना
४। न्यासापहार- किसी की धरोहर को नहीं हड़पना
५। साकारमन्त्र भेद- किसी के गुप्त भेद को खोल देना

Five violations of truthfulness vow:

  1. Wrong teaching
  2. Assumed wrong talk about couple
  3. Forge writing
  4. Misappropriation
  5. Proclaiming others thoughts

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स्तेनप्रयोगतदीह्रतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरुपकव्यवहारा:॥२७॥

चोरी में सहयोग हो, चोरी वस्तु व्यापार।
कर चोरी व तोल गलत, मिलावटी अतिचार॥७.२७.२६३॥

अचौर्याणुव्रत के पाँच अतिचार है:

१। स्तेनप्रयोग – चोरी के लिये किसी को प्रेरणा देना
२। तदाह्रतादान- चोरी की वस्तु लेना
३। विरुद्धराज्यातिक्रम- राज्य के विरुद्ध काम करना
४। हीनाधिक मानोन्मान- कम ज़्यादा तोलना
५। प्रतिरुपक व्यवहार- मिलावट करना

Five violations of non-stealing vow

  1. Prompting others to steal
  2. Accepting stolen goods
  3. Working anti government
  4. Using wrong weights and measures
  5. Adulteration

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परविवाहकरण्त्वरिकापरगृहितापरिगृहितागमनानंगक्रीडाकामतीव्राभिनिवेशा:॥२८॥

पर विवाह रुचिकर लगे, पर नारी व्यभिचार।
अनंग क्रीडा काम तीव्रता, ब्रह्मचर्य अतिचार॥२८॥२६४॥

१। पर विवाह में रुचि लेना
२। पराई विवाहित स्त्री से व्यभिचार
३। पराई अविवाहित स्त्री से व्यभिचार
४। अनंगक्रीडा – काम सेवन के अंग को छोड़कर अन्य अंग से क्रीड़ा
५। मन में काम की तीव्रता के भाव न रखना

Five violations of celibacy vow:

  1. Taking interest in wedding of others
  2. Affair with other married person
  3. Affair with other unmarried person
  4. Using other than designated body parts for intercourse
  5. Excessive sensual feelings

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क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमा:॥२९॥

भूमि मकान रजत सुवर्ण, धन अन्न पशु दास ।
वस्त्र बर्तन हद भंग हो, परिग्रह व्रत का ह्वास॥७.२९.२६५॥

परिग्रहपरिमाण व्रत के पाँच अतिचार:

१। क्षेत्र – वास्तु
२। चांदी सोना
३। धन धान्य
४। दासी दास
५। वस्त्र बर्तन आदि।

Five violations of limits set for non-possession vow:

  1. Land and houses
  2. Gold and silver
  3. Money and crops
  4. Men and women servants
  5. Clothes and utensils

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ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि॥३०॥

ऊपर नीचे व तिर्यक, क्षेत्रिय सीमा पार।
विस्मृति परिमाण की, दिग्व्रत का अतिचार॥७.३०.२६६॥

दिग्विरति व्रत के पाँच अतिचार:

१। ऊपर की ओर अतिक्रम
२। नीचे की ओर अतिक्रम
३। तिरछी दिशा में अतिक्रम
४। क्षेत्र वृद्धि
५। स्मृत्यन्तराधान – भूल जाना

Violation of vow relating to direction:

  1. Exceeding upward limit
  2. Exceeding downward limit
  3. Exceeding horizontal limits
  4. Enlarging the area limits
  5. Forgetting limits set earlier

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आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपा:॥३१॥

मंगाये व भेजे किसे, शब्द संकेत आचार।
वस्तु से आकर्षित करे, देशव्रत अतिचार ॥७.३१.२६७॥

देशव्रत के पाँच अतिचार:

१। आनयन – मर्यादा के बाहर की वस्तु मंगाना
२। प्रेष्यप्रयोग- मर्यादा के बाहर किसी को भेजकर काम कराना
३। शब्दानुपात- आवाज़ से मर्यादा के बाहर अपनी बात को समझाना
४। रूपानुपात- अपनी भावभंगिमा से मर्यादा के बाहर अपनी बात समझाना
५। पुद्गलक्षेपा:- मर्यादा के बाहर कंकर आदि फेंककर अपना काम कर लेना

5 violations of partial renunciation are as follow:

  1. Calling something from outside the limits set.
  2. Commanding someone for outside the limits set
  3. Using sound for outside the limits set
  4. Using body language for outside limit set
  5. Using some thing out of limits set.

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कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि॥३२॥

अशिष्ट वचन, असभ्य करम, अप्रयोजन विचार।
अप्रयोजन योग प्रवृत्ति, अनर्थ संग्रह अतिचार॥७.३२.२६८॥

अनर्थदण्डविरतिव्रत के अतिचार:

१। कन्दर्प – रागसहित अशिष्ट वचन कहना
२। कौत्कुच्य- शरीर की असभ्य चेष्टा करना
३। मौखर्य – बकवास करना
४। असमीक्ष्याधिकरण – बिना प्रयोजन मन वचन काय की प्रवृति करना।
५। उपभोगपरिभोगानर्थक्य -उपभोग परिभोग की वस्तुओं का अनर्थ संग्रह करना।

5 violation of purposeless acts:

  1. Purposeless talks
  2. Purposeless actions
  3. Senseless talks
  4. Purposeless indulging by mind, words and actions.
  5. Accumulation of purposeless things

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योगदु:प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि॥३३॥

मन वचन काय कुचेष्टा, अनुत्साह का भार।
भूल प्रवृत्ति ध्यान नहीं, सामायिक अतिचार॥७.३३.२६९॥

सामायिक व्रत के पाँच अतिचार

१। काय कुचेष्टा
२। वचन कुचेष्टा
३। मन कुचेष्टा
४। सामायिक में अनुत्साह
५। एकाग्रता के अभाव में सामायिक आदि पाठ को भूल जाना।

5 violations of samayik:

  1. Unnecessary use of body
  2. Unnecessary use of words
  3. Unnecessary us of thoughts
  4. Lack of enthusiasm in samayik
  5. Forgetting due to lack of concentration

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अप्रत्यवेक्षिताप्रामार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानि॥३४॥

ना देखे शोधे बिना, उत्सर्ग व्यवहार।
भूल अनादर जो करे, प्रोषध का अतिचार॥७.३४.२७०॥

प्रोषधोपवास व्रत के पाँच अतिचार:

१। अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित उत्सर्ग – बिना देखे बिना शोधे मल मूत्र आदि का क्षेपण
२। अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित आदान- बिना देखे बिना शोधे वस्तु का ग्रहण
३। अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित संस्तरोपक्रमण- बिना देखे बिना शोधे ज़मीन पर कुछ रखना
४। अनादर- उत्साह रहित धर्म कार्य करना
५। स्मृत्यअनुपस्थान- आवश्यक धर्म कार्य को भूल जाना

5 violation during limited ascetic period (Proshadhopavas)

  1. Without inspecting and cleaning discharge of urine etc.
  2. Without inspecting and cleaning accepting any thing
  3. Without inspecting and cleaning keeping something on floor or place.
  4. Following partial asceticism without enthusiasm.
  5. Forgetting necessary actions due to lack of concentration

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सचित्तसम्बन्धसंमिश्राभिषवदु:पक्वाहारा:॥३५॥

सचित्त संबंध मिश्र रहे, अभिषव हो आहार।
अधपका आहार रहे, भोगव्रत अतिचार॥७.३५.२७१॥

भोगोपभोगपरिमाण व्रत के पाँच अतिचार:

१। सचित्त आहार
२। सचित्तसंबंध आहार
३। सचित्तसमिश्र आहार
४। अभिषव आहार
५। दुष्पक्व आहार

5 violations of vow relating to limiting consumption:

  1. Food with living organism
  2. Food related to living organism
  3. Food with mixed living organism
  4. Toxic food
  5. Not properly cooked food.

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सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमा:॥३६॥

सचित्त भोज न दे न ढके, ना पर वस्तु आहार।
अनादर व काल अनुचित, अतिथि व्रत अतिचार॥७.३६.२७२॥

अतिथिसंविभाग व्रत के ५ अतिचार:

१। सचित्त निक्षेप- सचित्त पत्र में भोजन देना
२। सचित्त अपिधान – सचित्त पत्र से ढके भोजन को देना
३। परव्यपदेश- दूसरे की वस्तु को देना
४। मात्सर्य- अनादरपूर्वक देना
५। कालातिक्रम – योग्य काल का उल्लंघन करके देना।

5 violation of sharing food with guest or monks:

  1. Serving on green leave
  2. Covering by green leave
  3. Serving others food
  4. Giving with disrespect
  5. Not giving in right time

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जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानानि॥३७॥

जीवन मरण चाह रहे, स्वजनों से प्यार।
सुख स्मरणों निदान भी, सल्लेखन अतिचार॥७.३७.२७३॥

सल्लेखना व्रत के पाँच अतिचार:

१। जीने की इच्छा रखना
२। शीघ्र मरने की इच्छा करना
३। मित्रों में अनुराग करना
४। भोगे हुए सुखों का स्मरण करना
५। निदान- आगामी सुखों की वांछा करना

5 violations of voluntary death vow:

  1. Desire to live
  2. Desire to die
  3. Affection for friends and family
  4. Remembering pleasures
  5. Longing for pleasures

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अनुग्रहार्थं स्सस्यातिसर्गो दानम् ॥३८॥

भावना उपकार रहे, स्व वस्तु का त्याग।
करे दान महिमा बड़ी, वस्तु से नहीं राग॥७.३८.२७४॥

उपकार के हेतु से धनादि अपनी वस्तुओं का त्याग करना सो दान है।

Charity is the giving up of own item for benefit of others.

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विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेष:॥३९॥

दान की हो विशेषता, बात जान लो चार।
विधि सह वस्तु विशेषता, विशेष दाता पात्र॥७.३९.२७५॥

विधि, द्रव्य, दाता और पात्र की विशेषता से दान में विशेषता होती है।

4 characteristic of making gift or charity worthwhile.

  1. Process of charity
  2. The item itself
  3. Giver
  4. Suitability of receiver.

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