तर्कसंगत या भावनात्मक
हमारा व्यवहार अत्यधिक तर्कसंगत से अत्यधिक भावनात्मक / तर्कहीन के बीच कही होता है । 1 से 9 पैमाने पर हम कह सकते है कि 9 अत्यधिक तर्कसंगत तथा 1 अत्यधिक भावनात्मक के लिए है । गीता इसे बड़ी खूबसूरती से समझाया गया है । हर जीवित प्राणी में 3 गुण होते हैं । राज, तम व सत । इसे रजोगुण की वजह से अत्यधिक तर्कसंगत और तमोगुण की वजह से अत्यधिक भावुक से जोड़ा जा सकता है । यदि आप तर्कसंगत और भावनात्मक के बीच संतुलन बना लेते हैं तो उस स्तिथि को सतोगुण की स्थिति कहा जाएगा ।
हम रजोगुणी, तमोगुणी या सतोगुणी के रूप में कार्य करेंगे यह 4 पहलुओं पर निर्भर करता है । स्वयं, अन्य व्यक्ति, समय और परिस्थितियाँ । मनुष्यों के साथ समस्या यह है कि वे एक ही परिस्थिति में अलग-अलग लोगों के साथ अलग-अलग समय पर अलग-अलग तरीके से बर्ताव कर सकते हैं । इसी वजह से हम अप्रत्याशित हैं ।
व्यक्ति जीन, परवरिश, शिक्षा, अनुभवों और स्वयं के हित द्वारा घड़ा हुआ पुतला है । दूसरे व्यक्ति के साथ हमारी ट्यूनिंग भी बड़ी भूमिका निभाती है । हमारा बदला हुआ व्यवहार यह बताता है कि हम किस दौर से गुजर रहे हैं और हमारी परिस्थितियां हमारे कार्यों और प्रतिक्रियाओं को तय करती है ।
अतः हमारा व्यवहार तथा अन्य व्यक्तियों का व्यवहार समय, स्थिति, व्यक्ति और स्वयं की (भावनाओं और बुद्धि) की जटिलता पर निर्भर करता है । रजोगुणी (तर्कसंगत) या तमोगुणी (भावनात्मक) की तुलना में सतोगुणी (संतुलित व्यक्ति) बनना आसान है ।
तर्क संगत, भावुक हम, करते जो व्यवहार
परिस्थित्तिया, समय, स्वयं , सब है जिम्मेदार
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