२२. द्विविध धर्म सूत्र
दो चेव जिणवरेहिं, जाइजरामरणविप्पमुक्केहिं ।
लोगम्मि पहा भणिया, सुस्समण सुसावगो वा चि ॥1॥
द्वौ चैव जिनवरेन्द्रैः, जातिजरामरणविप्रमुक्तैः।
लोके पथौ भणितौ, सुश्रमणः सुश्रावकः चापि ॥1॥
देव जिनेन्द्र दो पथ कहे, जनम चक्र संहार ।
उत्तम दोनों पथ दिखे, साधु–श्रावक पार ॥2.22.1.296॥
जन्म-जरा-मरण से मुक्त जिनेन्द्रदेव ने इस लोक में दो ही मार्ग बताये हैं- एक है उत्तम श्रमणों का और दूसरा उत्तम श्रावकों का।
Lord Jina, who has conquered birth, old age and death, has spoken of two pathway: one for the virtuous householders and other for the virtuous monks. (296)
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दाणं पूजा मुक्खं, सावय–धम्मे ण सावया तेण विणा ।
झाण–ज्झयणं मुक्खं, जइधम्मे तं विणा तहा सो वि ॥2॥
दानं पूजा मुख्यः, श्रावकधर्मे न श्रावकाः तेन विना।
ध्यानाध्ययनं मुख्यो, यतिधर्मे तं विना तथा सोऽपि ॥2॥
श्रावक पूजन दान–धरम, श्रावक ना बन पाय।
ध्यान अध्ययन धर्म प्रमुख, श्रमण यही उपाय ॥2.22.2.297॥
श्रावक धर्म में दान और पूजा मुख्य है। और श्रमण धर्म में ध्यान व अध्ययन मुख्य है।
Charity and worship are the primary duties in religion of householder; without them, one cannot be sravaka (householder). Meditation and study of scriptures are the primary duties of a virtuous monk; there can be no monk without them.(297)
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सन्ति गेहिं भिक्खूहिं, गारत्था संजमुत्तरा ।
गारत्थेंहिं य सव्वेहिं, साहवो संजमुत्तरा ॥3॥
सन्त्येकेभ्यो भिक्षुभ्यः, अगारस्थाः संयमोत्तराः ।
अगारस्थेभ्यश्च सर्वेभ्यः, साधवः संयमोत्तराः॥3॥
भिक्षु श्रेष्ठ श्रावक से, संयम का आलाप ।
पर कुछ श्रावक है उत्तम, संयम का परताप ॥2.22.3.298॥
शुद्ध आचारी साधु श्रावक से श्रेष्ठ होते है पर शिथिलाचारी साधु से संयमी श्रावक श्रेष्ठ होते है। ।
In some case householders are superior to certain monks in respect of conduct. But as a whole monks are superior in conduct to the householder. (298)
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नो खलु अहं तहा, संजाएमि मुंडे जाव पव्वइत्तए।
अहं णं देवाणुप्पियाणं, अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइय।
दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामि ॥4॥
नो खल्वहं तथा संशक्नोमि मुण्डो यावत् प्रव्रजितुम्।
अहं खलु देवानुप्रियाणाम् अन्तिके पञ्चानुव्रतिकम् सप्तशिक्षा–
व्रतिकं द्वादशविधम् गृहिधर्म प्रतिपत्स्ये ॥4॥
मुण्डित साधु न बन सकँू, कठिन धर्म अनगार ।
उत्तम द्वादशविध करूँ, श्रावक धर्म स्वीकार ॥2.22.4.299॥
जो व्यक्ति मुण्डित होकर अनगारधर्म स्वीकार करने में असमर्थ होता है वह जिनदेव अनुसार पाँच अणुव्रत व सात शिक्षाव्रत के साथ श्रावक धर्म स्वीकार कर ले।
So long as I am not able to take leave of home and become a monk with a shaven head, I accept, in the presence of monks, beloved of gods, to observe the twelve kinds of vows of a householder, viz. five small vows (anuvratas), and seven disciplinary (sikshavratas) vows as prescribed for a layman.(299)
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पंच य अणुव्वदाइं, सत्तयं–सिक्खाउ–देस–जदि–धम्मो ।
सव्वेण व देसेण व तेण जुदो होदि देसजदी ॥5॥
पञ्च च अणुव्रतानि, सप्त तु शिक्षा देशयतिधर्मः ।
सर्वेण वा देशेन वा, तेन युतो भवति देशयतिः ॥5॥
अणुव्रत पालन पाँच कर, शिक्षाव्रत सह सात ।
कुछ या सब कुछ मान ले, श्रावक धर्म कहात ॥2.22.5.300॥
श्रावक आचार में पाँच व्रत व सात शिक्षाव्रत होते हैं। जो व्यक्ति इन सबका या इनमें से कुछ का पालन करता है वो श्रावक कहलाता है।
The religion of a house-holder consists in the observance of the five small vows and the seven disciplinary vows. Ahouse-holder who observes all or some of the vows becomes a partial monk
(i. e., a pious house-holder). (300)
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