Nectar Of Wisdom

अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गला: ॥१॥

धर्म और अधर्म कहा, अजीव जैसी काय।
पुद्गल और आकाश भी, अजीव की पर्याय॥५.१.१६८॥

धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल ये अजीवकाय है।

Medium of motion (Dharm), medium of rest (Adharm), space and matter are non-soul bodies.

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द्रव्याणि ॥२॥

धर्म और अधर्म कहा, होता द्रव्य प्रकार।
पुद्गल और आकाश भी, रहता द्रव्य विचार ॥५.२.१६९॥

धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल ये द्रव्य है।

Medium of motion (Dharm), medium of rest (Adharm), space and matter are substances (dravya).

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जीवाश्च ॥३॥

होते धर्म अधर्म जो, पुद्गल और आकाश।
जीव भी द्रव्य प्रकार है, करले यह आभास॥५.३.१७०॥

जीव भी द्रव्य है।

The souls are also substances.

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नित्यावस्थितान्यरुपाणि ॥४॥

उक्त द्रव्य नित्य है, अवस्थित है और अरुपी है।

जीव अजीव अधर्म धर्म, काल और आकाश।
नित्य अवस्थित अरुपी, द्रव्यगुणी प्रकाश॥५.४.१७१॥

The substances are eternal, fixed and colourless.

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रुपिण: पुद्गला: ॥५॥

पुद्गल रूपी द्रव्य है, मूर्तिक व आकार।
शेष द्रव्य में वर्ण नहीं, जिन भगवान विचार॥५.५.१७२॥

पुद्गल रुपी है।

Matter (pudgal) is with form.

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आ आकाशादेकद्रव्याणि ॥६॥

धर्म अधर्म इक इक ही, है इक भी आकाश।
शेष द्रव्य है एक नहीं, रख ऐसा विश्वास॥५.६.१७३॥

आकाश तक एक एक द्रव्य है।

Medium of motion (Dharm), medium of rest (Adharm) and space (Aakash) are indivisible wholes.

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निष्क्रियाणि च ॥७॥

धर्म अधर्म क्रिया नहीं, है निष्क्रिय आकाश।
शेष द्रव्य विचरण करे, करते इनमें वास॥५.७.१७४॥

धर्म, अधर्म व आकाश निष्क्रिय भी है।

Medium of motion (Dharm), medium of rest (Adharm) and space (Aakash) are also without activity.

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असंख्येया: प्रदेशा: धर्माधर्मैकजीवानाम् ॥८॥

धर्म और अधर्म यहाँ, असंख्यात प्रदेश।
उसी तरह इक जीव के, असंख्यात ही देश ॥५.८.१७५॥

धर्म, अधर्म और एक जीव के असंख्यात प्रदेश है।

Medium of motion (Dharm), medium of rest and one soul have innumerable spaces.

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आकाशस्यानन्ता: ॥९॥

जिसका अंत होवे नहीं, अनन्त वो कहलाय।
प्रदेश अनन्त आकाश में, सब द्रव्य समा जाय॥५.९.१७६॥

आकाश के अनन्त प्रदेश है।

Space (Aakash) have infinite units.

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संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ॥१०॥

पुद्गल सदा प्रदेश तो, असंख्यात संख्यात।
अनन्त प्रदेश पुद्गल कहे, जिन वाणी की बात॥५.१०.१७७॥

पुद्गलों के संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश है।

Matter have numerable, innumerable and infinite space points (pradesh).

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नाणो: ॥११॥

परमाणु का भाग नहीं, कोई नहीं प्रदेश।
स्वयं ही आदि अंत है, जान उसे अप्रदेश॥५.११.१७८॥

अणु के अन्य प्रदेश नहीं होते।

Atom is indivisible unit hence no space point.

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लोकाकाशेऽवगाह: ॥१२॥

जीव अजीव धर्म अधर्म, काल करे आवास।
सभी द्रव्य अवगाह करे, उसे कहो आकाश॥५.१२.१७९॥

इन सभी द्रव्यों का लोकाकाश में अवगाह (स्थान) है।

These substances are located in the space of universe.

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धर्माधर्मयो:कृत्स्ने ॥१३॥

धर्म और अधर्म द्रव्य का, फैले समग्र लोक।
स्थान लोकाकाश है, रह ना सके अलोक॥५.१३.१८०॥

धर्म और अधर्म द्रव्य का अवगाह समग्र लोकाकाश में है।

The media of motion and rest spread in entire universe (Lok- Aakash).

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एकप्रदेशादिषु भाज्य: पुद्गलानाम्॥१४॥

एक प्रदेश, असंख्यात भी, पुद्गल का अवगाह।
एक क्षेत्र अवगाह भी, पुद्गल करे प्रवाह॥५.१४.१८१॥

पुद्गलो का अवगाह एक प्रदेश से लेकर असंख्यात प्रदेशो तक हो सकता हैं।

The forms of matter occupy from one unit of space to innumerable.

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असंख्येयभागादिषु जीवानाम्॥१५॥

असंख्यातवे भाग में, जीव रहे आकाश।
रह सके सम्पूर्ण भी, फैले लोकाकाश॥५.१५.१८२॥

जीवों का अवगाह लोकाकाश के असंख्यातवे भाग से लेकर सम्पूर्ण लोकाकाश तक हो सकता है।

The souls inhabit from one of innumerable parts of the universe space.

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प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत्॥१६॥

जीव प्रदेश असंख्य भी, ज्यूँ प्रदीप प्रकाश।
संकोच व विस्तार करे, प्रदेश लोकाकाश॥५.१६.१८३॥

प्रदेशों के संकोच और विस्तार के कारण लोकाकाश के समान असंख्यात प्रदेशवाला भी एक जीव प्रदीप की तरह असंख्येय एक भाग आदि में रह जाता है।

The soul can contract or expand its space points just like light of lamp.

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गतिस्थित्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरुपकार: ॥१७॥

कार्य ये करना नहीं, निमित्त ही उपकार।
धर्म और अधर्म करे, गति स्थिति उपकार॥५.१७.१८४॥

गति और स्थिति क्रमश: धर्म और अधर्म के उपकार है।

Motion and rest is benevolence of dharma and adharma respectively.

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आकाशस्यावगाह:॥१८॥

धर्म अधर्म जीव पुद्गल, अवगाहन आकाश।
रहने को स्थान दे, उपकार का प्रकाश॥५.१८.१८५॥

अवगाह (स्थान) देना आकाश द्रव्य का उपकार है।

Benevolence of space (Aakash) is to provide accommodation.

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शरीरवाङ्मन:प्राणापना: पुद्गलानाम्॥१९॥

शरीर व मन और वचन, पुद्गल के उपकार।
श्वासोच्छ्वास भी मिली, पुद्गल का सहकार॥५.१९.१८६॥

शरीर, मन, वचन और श्वासोच्छवास पुद्गल के उपकार है।

Body, mind, organ of speech and respiration is benevolence of matter (pudgal).

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सुखद:खजीवितमरणोपग्रहाश्च ॥२०॥

सुख और दुख जीवन में, पुद्गल के उपकार।
जीवन और मरण करे, पुद्गल की पुचकार॥५.२०.१८७॥

इसी प्रकार सुख, दुख, जीवन और मरण में निमित्त होना भी पुद्गलों का जीव के प्रति उपकार है।

Benevolence of matter is also to contribute to pleasure, suffering, life and death of living beings.

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परस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥२१॥

अनुकूल प्रतिकूलता, आपस में उपकार।
एक दूसरे के निमित्त, जीव धर्म का सार॥५.२१.१८८॥

लौकिक अनुकूलता व प्रतिकूलता में परस्पर निमित्त होना यह जीवो का उपकार है।

The benevolence of soul is to help each other.

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वर्तनापरिणामक्रिया: परत्वापरत्वे च कालस्य ॥२२॥

वर्तना, परिणाम क्रिया, परत्व अपरत्व जान।
निमित्त बनता काल है, जिनवर का है ज्ञान॥५.२२.१८९॥

वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व में निमित्त होना ये कालद्रव्य का सभी द्रव्यों पर उपकार है।

Be instrumental for all other substances in their continuity of being, in their changes, movements, priority and non-priority in time, are the functions of time.

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स्पर्शरसगंधवर्णवन्त: पुद्गला:॥२३॥

पुद्गल का है लक्षण क्या, ले इनको पहचान।
स्पर्श, रस, और गंध है, वर्ण भी इसका ज्ञान॥५.२३.१९०॥

पुद्गल स्पर्श, रस, गंध और वर्ण वाला है।

The matter is characterised by touch, taste, smell and colour.

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शब्दबंधसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभ्दतमश्छायाऽऽतपोद्योतवन्तश्च॥२४॥

शब्द, बन्ध, स्थूल सूक्ष्म, संस्थान अंधकार।
छाया, आतप, उद्योत भी, पुद्गल करे साकार॥५.२४.१९१॥

तथा पुद्गल शब्द, बन्ध, सूक्ष्मत्व, स्थूलत्व, संस्थान, अंधकार, छाया, आतप और उद्योत वाले होते है।

Sound, union, fineness, grossness, shape, division, darkness, image, sunshine and moon light are also characteristic of matters.

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अणव: स्कन्धाश्च॥२५॥

पुद्गल द्रव्य स्कंध अणु, दो है भेद प्रकार।
भेद पुद्गल द्रव्य यही, जिन देव का विचार॥५.२५.१९२॥

पुद्गल द्रव्य अणु व स्कंध के भेद से दो प्रकार का है।

Atom and molecules are two main divisions of matter.

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भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते ॥२६॥

स्कन्ध होत उत्पन्न है, होय भेद संघात।
भेद अर्थ है तोड़ना, जोड़े हो संघात॥५.२६.१९३॥

भेद से, संघात से और भेद-संघात से स्कन्ध उत्पन्न होते है।

Molecules are formed by division, union and division-union.

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भेदादणु: ॥२७॥

नहीं भेद जब कर सके, उत्पत्ति अणु की जान।
संघात से अणु न रहे, अणु अभेद पहचान॥५.२७.१९३॥

अणु की उत्पत्ति स्कंधों के भेद से होती है संघात से नहीं।

The atom is produced by division.

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भेदसंघाताभ्यां चाक्षुष: ॥२८॥

स्कन्ध जो हो देखना, लगे भेद संघात॥
चक्षु इन्द्रिय विषय बने, जिन वाणी की बात॥५.२८.१९५॥

भेद और संघात दोनों से स्कंध चक्षु इन्द्रिय का विषय बनता है।

Molecules are perceived by eyes by doing division and union both.

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सत् द्रव्यलक्षणम्॥२९॥

सत् मतलब अस्तित्व रहे, द्रव्य लक्षण पहचान।
जो कभी मिटता नहीं, द्रव्य भेद विज्ञान॥॥५.३०.१९६॥

द्रव्य का लक्षण सत् (अस्तित्व) है।

Existence is the characteristic of substance.

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उत्पाद्रव्यध्रौव्ययुक्तं सत्॥३०॥

सत् को हो जब जानना, तीन अवस्था जान।
उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य भी, निरन्तरता पहचान॥५.३०.१९७॥

जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त है, वह सत् है।

Existence (Sat) is characterised by appearance, disappearance and permanence.

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तद्भावाव्ययं नित्यम्॥३१॥

द्रव्य में है नित्यता, होता नहीं अभाव।
नित्य भाव का व्यय नहीं, नित्यता ही स्वभाव॥५.३१.१९८॥

अपने भाव से जो अलग नहीं होता वही नित्यता है।

Permanence is essential characteristic of the substance. It never destroys.

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अर्पितानर्पितसिद्धे:॥३२॥

मुख्य को अर्पित कहा, अनर्पित होता गौण।
सिद्ध हो वस्तु अस्तित्व, भिन्न भिन्न है कोण॥५.३२.१९९॥

मुख्य को अर्पित और गौण को अनर्पित कहते है। इससे वस्तु की अस्तित्व सिद्ध होता है।

Through main and minor contradictory different point of views are established.

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स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्ध:॥३३॥

चिकनापन है स्निग्धता, रुखा रुक्ष कहलाय।
बंध का ये कारण बने, आपस में बंध जाय॥५.३३.२००॥

स्निग्धत्व (चिकना) और रूक्षत्व (रुखा) से पुद्गलो का बंध होता है।

Sticky and dry properties binds atoms and molecules.

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न जघन्यगुणानाम्॥३४॥

बंध होना संभव नहीं, जघन्य पुद्गल जान।
निकृष्ट को जघन्य कहा, बंध नहीं पहचान॥५.३४.२०१॥

पर जघन्यगुणवाले पुद्गलों का बंध नहीं होता।

There can’t be any combination between the lowest degree of two properties.

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गुणसाम्ये सदृशानाम्॥३५॥

बंध होना संभव नहीं, गुण जो रहे समान।
स्निग्ध- स्निग्ध व रुक्ष-रुक्ष, जब हो एक समान॥५.३५.२०२॥

गुणों की समानता रहने पर भी बंध नहीं होता।

There is no combination possible between equal degrees of same properties.

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द्वयधिकादिगुणानाम् तु॥३६॥

होता बंध संभव तभी, द्वी अधिक गुण जान।
स्निग्ध -स्निग्ध, रुक्ष-रुक्ष हो, या रहे गुण असमान॥५.३६.२०३॥

दो अधिक गुण वाले के साथ ही बंध होता है।

Combination is possible with two different degrees.

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बन्धेऽध्कौ पारिणामिकौ च॥३७॥

परिणमन का नियम है, बंध करे विस्तार।
अधिकगुण वर्चस्व रहे, न्यूनगुण को मार॥५.३७.२०४॥

बन्ध होने पर दो अधिकगुणवाला न्यूनगुणवाले को अपने रुप परिणमन करा लेता है।

In the process of combination the higher degree transform the lower ones.

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गुणपर्ययवत् द्रव्यम्॥३८॥

गुण भी है द्रव्य में, द्रव्य की पर्याय।
द्रव्य के दो चिन्ह है, द्रव्य में रम जाय॥५.३८.२०५॥

गुण और पर्यायवाला द्रव्य होता है।

That which has qualities and modes is a substance.

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कालश्च॥३९॥

जीव अजीव पुद्गल धरम द्रव्य आकाश।
काल को भी द्रव्य कहा, छह द्रव्य का वास॥५.३९.२०६॥

काल भी द्रव्य है।

Time also is a substance.

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सोऽनन्तसमय:॥४०॥

काल के दो भेद है, निश्चय और व्यवहार।
समय इकाई काल की, अनन्त काल विचार॥५.४०.२०७॥

यह काल द्रव्य अनन्त समय वाला है।

Time substance is consisting of infinite instants (samay).

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द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा:॥४१॥

गुण का आश्रय द्रव्य है, द्रव्य गुण आधार।
गुण को निर्गुण कहा, दूजा गुण ना भार॥५.४१.२०८॥

द्रव्य के आश्रय में रहने वाले गुण स्वयं निर्गुण होते है।

Qualities are based on substances but they themselves don’t have any other quality.

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तद् भाव परिणाम:॥४२॥

द्रव्य और गुण भिन्न नहीं, द्रव्य के परिणाम।
निज स्वभाव परिणमन, द्रव्य गुण की काम॥५.४२.२०९॥

द्रव्य या गुणों का होना अर्थात् प्रतिसमय बदलते रहना परिणाम है।

The continuous change in substance (dravya) or it’s qualities (Guna) is present condition (paryay or parinaam).

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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