Nectar Of Wisdom

देवाश्चतुर्ण्काया:॥४.१॥

 

भवनवासी व्यन्तर है, देव चार प्रकार।

ज्योतिष वैमानिक रहे, जिन वाणी के तार॥४.१.१२६॥

देव चार समूह वाले है। भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष, वैमानिक।

The celestial beings are of four classes.

  • Residential Deities
  • Peripatetic Deities
  • Stellar Deities

Heavenly Deities

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आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्या:॥४.२॥

पहले तीन देव कहा, लेश्या होती चार।
कृष्ण, नील, कापोत भी, पीत लेश्य संचार॥४.२.१२७॥

भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिष देवों में कृष्ण, नील, कापोत व पीत लेश्या होती है।

The psychic aura of first 3 classes is black, blue, grey and yellow.

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दशाष्टपंचद्वादशविकल्पा: कल्पोपपन्नपर्यन्ता:॥४.३॥

चार देवों के क्रमश:, कल्पोपपन्न तक भेद।
दस आठ और पाँच है, बारह देव प्रभेद॥४.३.१२८॥

कल्पोपपन्न देवों तक क्रमश: दस, आठ, पाँच और बारह भेद होते है।

They are of ten, eight, five and twelve classes upto heavenly beings.

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इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकश:॥४.४॥

दस प्रकार के देवता, राजा इन्द्र है देव।
त्रायस्त्रिंश सामानिक भी, रहे पारिषद देव॥

लोकपाल व आत्मरक्ष, है अनीक भी देव।
प्रकीर्णक आभियोग्य भी, किल्विषिक भी देव॥४.४.१२९॥

इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश, पारिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक ये दस प्रकार है।

There are ten grades in each of these classes.

  1. Lord
  2. Equals
  3. Ministers
  4. Courtiers
  5. Bodyguards
  6. Police
  7. Army
  8. Citizens
  9. Servants
  10. Menials

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त्रायस्त्रिंशलोकपालवर्ज्जा व्यन्तरज्योतिष्का:॥४.५॥

व्यन्तर और ज्योतिष में, दो देव नहीं चाल।
त्रायस्त्रिंश रहते नहीं, रहे ना लोकपाल॥४.५.१३०॥

व्यन्तरों और ज्योतिष देवों में त्रायस्त्रिंश और लोकपाल नहीं होते।

The peripatetic and the stellar deities are without the ministers and the police.

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पूर्वयोर्द्वीन्द्रा:॥४.६॥

होते दो दो इन्द्र है, व्यन्तर भवननिवास।
प्रतिइन्द्र भी दो रहे, इन देवों में खास ॥४.६.१३१॥

पहले के दो, भवनवासी और व्यन्तर, में दो दो इन्द्र होते है।

In the first two orders there are two lords.

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कायप्रवीचारा आ ऐशानात्॥४.७॥

कामसेवन को कहते, देव का प्रवीचार।
ईशान स्वर्ग तक रहे, तन से जुड़ते तार॥४.७.१३२॥

ईशान स्वर्ग तक (अर्थात् भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष और पहले व दूसरे कल्प के देव) शरीर से काम सेवन करते है।

Upto eishan kalpa they enjoy compilation.

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शेषा: स्पर्शरुपशब्दमन: प्रवीचारा॥४.८॥

स्पर्श रुप मन शब्द भी, शेष करते काम।
तन की न आवश्यकता, प्रवीचार का नाम॥४.८.१३३॥

शेष स्वर्गों में क्रमश: स्पर्श, रुप, शब्द और मन से काम सेवन करते है।

The other deities derive pleasure by touch, sight, sound and thought.

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परेऽप्रवीचारा:॥४.९॥

अहमिन्द्र का वास है, कल्पोपपन्न पार।
काम सेवन चाह नहीं, ब्रह्मचर्य व्यवहार॥४.९.१३४॥

ऊपर के अहमिन्द्रों में काम सेवन होता ही नहीं है।

The rest are without sexual desire.

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भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमारा:॥४.१०॥

भवनवासी देव कहे, असुर व नागकुमार।
विद्युत् सुपर्णकुमार भी अग्नि व वातकुमार॥स्तनितकुमार भवन रहे, उदधि द्वीपकुमार।

दिक्कुमार भी भवन रहे, भवन के दस प्रकार॥४.१०.१३५॥

भवनवासी देव – असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार।

The residential deities are of 10 types:

  • Asurakumar
  • Nagakumar
  • Vidyutkumar
  • Suparnakumar
  • Agnikumar
  • Vatakumar
  • Stanitakumar
  • Udadhikumar
  • Dvipakumar
  • Dikkumar

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व्यन्तरा: किन्नरकिंपुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचा:॥४.११॥

व्यन्तर आठ प्रकार के, किन्नर, किम्पुरुष जान।
महोरग व गन्धर्व भी, शंभु वृत्ति पहचान॥

है यक्ष और राक्षस भी, भूत सहीत पिशाच।
कौतुहल की प्रवृत्ति है, दे सकते नहीं आँच॥४.११.१३६॥

व्यन्तर देव आठ प्रकार के है।

  • किन्नर
  • किम्पुरुष
  • महोरग
  • गन्धर्व
  • यक्ष
  • राक्षस
  • भूत
  • पिशाच

The peripatetic devas comprise of following 8 types:

  • kinnara
  • Kimpurusa
  • Mahoraga
  • Gandharva
  • Yaksa
  • Raksasa
  • Bhuta
  • Pisacha

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ज्योतिष्का: सूर्याचन्द्रमसौ ग्रहनक्षत्र प्रकीर्णकतारकाश्च॥४.१२॥

ज्योतिष देव पाँच है, सूर्य चन्द्र पहचान।
ग्रह, तारे नक्षत्र भी, जिन वाणी का ज्ञान॥४.१२.१३७॥

ज्योतिष देव पाँच प्रकार के है।

  • सूर्य
  • चन्द्रमा
  • ग्रह
  • नक्षत्र
  • तारे

The stellar devas comprise of 5 devas:

  • sun
  • Moon
  • Planets
  • Constellations
  • Scattered Stars

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मेरुप्रदक्षिणा नित्यगत्यो नृलोके॥४.१३॥

ज्योतिष देते प्रदक्षिणा, सतत गति नहीं रोक।
मेरुपरवत इर्द-गिर्द, है जंह मानवलोक॥४.१३.१३८॥

मनुष्य लोक में मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा देते हुए निरन्तर गति करते रहते है।

Stellar deities keep circling around meru mountain.

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तत्कृत: कालविभाग: ॥४.१४॥

ज्योतिष देव गमन करे, होती गणना काल।
यही निरन्तरता गणित, ज्योतिषों की चाल॥४.१४.१३९॥

काल का विभाग इसके गमन के आधार पर ही होता है।

The division and calculations of time is caused by these.

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बहिरवस्थिता:॥४.१५॥

बाहर ढाई द्वीप के, ज्योतिष देव अनेक।
देव स्थिर बन के रहे, ध्रुव से है प्रत्येक॥४.१५.१४०॥

ढाई द्वीप के बाहर ये ज्योतिष देव स्थिर रहते है।

Stellar deities outside adhaidwipa (manusya Lok) are stationary.

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वैमानिका:॥४.१६॥

वैमानिक की बात है, विचरण का विस्तार।
रहन सहन विमान रहे, है विमान आकार॥४.१६.१४१॥

विमानों में रहनेवाले देवों को वैमानिक देव कहते है।

Now learn about heavenly beings or vaimanika Dev.

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कल्पोपपन्ना: कल्पातीताश्च॥४.१७॥

वैमानिक प्रकार दो, कल्पोपपन्न को जान।
एक सोलहवें स्वर्ग तक, कल्पातीत पहचान॥४.१७.१४२॥

ये वैमानिक देव दो प्रकार के है। कल्पोपपन्न और कल्पातीत।

Vaimanik are of two types. Born in kalpa and beyond the kalpas.

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उपर्युपरि ॥४.१८॥

ऊपर ऊपर है सभी, सोलह स्वर्ग विधान।
ग्रैवेयक व अनुदिश भी, अंत अनुत्तर जान॥४.१८.१४३॥

सोलह स्वर्ग के आठ युगल, नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर क्रम से ऊपर ऊपर है।

They are one above the other.

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सौधर्मैशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठशुक्रमहाशुक्रशातारसहस्त्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयकेषु विजयवैजयन्त जयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धो च॥४.१९॥

बारह स्वर्ग तक छह युगल, वैमानिक है देव।
सौधर्म ऐशान भी, सनत्- माहेन्द्र देव॥

ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर भी, लांतव- कापिष्ठ यार।
शुक्र और महाशुक्र भी, शतार व सहस्त्रार ॥

है अगले दो स्वर्ग में, आनत- प्राणत देव।
फिर अगले दो स्वर्ग में, आरण- अच्युत देव॥

नव ग्रैवेयक विमान में, नव अनुदिश विमान।
देव अनुचर पाँच है, विजय वैजयन्त जान॥

जयन्त व अपराजित है, अनुतर देव विमान।
सर्वार्थसिद्धि है मध्य में, वैमानिक पहचान॥४.१९.१४४॥

बारह स्वर्गों में ६ युगल वैमानिक देव

  • सौधर्म- ऐशान
  • सनत्कुमार – माहेन्द्र
  • ब्रह्म – ब्रह्मोत्तर
  • लांतव- कापिष्ठ
  • शुक्र – महाशुक्र
  • शतार- सहस्त्रार

दो स्वर्गों में आनत- प्राणत
दो स्वर्गों में आरण- अच्युत
नव ग्रैवेयक विमानों में
नव अनुदिश विमानों में

अनुतर विमानों में ५ देव

  • विजय
  • वैजयन्त
  • जयन्त
  • अपराजित
  • सर्वार्थसिद्धि

6 pairs of deva lives in first 12 heavens

  • Saudharma- Aisana
  • Sanatkumara- mahendra
  • Brahma- Brahmottara
  • Lantava- kapistha
  • Sukra- mahasukra
  • Satara- Sahasrara

2 heavens Anata & Pranata
2 heavens Arana & Acyuta
Nine greveyak
Nine anudish

Five anuchar

  • vijaya
  • Vaijayanta
  • Jayanta
  • Aparajita
  • Sarvarthasiddhi

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स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविषयतोऽधिका:॥४.२०॥

स्थिति, प्रभाव, सुख, द्युति, लेश्याविशुद्धि पाय।
अवधिविषय इन्द्रिय सहित, ऊपर बढ़ता जाय॥४.२०.१४५॥

वैमानिक देवों में स्थिति, प्रभाव, सुख, द्युति, लेश्याविशुद्धि, इन्द्रियविषय और अवधिविषय की अपेक्षा ऊपर ऊपर के देव अधिक है।

As you go up there is increase with regard to lifetime, power, happiness, brilliance, purity in lesya, capacity of senses and range of clairvoyance knowledge.

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गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतो हीना:॥२१॥

ऊपर बढ़ जब देवगति, कम कम होता जान।
गति, शरीर व परिग्रह भी, कम होता अभिमान॥४.२१.१४६॥

गति, शरीर, परिग्रह और अभिमान की अपेक्षा ऊपर ऊपर के देव हीन है।

There is decrease with regard to motion, stature, attachment and pride.

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पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु॥२२॥

पीत लेश्या दो युगल, पद्म तीन फिर पाय।

शुक्ल लेश्या शेष की, ऊपर शुद्ध हो जाय॥४.२२.१४७॥

दो, तीन कल्प युगलों में तथा शेष वैमानिकों में क्रमश: पीत, पद्म और शुक्ल लेश्यायें होती है।

Yellow lesya in first two kalp duals then pink in next three kalp duals and white lesya in rest vaimanik deities.

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प्राग्ग्रैवेयकेभ्य: कल्पा:॥४.२३॥

वैमानिक सोलह स्वर्ग, कहे कल्प आवास।
ग्रैवयेक के पूर्व में, कल्प ही हो निवास॥४.२३.१४८॥

ग्रैवयेकों से पहले के वैमानिक देवों के आवास कल्प कहलाते है।

Prior to graiveyaks these are called Kalpas.

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ब्रह्मलोकालया लोकान्तिका:॥४.२४॥

ब्रह्म लोक कल्प पाँचवा, लोकान्तिक का वास।
शुभकार्य में गमन करे, और ना है निवास॥४.२४.१४९॥

ब्रह्म लोक नाम का पाँचवा कल्प है लोकान्तिक देव वहाँ वास करते है।

Laukantikas resides in brahmaloka.

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सारस्वतादित्यवह्नयरुणगर्दतोयतुषिताव्याबाधारिष्टाश्च॥४.२५॥

सारस्वत आदित्य है, वह्नि, अरुण, गर्दतोय।
तुषित व अव्याबाध भी, लौकान्त अरिष्ट होय॥४.२५.१५०॥

सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और अरिष्ट ये लौकान्तिक देव है।

Laukantik deities are of 8 types.

  • Saraswat
  • Aditya
  • Vanhi
  • Arun
  • Gardtoy
  • Tushit
  • Avyabadha
  • Arista

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विजयादिषु द्विचरमा:॥४.२६॥

दो चरम बाक़ी रहते, देव विजयादि चार।
देव अनुतर कहे उन्हे, दो भव में हो पार॥४.२६.१५१॥

विजयादि चार अनुतर देव दो मनुष्य भव वाले होते है।

Four Anutar deities, Vijaya etc have 2 more birth pending in human cycle before liberation.

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औपपादिकमनुष्येभ्य: शेषास्तिर्यग्योनय:॥४.२७॥

देव नारकी छोड़ कर, मनुज अलग ही जान।
शेष जीव संसार के, तिर्यंच है पहचान॥४.२७.१५२॥

उपपाद जन्म वाले अर्थात् देव और नारकी तथा मनुष्यों को छोड़कर शेष जो संसारी जीव है वे सब तिर्यंच है।

All living beings are in animal category except celestial, infernal and humans.

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स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपम त्रिपल्योपमार्धहीनमिता:॥४.२८॥

आयु असुर नाग सुपर्ण, द्वीप व छह कुमार।
एक सागर, तीन पल्य, कम आधा हर बार॥४.२८.१५३॥

भवनवासियों में असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार और बाक़ी के बचे छह कुमारों की आयु क्रमश: एक सागर, तीन पल्य, उसके बाद आधा आधा पल्य कम करते जावो ऐसी है।

The life of residential deities is as follow:

  • Asur Kumar one sagar
  • Nagkumar three palya
  • Suparnakumar two and half palya
  • Dwipkumar two playa
  • Rest six kumar one and half palya

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सौधर्मैशानयो: सागरोपमेऽधिके॥४.२९॥

सौधरमो ऐशान की, देव स्थिति पहचान।
दो सागर से कुछ अधिक, आयु देव की जान॥४.२९.१५४॥

सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के देवों की आयु दो सागर से कुछ अधिक है।

In saudharma and Aisana kalpas the maximum life is a little I’ve two sagaropamas

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सानत्कुमारमाहेन्द्रयो: सप्त॥४.३०॥

सात सागर आयु अधिक, माहेन्द्र सानत्कुमार।
वैमानिक ये देव है, आयु उत्कृष्ट विचार॥४.३०.१५५॥

सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में देवों की उत्कृष्ट आयु सात सागर से कुछ अधिक है।

In sanatkumara and mahendra it is seven sagaropamas

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त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपंचदशभिरधिकानि तु॥४.३१॥

तीन सात नव जोड़ दो, ग्यारह तेरह जोड़।
पन्द्रह सागर से अधिक, देव आयु बेजोड़॥४.३१.१५६॥

पूर्वसूत्र में कहे गलों की आयु से (सात सागर) क्रमपूर्वक तीन, सात, नौ, ग्यारह, तेरह और पन्द्रह सागर अधिक आयु उसके बाद के स्वर्गों में है।

 

Brahma- Brahmottara 10 sagarapomas
Lantava- kapistha 14 Sagaropamas
Sukra- mahasukra 16 Sagaropamas
Satara- Sahasrara 18 Sagaropamas
Anata & Pranata 20 Sagaropamas
Arana & Acyuta 22 Sagaropamas

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आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु ग्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥४.३२॥

इक इक सागर जोड़ना, नवग्रैयक जो देव।
अनुदिश और अनुतर भी, सागर आयु सुदेव॥४.३२.१५७॥

आरण और अच्युत स्वर्ग से ऊपर के नवग्रैयकों में, नव अनुदेशों में, विजय इत्यादि विमानों में और सर्वार्थसिद्धि विमानों में देवों की आयु एक- एक सागर अधिक है।

Maximum Life of 9 graiveyakas is from 23 to 31 increasing one Sagaropamas each

9 Anudish 32 Sagaropamas
5 anutar 33 Sagaropamas

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अपरापल्योपममधिकम्॥४.३३॥

जघन्य आयु बात कहे, सौधरमों ऐशान।
एक पल्य से कुछ अधिक, प्रथम युगल पहचान॥४.३३.१५८॥

सौधर्म और ऐशान कल्प में जघन्य स्थिति कुछ अधिक एक पल्य है।

Minimum life of first two vaimanik deity Saudharma and Eishaan is little more than one palya.

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परत: परत: पूर्वा पूर्वानन्तरा:॥४.३४॥

पूर्व उत्कृष्ट जघन्य हो, ऊपर चढ़ता जाय।
वैमानिक जो कल्प में, उमास्वाती बतलाय॥४.३४.१५९॥

पहले के अर्थात् नीचे के कल्प युगल में जो उत्कृष्ट स्थिति है वह उनसे अगले अर्थात् ऊपर के कल्प युगल में जघन्य स्थिति है।

The maximum life of the immediately preceding palya is the minimum of next kalpa.

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नारकाणां च द्वितीयादिषु॥४.३५॥

नरक आयु क्या है प्रभु, शिष्य चाहे ज्ञान।
देव जैसी व्यवस्था, बतलाये भगवान॥४.३५.१६०॥

द्वितीय आदि नरकों की स्थिति भी ऐसी ही समझनी चाहिए।

The same with regard to infernal beings from the second infernal region onwards.

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दशवर्षसहस्त्राणि प्रथमायाम्॥४.३६॥

जघन्य आयु प्रथम नरक, वर्ष है दस हज़ार।
जाने की है चाह नहीं, कर्मो का व्यापार॥४.३६.१६१॥

पहले नरक की जघन्य स्थिति दस हज़ार वर्ष है।

Minimum life span of first infernal region is 10000 years.

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भवनेषु च॥४.३७॥

सबसे छोटे देव जो, भवनवास संसार।
कम से कम आयु उनकी, वर्ष है दस हज़ार॥४.३७.१६२॥

भवनवासियों की भी जघन्य आयु दस हज़ार वर्ष है।

Minimum life span of residential deities is also 10000 years.

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व्यन्तराणां च॥४.३८॥

व्यन्तर की भी जानना, जघन्य आयु उस पार।
भवनवास ही की तरह, वर्ष है दस हज़ार॥४.३८.१६३॥

व्यन्तरों की भी जघन्य स्थिति दस हज़ार वर्ष की है।

Minimum life span of vyantara (peripatetic) deities is also 10000 years.

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परापल्योपममधिकम्॥४.३९॥

व्यन्तर की उत्कृष्ट स्थिति, कहते है अब जान।
एक पल्य से कुछ अधिक, आयु अधिकतम मान॥४.३९.१६४॥

व्यन्तरों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्य से कुछ अधिक है।

Maximum life span of peripatetic deities is little ove one palyopama.

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ज्योतिष्काणां च॥४.४०॥

ज्योतिष उत्कृष्ट है स्थिति, कहते है अब जान।
एक पल्य से कुछ अधिक, आयु अधिकतम मान॥४.४०.१६५॥

ज्योतिष देवों की भी उत्कृष्ट स्थिति एक पल्य से कुछ अधिक है।

Stellar devas also have maximum life span is little over one palyopama.

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तदष्टभागोऽपरा॥४.४१॥

ज्योतिष की जघन्य स्थिति, कहते है अब जान।
उत्कृष्ट का भाग आठवाँ, आयु न्यूनतम मान॥४.४१.१६६॥

ज्योतिष देवों की जघन्य स्थिति उनकी उत्कृष्ट स्थिति के आठवें भाग है।

Minimum life span of stellar deities is one eight of maximum life.

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लौकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम् ॥४.४२॥

लौकान्तिक जो देव है, आठ सागर निवास।
उत्कृष्ट जघन्य भेद नहीं, ब्रह्म लोक में वास॥४.४२.१६७॥

सभी लौकान्तिक देवों की स्थिति आठ सागर है। इनमें उत्कृष्ट व जघन्य का भेद नहीं है।

For laukantikas deities minimum and maximum life span is eight Sagaropamas.

 

 

 

 

 

 

 

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