Nectar Of Wisdom

रत्नशर्करावालुकापंकधूमतमोमहातम: प्रभाभूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठा: सप्ताऽधोऽध:॥१॥

रत्न शर्करा वालुका, पंक धूम तम भार।
महातम प्रभा भूमिया, घन नभ का आधार॥३.१.८७॥

अधोलोक की भूमियाँ

  • रत्नप्रभा
  • शर्कराप्रभा
  • बालुकाप्रभा
  • पंकप्रभा
  • धूमप्रभा
  • तमप्रभा और
  • महातमप्रभा

घनोंदधि, घन और तनु वातवलय तथा आकाश के आधार पर प्रतिष्ठित है।

The lower world consists of seven earths:

  • Ratna
  • Sarkaar
  • Baluka
  • Panka
  • Dhuma
  • Tamah
  • Mahatamaha

Surrounded by 3 kinds of air

  • ghanodadhi vaatvalaya
  • Ghan vaatvalay
  • Tanu vaatvalay

And base is space.

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तासु त्रिंशत्पञ्चविंशतिपंचदशदशत्रिपञ्चोनैकनरकशतसहस्त्राणि पञ्च चैव यथाक्रमम्॥२॥

लाख तीस पच्चीस है, पन्द्रह दस व तीन।
एक लाख कम पाँच है, बिल पाँच संगीन॥३.२.८८॥

उसमे

  • रत्नप्रभा ३० लाख
  • शर्कराप्रभा २५ लाख
  • बालुकाप्रभा १५ लाख
  • पंकप्रभा १० लाख
  • धूमप्रभा ३ लाख,
  • तमप्रभा पाँच कम एक लाख और
  • महातमप्रभा केवल ५ बिल है।
  • इस प्रकार ८४ लाख बिल है।

These naraka earth have following number of abodes:

  • Ratna 30 Lacs
  • Sarkaar 25 Lacs
  • Baluka 15 Lacs
  • Panka 10 Lacs
  • Dhuma 3 Lacs
  • Tamah 99995
  • Mahatamaha 5

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नारकी नित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रिया॥३॥

लेश्या भाव अशुभतर, अशुभ शरीर विचार।
वेदना क्रिया अशुभतर, नरक बड़ा है भार॥३.३.८९॥

नारकी जीव सदैव ही अत्यन्त अशुभतर लेश्या, अशुभतर परिणाम, अशुभतर शरीर, अशुभतर वेदना और अशुभतर विक्रिया को धारण करते है।

Infernal beings are most inauspiciously in succession with respect to:

  • colouration
  • Thoughts
  • Body
  • Suffering
  • Deeds

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परस्परोदीरितदु:खा:॥४॥

परस्पर दु:ख उत्पन्न करे, लड़ते है दिनरात।
जीवन है अत्यन्त कठिन, बचो नरक में घात॥३.४.९०॥

नारकी जीव परस्पर एक दूसरे को दु:ख उत्पन्न करते है। वे निरन्तर परस्पर में लड़ते रहते है।

They continuously cause suffering to each other.

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संक्लिष्टासुरोदीरिततदु: खाश्च प्राक् चतुर्थ्या:॥५॥

असुरकुमार कष्ट करे, तीजे तक वे आय।
दु:ख की सीमा ही नहीं, नरक कभी ना जाय॥३.५.९१॥

संक्लेश परिणामवाले असुरकुमार देव तीसरी नरक पृथ्वी तक दु:ख उत्पन्न करते है।

Upto 3 naraka suffering is also caused by asurkumaras.

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तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपम सत्त्वानां परा स्थिति:॥६॥

एक तीन सात व दस है, सत्रह बाईस जान।
तैंतीस सागर आयु है, क्रमश: अधिकतम मान॥३.६.९२॥

नारकी जीवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति:

  • रत्नप्रभा १ सागर
  • शर्कराप्रभा ३ सागर
  • वालुकाप्रभा ७ सागर
  • पंकप्रभा १० सागर
  • धूमप्रभा १७ सागर
  • तमप्रभा २२ सागर
  • महातमप्रभा ३३ सागर

Maximum duration of life of infernal beings is as follow:

  • Ratnaprabha 1 sagar
  • Sarkaar 3 sagar
  • Baluka 7 sagar
  • Panka 10 sagar
  • Dhuma 17 sagar
  • Tamah 22 sagar
  • Mahatamaha 33 sagar

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जम्बूद्वीपलवणोदादय: शुभनामानो द्वीपसमुद्रा:॥७॥

जम्बूद्वीप लवण समुद्र, है स्थित मध्यलोक।
शुभनाम है द्वीप असंख्य, समुद्र बसे इस लोक॥३.७.९३॥

शुभ नाम वाले जम्बूद्वीप आदि द्वीप और लवणसमुद्र आदि समुद्र मध्यलोक में है।

Middle world have jambudvipa continent etc and lavanoda ocean etc with auspicious names.

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द्विर्द्विर्विष्कम्भा: पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतय:॥८॥

द्वीप समुद्र है पूर्व से, दूना है विस्तार।

गोल घेरा बना हुआ, चूड़ी सा आकार॥३.८.९४॥

ये दूने दूने विस्तार वाली द्वीप और समुद्र अपने से पहले वाले को घेरे हुए चूड़ी के आकार के समान वलयाकृत है।

These are the double the diameter of the preceding ones and circular in shape, each encircling the immediately preceding one.

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तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशतसहस्त्रविषकम्भो जम्बूद्वीप:॥९॥

जम्बू द्वीप समुद्र मध्य, लख योजन विस्तार।
मेरु मध्य में नाभि सा, अतिसुन्दर आकार॥३.९.९५॥

उन द्वीप समुद्रों के मध्य में मेरु है नाभि जिसकी, ऐसा एक लाख योजन विस्तारवाला जम्बू द्वीप है।

In the middle of these oceans and continents is Jambudwipa which is round and which is one lac yojan in diameter. Mound Meru is at the center of this continent like the naval in the body.

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भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षा: क्षेत्राणि ॥१०॥

भरत, हैमवत और हरि, विदेह, रम्यक भाग।
ऐरावत व हैरण्यवत, सात क्षेत्र विभाग॥३.१०.९६॥

जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र है।

  • भरत
  • हैमवत
  • हरि
  • विदेह
  • रम्यक
  • हैरण्यवत
  • ऐरावत

Jambudwip has seven regions:

  • Bharata
  • Haimavata
  • Hari
  • Videha
  • Ramyaka
  • Hairanyavata
  • Airavata

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तद्विभाजिन: पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनील रुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वती:॥११॥

पूर्व पश्चिम तक लंबे, छह पर्वत पहचान।
हिमवन संग महाहिमवन, फैले पर्वत महान॥

है निषध, और नील भी, रुक्मि पर्वत जान।
शिखरी भी पर्वत बड़ा, महानता पहचान॥३.११.९७॥

इन क्षेत्रों को विभाजित करने वाले और पूर्व पश्चिम तक लंबे हिमवन, महाहिमवन, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी ये छहवर्षधर अर्थात क्षेत्रों को धारण करने वाले पर्वत है।

The mountain chains Himavan, Mahahimavan, Nisadha, Nila, Rukmi and Sikhari running east to west divide these regions.

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हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममया:॥१२॥

सोने, चाँदी से बने, सोना तपा व नील।
चाँदी सोना मय सहित, छह पर्वत के डील॥३.१२.९८॥

ये छहो पर्वत क्रम से सोना, चांदी, तपाया हुआ सोना, वाडूर्यमणि, चाँदी और सोना मय है।

They are golden, silver, purified gold, blue, silvery and golden in colour respectively.

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मणिविचित्रपार्श्वा उपरिमूले च तुल्यविस्तारा:॥१३॥।

विचित्र मणि से है जड़े, पार्श्व भाग श्रंगार।
ऊपर मध्य व मूल में, इक जैसा विस्तार॥३.१३.९९॥

इनके पार्श्व भाग अनेक प्रकार की विचित्र मणियों से जड़े हुए है और ऊपर, मध्य एवं मूल में एक से विस्तार वाले हैं।

The sides of these mountains are studded with various jewels and the mountains are of equal width at he foot, in the middle and at the top.

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पद्ममहापद्मतिगिंच्छकेसरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका ह्रदास्तेषामुपरि॥१४॥

पद्म, महापद्म, तिगिंच्छ है, केशरी सरोवर नाम।
झील महापुण्डरीक भी, पुण्डरीक भी धाम॥३.१४.१००॥

हिमवन आदि पर्वतों के ऊपर क्रमश: पद्म, महापद्म, तिगिंच्छ, केशरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक नाम के सरोवर है।

On top of these mountains padma, mahapadma, tigincha, kesari, mahapundarika and pundarika are the lakes.

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प्रथमो योजनसहस्त्रायामस्तदर्द्धविषकम्भो ह्रद:॥१५॥

पहला पद्म सरोवर है, योजन एक हज़ार।

चौड़ाई है पाँच सौ, पर्वत है आधार॥३.१५.१०१॥

पहला पद्म सरोवर एक हज़ार योजन लम्बा और लम्बाई से आधा अर्थात् पाँच सो योजन चौड़ा है।

The first Padma lake is 1000 yojans in length and half in breadth.

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दशयोजनावगाह:॥१६॥

पद्म सरोवर प्रथम है, लम्बा चौड़ा विशाल।
गहरा दस योजन कहा, हिमवन का है ताल॥३.१६.१०२॥

पहला सरोवर दस योजन गहराई वाला है।

The depth is ten yojans.

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तन्मध्ये योजनं पष्करम्॥१७॥

पद्म सरोवर मध्य में, सुन्दर कमल विराज।
इक योजन आकार है, हिमवन का है ताज॥३.१७.१०३॥

इसके बीच में एक योजन का कमल है।

In the middle of first lake there is a lotus of the size of one yojan.

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तद्द्विगुणद्विगुणा विस्तारा: ह्रदा: पुष्कराणि च॥१८॥

शेष सरोवर कमल भी, बढ़ता है आकार।
दूने दूने प्रथम से, क्रम से है विस्तार॥३.१८.१०४॥

आगे के सरोवर और कमल दूने दूने आकार के है।

Next lakes as well as the lotuses are double the magnitude respectively.

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तन्निवासिन्यो देव्य: श्रीह्रीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्य: पल्योपम स्थितय: ससामीनिकपरिषत्का: ॥१९॥

श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी कमल प्रवास।
सामानिक पारिषद सहित, पल्योपम तक वास॥३.१९.१०५॥

इन कमलों में क्रमश: श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये छह देवियाँ सामानिक और पारिषद देवों के साथ निवास करती है। इनकी आयु एक पल्योपम है।

In these lotuses live the Devi called Sri, Hri, Dhriti, Kirti, Buddhi and Laxmi respectively and whose life is one palya and they live with samannikas and Parisatkas.

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गंगासिंधुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तासीतासीतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकूलारक्तारक्तोदा:सरितस्तन्मध्यगा:॥२०॥

भरत आदि सातों जगह, चौदह नदी प्रवाह।
गंगा-सिन्धु पूरब पश्चिम, भरत क्षेत्र निर्वाह॥

रोहित-रोहितास्य है, हैमवत की राह।
हरित-हरिकान्ता बहे, हरि क्षेत्र प्रवाह॥

सीता-सीतोदा बहे, विदेह क्षेत्र की जान।
नारी-नरकान्ता बहे, रम्यक की पहचान॥

स्वर्ण-रूप्यकूला बहे, हैरण्यवत के बीच।
रक्ता- रक्तोदा बहे, ऐरावत को सींच॥३.२०.१०६॥

गंगा-सिन्धु, रोहित-रोहितास्या, हरित-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, स्वर्णकूला-रूप्यकूला और रक्ता- रक्तोदा ये चौदह नदियाँ क्षेत्रों के बीच में बहती है।

In these 7 areas 14 rivers flows across these regions.

  • Ganga- Sindhu
  • Rohit- Rohitasya
  • Harit- Harikanta
  • Sita- Sitoda
  • Nari- Narakanta
  • Suvarnakula- Rupyakula
  • Rakta-Raktoda

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द्वयोर्द्वयो: पूर्वा: पूर्वगा:॥२१॥

मध्य लोक हर क्षेत्र में, दो दो नदी महान।
प्रथम नदी है बह रही, पूर्व दिशा में जान॥३.२१.१०७॥

दो के समूह में पहली नदी पूर्व की ओर बहती है।

The first of each pair flows eastward.

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शेषास्त्वपरगा:॥२२॥

मध्य लोक हर क्षेत्र में, दो दो नदी महान।
दूजी बहती है नदी, पश्चिम के पथ जान॥३.२२.१०८॥

शेष पश्चिम की ओर जाती है।

The rest are the western rivers.

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चतुर्दशनदीसहस्त्रपरिवृता गंगासिन्ध्वादयो नद्य:॥२३॥

मध्य लोक हर क्षेत्र में, नदियाँ बहुत विचार।
दो प्रधान नदियाँ रहे, चौदह संग हज़ार॥३.२३.१०९॥

गंगा और सिन्धु आदि नदियाँ चौदह चौदह हज़ार सहायक नदियों से घिरी हुई है।

The Ganga and the Sindhu etc have 14000 tributaries.

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भरत: षड्विंशतिपंचयोजनशतविस्तार: षट्चैकोनविंशतिभागायोजनस्य॥२४॥

भरत क्षेत्र विस्तार है, पाँच शतक छब्बीस।
योजन इसमें जोड़िये, छह बट्टा उन्नीस।३.२४.११०॥

भरत क्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग अधिक है।

Bharata is 526 and 6/19 yojans in width.

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तद्द्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ता:॥२५॥

भरत क्षेत्र से विदेह तक, क्षेत्र पर्वताकार।
हर क्षेत्र बढ़ता चले, दोहरा हो विस्तार॥३.२५.१११॥

विदेह क्षेत्रक तक के पर्वत और क्षेत्र भरत क्षेत्र से दुगने दुगने विस्तार वाले है।

The mountains and the regions are double in width upto Videha.

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उत्तरा दक्षिणतुल्या:॥२६॥

विदेह क्षेत्र के उत्तर में, दक्षिण रहे समान।
तीन पर्वत क्षेत्र भी, दर्पण जैसा मान॥३.२६.११२॥

विदेह क्षेत्र से उत्तर के तीन पर्वत और तीन क्षेत्र दक्षिण के पर्वतों और क्षेत्रों के समान विस्तार वाले है।

The mountains and regions in north are equal to south.

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भरतैरावतयोवृद्धिह्वासौ षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम्॥२७॥

उत्सर्पिणी अवसर्पिणी, बढ़ता घटता काल।
भरत और एरावत में, होता यही कमाल॥३.२७.११३॥

छह कालों से युक्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के द्वारा भरत और ऐरावत क्षेत्र में जीवों के अनुभवादि की वृद्धि-हानि होती रहती है।

In Bharata and Aeravat there is rise and fall of six kala.

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ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिता:॥२८॥

हैमवत, हरि, विदेह भी, परिवर्तन नहीं काल।
रम्यक सह हैरण्यवत, स्थित है अनन्त साल॥३.२८.११४॥

भरत और ऐरावत को छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में एक ही अवस्था रहती है। उनमें काल का परिवर्तन नहीं होता।

The other regions have stable kala.

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एकद्वित्रिपल्योपमस्थितियो हैमवतकहारिवर्षक दैवकुरवका:॥२९॥

एक दो और तीन पल्य, आयु सबकी जान।
हैमवत, हरिवर्ष, देवकुरु, तिर्यंच और इंसान॥३.२९.११५॥

हैमवत, हरिवर्ष, और देवकुरु के मनुष्य, तिर्यंच क्रम से एक पल्य, दो पल्य और तीन पल्य की आयु वाले होते है।

The age of humans and animals in Haimvatak, harivarshak and devakuru are of one, two and three palyas respectively.

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तथोत्तरा:॥३०॥

एक दो और तीन पल्य, आयु सबकी जान।
उत्तर दक्षिण की तरह, तिर्यंच और इंसान॥३.३०.११६॥

उत्तर के क्षेत्रों में रहने वाले मनुष्य भी दक्षिण में स्थित हैमवतादि के मनुष्यों के समान आयु वाले होते है।

The conditions are same in north.

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विदेहेषु सङ्खयेयकाला:॥३१॥

विदेह क्षेत्र में मनुष्य की, आयु होत संख्यात।
हरदम चतुर्थ काल रहे, जिनवाणी की बात॥३.३१.११७॥

विदेह क्षेत्र में मनुष्यों की आयु संख्यात वर्ष की होती है।

In the Videha regions life of human beings is in countable years.

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भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभाग:॥३२॥

भरत क्षेत्र की बात कहूँ, समझ ज़रा विस्तार।
एक सौ नब्बेवा अंग है, जम्बू द्वीप विचार॥३.३२.११८॥

भरत क्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप का एक सौ नब्बेवा भाग है।

The width of Bharata is one hundred and ninetieth part of Jambudvipa.

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द्विर्धातकीखण्डे॥३३॥

द्वीप धातकीखण्ड भी, मानव का है वास।
दूना जम्बूद्वीप से, पर्वत नदी आवास॥३.३३.११९॥

धातकीखण्ड नाम के दूसरे द्वीप में क्षेत्र, कुलाँचे, मेरु, नदी इत्यादि सब पदार्थों की रचना जम्बूद्वीप से दूनी दूनी है।

In Dhatikhanda it is double.

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पुष्करार्द्धे च॥३४॥

आधे पुष्करद्वीप में, धातकीखण्ड समान।
दूना जम्बूद्वीप से, पर्वत नदियाँ जान॥३.३४.१२०॥

पुष्करार्द्ध द्वीप में भी सब रचना जम्बूद्वीप की रचना से दूनी दूनी है।

In the half of Puskaradvipa also same as Dhatakikhanda.

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प्राङमानुषोत्तररान्मनुष्या:॥३५॥

मानुषोत्तर पर्वत है, पुष्कर मध्य विचार।
मानव ढाई लोक में, रहे ना पर्वत पार॥३.३५.१२१॥

मानुषोत्तर पर्वत तक अर्थात् अढ़ाई द्वीप में ही मनुष्य होते है। मानुषोत्तर पर्वत से परे ऋद्धिधारी मुनि या विद्याधर भी नहीं जा सकते है।

Human beings can be till Manusottara mountain which divides Pusharadvip.

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आर्या म्लेच्छाश्च॥३६॥

मनुष्य के भी भेद कहे, होते दोय प्रकार।
आर्य और म्लेच्छ है, जो निवास अनुसार॥३.३६.१२२॥

आर्य और म्लेच्छ के भेद से मनुष्य दो प्रकार के है।

There are 2 types of human beings. The civilised and barbarians.

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भरतैरावतविदेहा: कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तरकुरुभ्य:॥३७॥

पन्द्रह कर्म भूमियाँ, ढाई द्वीप विस्तार।
विदेह ऐरावत भरत, कुरु न कर्म व्यवहार॥३.३७.१२३॥

देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर ढाई द्वीप में कुल पन्द्रह कर्म भूमियाँ है। पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच विदेह।

Bharat, Airavat and Videha except Devkuru and uttarkuru are karmabhumi. There are 5 each of Bharat, airavat and Videh so total 15 karmabhumi.

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नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते॥३८॥

उत्कृष्ट आयु तीन पल्य, मनुष्य का आवास।
जघन्य अन्तर्मुहूर्त है, करो कर्म का नाश॥३.३८.१२४॥

मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य और जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त की है।

The max life of human being is three palya and minimum is antarmuhurta.

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तिर्यग्योनिजानां च॥३९॥

उत्कृष्ट आयु तीन पल्य, तिर्यंच का भी वास।
जघन्य अन्तर्मुहूर्त है, जिनवाणी विश्वास।३.३9.१२५॥

तिर्यंचों की भी उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है।

Age is same for the animals.

 

 

 

 

 

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