Nectar Of Wisdom

चिंता चिता समान।
चिंता करना एेसा है जैसे ख़ुद ही अपनी क़ब्र खोदना। कभी आपने किसी जानवर को चिंता करते देखा हैं? ईश्वर ने जानवर को कम बुद्धि दी लेकिन चिन्ता करने की अक़्ल नहीं दी। इंसान को ज़्यादा विकसित बुद्धि दी लेकिन वह इस कल्पना शक्ति, मन एवं बुद्धि का प्रयोग अनावश्यक की चिंता में व्यर्थ कर देता है। चिंता में व्यक्ति एेसी परिस्तिथियों कि कल्पना कर लेता जो असंभव सी हैं। किसी हद तक उत्कंठा होना अनुचित नहीं हैं बल्कि थोड़ी चिंता हमारे अतिउत्साह को नियंत्रित रखती है। लेकिन जैसे ही चिंता अपनी सीमा को लाँघने लगती हैं, स्वास्थ्य की कमज़ोरी का कारण बन जाती हैं।

चिंता के हज़ारों कारण हो सकते है जैसेकि परीक्षा में असफलता, कमज़ोर स्वास्थ्य, रिश्तों में कटुता, व्यवसाय में नुक़सान, अफ़सर का ग़ुस्सा इत्यादि। लेकिन कहावत है कि अगर समस्या हल हो सकती है तो चिन्ता करने का कोई औचित्य नहीं ओर अगर समस्या का कोई समाधान ही नहीं है तो चिंता करने का क्या फ़ायदा। चिंता करना ऐसा ही है जैसे ऋण लिया ही नहीं लेकिन ब्याज का भुगतान कर रहे हैं। किसी समस्या के बारे मे मनन, चिंतन या मंथन करना चिंता कि श्रेणी में नहीं आता हैं।

चिंता से निपटने के ५ सुझाव:
१) अनुमान लगाने कि अपेक्षा तथ्यों कि जानकारी ले।
२) समस्याओं का समाधान रचनात्मक तरीके से खोजे।
३) विशेषज्ञ कि सहायता ले।
४) सकारात्मक सोचे।
५) वैकल्पिक योजना तैयार रखे।

 

चिता न चिन्ता बन सके, कर देगी कमज़ोर।
चिंता का कर के दहन, चिंतन पर हो ज़ोर।।

 

For English Blog: http://nectarofwisdom.in/bury-the-worry/

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