क्या मुझे बात करनी चाहिये ?
हम में से अधिकांश लोग इस बारे में बहुत कम ध्यान देते हैं कि हम क्या बोलते हैं या क्या नहीं बोलते हैं । लोग अक्सर अत्यधिक अंतर्मुखी श्रेणी या अत्यधिक बहिर्मुखी की श्रेणी में बीच आते हैं । इसका कारण आनुवंशिक, परवरिश आदि हो सकता है । समय के साथ धीरे-धीरे यह हमारी आदत बन जाती है और यह ही हमारी प्रकृति बन जाती है । आमतौर पर यह देखा गया है कि पुरुष महिलाओं की तुलना में कम बात करते हैं ।
मनोचिकित्सक कहते हैं कि संवाद 3 स्तरों पर होता है । ज्ञान से संबंधित संवाद (Cognitive communication) जानकारी के आदान-प्रदान से संबंधित है । भावात्मक संवाद (Affective communication) भावनाओं के आदान-प्रदान से तथा क्रियात्मक संवाद (Conative communication) इरादों के आदान-प्रदान सम्बंधित है । बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो कार्यस्थल पर अधिक से अधिक ज्ञान तथा क्रियात्मक संवाद तथा घर पर भावनात्मक स्तर पर संवाद करे ।
मेरा व्यक्तिगत विचार है कि कार्य स्थल पर मनुष्य को न्यूनतम आवश्यक बात करनी चाहिए तथा घर पर अधिकतम संभव । एक ओर जहां कार्यालय में अधिक बात करने से उत्पादकता पर प्रभाव पड़ सकता है और अनावश्यक भ्रम पैदा हो सकते है वही दूसरी ओर घर में कम बात करने से रिश्तों में सूखापन आ सकता है ।
बात करने के बारे में 5 टिप्स :
1. बात करते समय सतर्क और सचेत रहें । जहां तक संभव हो, बात करने से पहले सोचें ।
2. कार्य स्थल पर बात करने से पहले भली – भाती सोच लें । कार्य स्थल पर शब्दों की गुणवत्ता अधिक मायने रखती है ।
3. कार्य स्थल पर भावनाओं का कम और बुद्धि का अधिक उपयोग करें ।
4. घर पर बात-चीत में ज्यादा भावनाओं और कम बुद्धि का इस्तेमाल करें ।
5. हालांकि घर पर चर्चा किए जा रहे अधिकांश मामले बहुत तुच्छ तथा महत्वहीन महसूस हो सकते हैं पर फिर भी घर के भीतर बातचीत में पूरी दिलचस्पी लें । दफ्तर में हो सकता है आप मिलियन डोलर्स के निर्णय लेते होंगे पर घर पर रखी नौकरानी की समस्या के समाधान में आपकी सहभागिता उतनी ही निर्णायक है ।
बौद्धिकता ज्यादा रहे, कम होवे ज़ज्बात ।
संयम रखिये बोल में, जब भी करिये बात।।
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