उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च नि:प्रतीकारे।
धर्माय तनुविमोचनमाहु: सल्लेखनामार्या:॥१२२॥
उपसर्ग व दुष्काल में, बुढ़ापा व बीमार।
तन का त्याग सल्लेखना, गणधर देव विचार॥६.१.१२२॥
गणधरदेव के अनुसार उपसर्ग में, दुष्काल में, बुढापे में व बीमारी में बिना प्रतिकार के शरीर को छोड़ देना सल्लेखना कहलाता हैं।
As per Gandhara, giving up of body due to unavoidable calamity, old age, terminal diseases etc without regret is called Sallekhana.
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अन्त:क्रियाधिकरणं तप:फलं सकलदर्शिन: स्तुवते।
तस्माद्यावद्विभवं समाधिमरणे प्रयतितव्यम्॥१२३॥
सर्वज्ञ मत सल्लेखना, तप का फल पहचान।
प्रयत्न जब तक शक्ति है, समाधिमरण सुजान॥६.२.१२३॥
सर्वज्ञदेव के अनुसार अन्त समय में सल्लेखना के आश्रय को तप का फल कहा इसलिये जब तक शक्ति है तब तक समाधिमरण के विषय में प्रयत्न करते रहना चाहिए।
As per omniscient, Sallekhana in last days of life is tapa and shall be pondered upon as per ones own capacity.
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स्नेहं वैरं संगं परिग्रहं चापहाय शुद्धमना:।
स्वजनं परिजनमपि च क्षान्तवा क्षमयेत्प्रियैर्वचनै:॥१२४॥
शुद्ध मन से क्षमा करे, शत्रु संगी यार।
ममत्व छोड़ मधुर वचन, सल्लेखना उद्धार॥६.३.१२४॥
शुद्ध मन से स्नेह, वैर व संगी साथी में ममत्व छोड़कर मधुर वचनों से स्व व पर जनों को सल्लेखनाधारी क्षमा करता है।
In Sallekhana one with pure mind, gives up love, hatred and attachment and forgives self and others with politeness.
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आलोच्य सर्वमने: कृतकारित मनुमतं च निर्व्याजम्।
आरोपयेन्महाव्रतमामरणस्थायि नि:शेषम्॥१२५॥
कपट रहित आलोचना, पंच महाव्रत पाल।
कृत कारित अनुमोदना, तजे पाप जंजाल॥६.४.१२५॥
सल्लेखनाधारी कृत, कारित व अनुमोदित समस्त पापों को छल कपट रहित आलोचना करके मरणपर्यंत पाँचों महाव्रत धारण करता हैं।
In Sallekhana one criticises self and renounces all sins without duplicity and takes five great vows with krit, karita and anumodana.
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शोकं भयं अवसादं क्लेदं कालुष्यं अरतिमपि हित्वा।
सत्तवोत्साहमुदीर्य च मन: प्रसाद्यं श्रुतैरमृतै:॥१२६॥
शोक भय अवसाद नहीं, ज्ञान का रस पान।
राग द्वेष ना रति अरति, शेष नहीं अभिमान॥६.५.१२६॥
शोक, भय, विषाद, स्नेह, राग-द्वेष, अरति को छोड़ कर बल और उत्साह को प्रकट कर शास्त्ररुप अमृत द्वाारा प्रसन्नचित्त मन रखे।
By giving up grief, fear, anguish, attachment, liking and disliking as per his capacity and with enthusiasm and drinks nectar of wisdom with pleasant mind.
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आहारं परिहाप्य क्रमश: स्निग्धं विवर्द्धयेत्पानम्।
स्निग्धं च हापयित्वा खारपानं पूरयेत्क्रमश:॥१२७॥
भोज त्याग क्रम से करे, चिकना पेय बढाय।
गर्म जल और छाछ रहे, त्याग बढ़ता जाय॥६.६.१२७॥
क्रम से अन्न आदि आहार को छोड़कर चिकने पेय को बढाना चाहिये फिर क्रम से चिकने पेय को छोड़कर गर्म पानी छांछ आदि को बढ़ाना चाहिए।
In Sallekhana one gives up food in stages and moves from solid food to milk etc and later to hot or spiced water.
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खारपानहापनामपि कृत्वा कृत्वोपवासमपि शक्त्या।
पंचनमस्कारमनास्तनुं त्यजेत्सर्वयत्नेन॥१२८॥
गर्म जल भी त्याग करे, अपनाले उपवास।
जाप नवाकर मन्त्र का, क्रम से तन का नाश॥६.७.१२८॥
पश्चात गर्मपानी आदि का भी त्याग करके शक्ति के अनुसार उपवास करे व पूर्णरुप से पंच नमस्कार मंत्र का जाप करते हुए शरीर छोड़े।
Later one gives up water also as per his capacity and leaves body while observing fast and chanting Navkarmantra.
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जीवितमरणाशंसे भयमित्रस्मृति निदान नामान:।
सल्लेखनातिचारा: पंच जिनेन्द्रै: समादिष्टा॥१२९॥
जीने मरने की इच्छा, भय या ममता तार।
भावी भोगों की इच्छा, सल्लेखन अतिचार॥६.८.१२९॥
जिनेन्द्र देव ने सल्लेखना के पाँच अतिचार कहे: जीने की इच्छा, मरने की इच्छा, भय, मित्रो का स्मरण व निदान अर्थात् आगामी भोगों की इच्छा।
As per Jinendradev there are five violations of Sallekhana: desire to live, wishing for death, fear, remembering dearones and desires for future attainments.
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न:श्रेयसमभ्युदं निस्तीरं दुस्तरं सुखाम्बुनिधम्।
नि:पिबति पीतधर्मा सर्वैर्द:खैरनालीढ:॥१३०॥
मोक्ष या अहमिन्द्र बने, धर्म का अमृत पान।
सल्लेखना तप बड़ा, बिरले करते जान॥६.९.१३०॥
सल्लेखना का धर्मरुपी अमृतपान करने वाला अनन्त मोक्ष को या बहुत समय तक रहने वाले अहमिन्द्र पद को प्राप्त होता हैं।
Drinker of nectar of Sallekhana attains eternal moksha or position of Ahmindra for long time.
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जन्मजरामयमरणै: शोकैर्दु:खैर्भयैश्च परिमुक्तम्।
निर्वाणं शुद्धसुखं नि:श्रेयसमिष्यते नित्यम्॥१३१॥
जन्म बुढ़ापा से रहित, रोग मरण नहीं जाण ।
शोक दुख और भय नहीं, सदा सुखी निर्वाण॥६.१०.१३१॥
जन्म, बुढापा, रोग, मरण, शोक, दुख व भय से रहित शुद्ध सुख वाले नित्य अविनाशी निर्वाण को मोक्ष कहा हैं।
That which is free from birth, old age, disease, death, grief, pain and fear and which gives eternal bliss and pure delight is called Nirvana.
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विद्यादर्शनशक्ति स्वास्थ्यप्रह्लादतृप्तिशुद्धियुज:।
निरतिशया निरवधयो नि:श्रेयसमावसन्ति सुखम्॥१३२॥
ज्ञान दर्शन वीर्य सुख, शुद्ध तृप्त विश्वास।
हीन अधिक व अवधि रहित, जीव का मोक्ष निवास॥६.११.१३२॥
केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनन्तवीर्य, अनन्तसुख, संतोष व शुद्ध तथा हीनाधिकता रहित, अवधिरहित सुखस्वरुप जीव मोक्ष में निवास करते हैं।
Fruits of Sallekhana are absolute faith, gyana, energy, renunciation, bliss, satisfaction and purity.
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काले कल्पशतेऽपि च, गते शिवानां न विक्रिया लक्ष्या।
उत्पातोऽपि यदि स्यात्, त्रिलोकसंभ्रान्तिकरणपटु: ॥१३३॥
तीन लोक उत्पात मचे, बीते असंख्य साल।
सिद्ध विकार रहित रहे, मोक्ष अनन्त काल॥६.१२.१३३॥
सैकड़ों कल्पकालों के बीतने पर भी अगर तीनो लोकों में भी खलबली करने वाला उपद्रव हो तो भी सिद्धों में विकार दृष्टिगोचर नहीं होता।
No change is observed in the conditions of liberated souls even after lapse of innumerable kalas and cosmic disturbances in three lokas.
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नि:श्रेयसमधिपन्नास्त्रैलोक्यशिखामणिश्रियं दधते।
निष्कट्टिकालिकाच्छवि चामीकार भासुरात्मान॥१३४॥
कीट और कालिमा रहित, सुवर्ण कान्ति समान।
शिखामणि से शोभित है, मोक्ष सिद्ध भगवान॥६.१३.१३४॥
कीट और कालिमा से रहित सुवर्ण कान्ति वाले मोक्ष को प्राप्त सिद्ध परमेष्ठी तीन लोक के अग्र भाग पर चूड़ामणि की तरह शोभा को धारण करते हैं।
Without any dirt liberated souls shine like pure gold and sits at the top of Siddhaloka like crest jewel of three worlds.
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पूजार्थाज्ञैश्वर्यैर्बल परिजनकामभोगभूयिष्ठै:।
अतिशयितभुवनमद्भुत मभ्युदयं फलति सद्धर्म:॥१३५॥
काम, धन, सुख, बल, परिजन, सल्लेखना उपहार।
पूर्ण भोग अद्भुत स्वर्ग, सुख संसार निहार॥६.१४.१३५॥
सल्लेखना द्वारा उपार्जित धर्म पूजा, धन, ऐश्वर्य, बल, परिजन, काम, भोग की परिपूर्णता से अद्भूत स्वर्ग व सांसारिक सुख का फल देता हैं।
Virtues obtained by Sallekhana enables one to obtain wealth, majesty, power, attendants, objects of enjoyment in abundance in higher world.
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