मोहतिमिरापहरणे, दर्शनलाभादवाप्तसंज्ञान:।
रागद्वेषनिवृत्त्यै, चरणं प्रतिपद्यते साधु:॥४७॥
सम्यग्दर्शन लाभ मिला, हुआ मोह का नाश।
राग व द्वेष छूट गये, सम्यक्चारित्र प्रवास॥३.१.४७॥
मोहरूपी अंधकार के दूर होने से सम्यग्दर्शन का लाभ मिला और सम्यग्ज्ञान प्राप्त हुआ जिससे रागद्वेष को छोड़कर सम्यक्चारित्र की प्राप्ति करता हैं।
By destruction of darkness of faith obstructing attachment one attains right knowledge which leads to right conduct by getting rid of likes and dislikes.
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रागद्वेषनिवृत्तेर्हिंसादिनिवर्त्तना कृता भवति।
अनपेक्षितार्थवृत्ति: क: पुरुष: सेवते नृपतीन्॥४८॥
रागद्वेष जब छूटते, पाप निवृत्ति होय।
कौन नृप सेवा करे? धन चाह नहीं होय॥३.२.४८॥
रागद्वेष की निवृत्ति से हिंसादि पाप की निवृत्ति होती है क्योंकि धन से अपेक्षारहित कौन राजा की सेवा करता हैं।
By getting rid of likes and dislikes, one destroys five sins such as violence etc.
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हिंसानृतचौर्य्येभ्यो, मैथुनसेवापरिग्रहाभ्यां च।
पापप्रणालिकाभ्यो, विरति: संज्ञस्य चारित्रम् ॥४९॥
हिंसा, झूठ, चोरी करे, कुशील परिग्रह पाप।
विरक्ति जो इन पाप से, सम्यक् चारित्र आप॥३.३.४९॥
सम्यग्ज्ञानी पाप से बचने के लिये हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील व परिग्रह से विरक्त रहकर चारित्र का पालन करता हैं।
A person with right knowledge stops violence, untruthfulness, stealing, unchastity and attachment to possessions and indulge in right conduct.
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सकलं विकलं चरणं, तत्सकलं सर्वसंगविरतानाम्।
अनगाराणां विकलं, सागाराणां ससंगानाम्॥५०॥
सकल चरण मुनि पालता, गृहस्थ विकल का भाव।
आंशिक परिग्रह विकल में, विकल परिग्रह अभाव॥३.४.५०॥
मुनियों के लिए सकल चारित्र समस्त परिग्रहों से विरक्त व गृहस्थियों के लिए विकल चारित्र अर्थात् आंशिक परिग्रह के साथ होता हैं।
Right conduct is of two kinds. Sakal (absolute) and Vikal (minor). Sakal is for ascetics who have renounced everything and vikal for householder.
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गृहिणां त्रेधा तिष्ठत्युण गुण शिक्षाव्रतात्मकं चरणं।
पंचत्रिचतुर्भेदं त्रयं यथासंख्य माख्यातम्॥५१॥
व्रत अणु, गुण और शिक्षा, गृहस्थ चरण संसार।
क्रम से इनके भेद है, पाँच तीन व चार॥३.५.५१॥
गृहस्थों का चारित्र अणुव्रत, गुण व्रत व शिक्षाव्रत क्रमश: पाँच, तीन व चार भेदरुप कहा गया हैं।
The conduct prescribed for householders is five types of anuvrat, three types of gunavrat and four types of shikshavrat.
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प्राणातिपात वितथव्याहार स्तेय काम मूर्च्छाभ्य:।
स्थूलेभ्य: पापेभ्यो वयुपरमणमणुव्रतं भवति॥५२॥
हिंसा झूठ चोरी कहा, कुशील परिग्रह पाप।
स्थूल विरक्ति अणुव्रत में, गृहस्थ रखता माप॥३.६.५२॥
हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील व परिग्रह इन पापों से स्थूलरुप से विरत होना अणुव्रत हैं।
Anuvrat is minor vows form avoidance of violence, lies, stealing, unchastity and possessions.
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संकल्पात्कृतकारित, मननाद्योगत्रयस्य चरसत्त्वान्।
न हिनस्ति यत्तदाहु: स्थूलवधाद्विरमणं निपुणा:॥५३॥
संकल्पित हिंसा करता नहीं, मन, वचन और काय।
न कारित न अनुमोदना, अहिंसाव्रत कहलाय॥३.७.५३॥
जो मन वचन व काय से संकल्पित हिंसा न करता है, न कराता है और न ही अनुमोदना करता हैं उसे गणधर देव स्थूल हिंसा से विरक्त अणुव्रत कहते हैं।
Ahimsa anuvrat is avoiding intentional violence by mind, words and actions and neither they do, nor get it done nor approves.
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छेदनबन्धनपीडन, मतिभारारोपणं व्यतीचारा:।
आहारवारणापि च स्थूलवधाद्व्युपरते: पंच॥५४॥
छेदन, बध, पीड़ा नहीं, लादे ना अतिभार।
अंतराय आहार नहीं, पाँच हिंसा अतिचार॥३.८.५४॥
छेदना, बाँधना, पीड़ा देना, अधिक भार लादना व आहार का रोकना स्थूल हिंसा से विरत श्रावक के पाँच अतिचार हैं।
Five violations of non-violence vow are as follow: piercing, binding, causing pain, overloading and causing starvation.
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स्थूलमलीकं न वदति न परान् वादयति सत्यमपि विपदे ।
यत्तद्वदन्ति सन्त:, स्थूलमृषावादवैरमणम्॥५५॥
स्थूल झूठ बोले नहीं, मन वचन और काय।
न बोले न अनुमोदना, सत्याणुव्रत कहलाय॥३.९.५५॥
जो स्थूल झूठ न स्वयं बोलता है न बुलवाता है, जो दूसरों की विपत्ति के लिए न असत्य बोलता हैं न बुलवाता हैं ऐसी क्रिया के त्याग को संत सत्याणुव्रत कहते हैं।
Vow of truthfulness is refraining from lies, not causing others to tell lies, avoiding truth which causes afflictions to others.
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परिवादरहोभ्याख्यापैशुन्यं कूटलेखकरणं च।
न्यासापहारितापि च व्यतिक्रमा: पंच सत्यस्य ॥५६॥
न दोष न रहस्य खोलना, झूठ लेख परिहार।
धरोहर हड़पता नहीं, सत्याणुव्रत अतिचार॥३.१०.५६॥
सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार हैं दोषारोपण, रहस्य खोलना, चुगलखोरी, झूठ लेखन व धरोहर को हड़पना।
Five violations of satyanuvrat are as follow: false accusation, revealing secrets, backbiting, false writings and lying when one ask for his things.
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निहितं वा पतितं वा, सुविस्मृतं वा परस्वमविसृष्टं।
न हरति यन्न च दत्ते, तदकृशचौर्य्यादुपारमणम्॥५७॥
रखी, गिरी, भूली हुई, बिना दी नहीं लाय।
न ले न दे पर की वस्तु, अचौर्याणुव्रत पाय॥३.११.५७॥
जो रखी हुई, गिरी हुई, भूली हुई और बिना दी गई अन्य की वस्तु को न लेता है और दूसरे के लिए न देता है उसे अचौर्याणुव्रत कहते हैं।
The vow of non-stealing is not taking others belongings without permission.
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चौरप्रयोगचौरार्थादानविलोपसदृशसन्मिश्रा:।
हीनाधिकविनिमानं पँचास्तेये व्यतीपाता:॥५८॥
चोरी ग्रहण, भंग नियम, करें चोरी विचार।
मिलावट व नाप गड़बड़, अचौर्य व्रत अतिचार॥३.१२.५८॥
अचौर्याणुव्रत के पाँच अतिचार- अन्य को चोरी के उपाय बताना, चोरी का माल ग्रहण करना, राजकीय नियमों का उल्लंघन करना, मिलावट करना व नापने में गड़बड़ करना।
Five violations of achauryanuvrat (vow of non-stealing) are as follow: giving instruction for stealing, receiving stolen things, evading laws, adulteration and using wrong weights and measures.
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न तु परदारान् गच्छति न परान् गमयति च पापभीतेर्यत्।
सा परदारनिवृत्ति: स्वदारसन्तोषनामापि॥५९॥
पर स्त्री में गमन नहीं, मन वचन और काय।
भय पाप संतोष सदा, ब्रह्मचर्यव्रत भाय॥३.१३.५९॥
जो पाप के भय से परस्त्रियों के प्रति न तो स्वयं गमन करता है न कराता है वह क्रिया परस्त्री त्यागरुप स्वदारसंतोष नामक ब्रह्मचर्य अणुव्रत हैं।
Vow of chastity is neither visiting others women nor encouraging anyone to visit others women.
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अन्यविवाहाकरणानंगक्रीडा विटत्व विपुलतृष:।
इत्वरिकागमनं चास्मरस्य पंच व्यतीचारा:॥६०॥
अन्य विवाह, क्रीड़ा अनंग, कामुक कर्म विचार।
तीव्र चाह, व्यभिचरण, ब्रह्मचर्यव्रत अतिचार॥३.१४.६०॥
ब्रह्मचर्य अणुव्रत के पाँच अतिचार- अन्य का विवाह कराना, अनंग क्रीड़ा, कामुक चेष्टा व वचन, कामसेवन की तीव्र अभिलाषा करना व व्यभिचारिणी स्त्रियों के यहाँ आना जाना।
Five violations of brahmacharyaanuvrat (vow of chastity): match making for others children, unnatural sex, using erotic actions and words, excessive passion in sex and visiting prostitutes.
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धनधान्यादिग्रन्थं, परिमाय ततोऽधिकेषु नि:स्पृहता।
परिमितपरिग्रह: स्यादिच्छापरिमाणनामापि॥६१॥
धनधान्य सीमित रखे, चाह अधिक नहीं जाण।
हर वस्तु सीमा बांधता, व्रत परिग्रहपरिमाण॥३.१५.६१॥
धन धान्यादि को सीमित कर उनसे अधिक परिग्रह से इच्छारहित होना परिग्रहपरिमाण अणुव्रत है।
Possession limiting vow (parigrahaparimanvrat) is limiting possessions such as money, things etc and not keeping attachment with possessions.
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अतिवाहनातिसंग्रह विस्मयलोभातिभारवहनानि।
परिमितपरिग्रहस्य च विक्षेपा: पंच लक्ष्यन्ते॥६२॥
अतिवाहन व अतिसंग्रह, अतिविस्मय, अतिभार।
अतिलोभ जब जीव करे, अपरिग्रह अतिचार॥३.१६.६२॥
परिग्रहपरिमाण अणुव्रत के पाँच अतिचार- अतिवाहन, अतिसंग्रह, अतिविस्मय, अतिलोभ और अतिभारवहन।
Five violations of possession limiting vow are as follow: excess vehicles, unnecessary possessions, expressing wonder at the pomp and prosperity of others, excessive greed and overloading animals.
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पंचाणुव्रतनिधयो निरतिक्रमणा: फलन्ति सुरलोकं।
यत्रावधिरष्टगुणा दिव्यशरीरं च लभ्यन्ते॥६३॥
अणुव्रत जब अतिचाररहित, स्वर्गलोक फल पाय।
अवधिसहित आठ ऋद्धियाँ, दिव्यशरीर भी भाय॥३.१७.६३॥
अतिचाररहित पाँच अणुरुपी निधियाँ स्वर्गलोक का फल देती हैं जहाँ अवधिज्ञान अणिमा आदि आठ ऋद्धियाँ और सप्त धातुरहित सुन्दर वैक्रियिक शरीर प्राप्त होते हैं।
By observing minor vows one get fruit of heaven with clairvoyance knowledge, eight kind of miraculous powers and divine body.
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मातंगो धनदेवश्च वारिषेणस्तत: पर:।
नीली जयश्च सम्प्राप्ता: पूजातिशयमुत्तमम्॥६४॥
यमपाल व धनदेव है, क्रम से व्रत का मान।
वारिषेण व वणिकपुत्री, जयकुमार को जान॥३.१८.६४॥
अणुव्रतधारियों में यमपाल नामक चाण्डाल, धनदेव, वारिषेण, वणिकपुत्री नीली और जयकुमार क्रम से अहिंसादि अणुव्रतों में उत्तम पूजा के अतिशय को प्राप्त हुए।
Following people became famous in five minor vows respectively. Low caste Yampal, Dhandev, Varishen, Vanikputri Neeli and Jaykumar.
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धनश्रीसत्यघोषौ च तापसारक्षकावपि।
उपाख्येयास्तथा श्मश्रुनवनीतो यथाक्रमम्॥६५॥
धनश्री व सत्यघोष ने, पाँच पाप बखान।
तापस व कोतवाल है, श्मश्रुनवनीत अज्ञान॥३.१९.६५॥
धनश्री, सत्यघोष, तापस, कोतवाल और श्मश्रुनवनीत क्रम से हिंसादि पाँच पापों में उपाख्यान करने के योग हैं।
Following people became notoriously famous in five sins respectively. Dhanashree, Satyaghosh, Tapas, Kotwal and Shmshrunavnit.
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मद्यमांसमधुत्यागै: सहाणुव्रतपंचकम्।
अष्टौ मूलगुणानाहुर्गहिणां श्रमणोत्तमा:॥६६॥
मद्य, मांस, मधु त्याग के, पाँचव्रत का ज्ञान।
अष्टमूलगुण श्रावक के, जिन आगम पहचान॥३.२०.६६॥
मद्य, मांस व मधु के त्याग के साथ पाँच व्रत का पालन करना श्रावक के आठ मूलगुण कहलाते हैं।
As per holy saints obsevance of five vows and refraining from meat, wine and honey are eight fundamental virtues.
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