Nectar Of Wisdom

मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम्।
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये॥

 

मोक्षमार्ग प्रवर्तक दे, कर्म पर्वत भेद।
ज्ञाता विश्वतत्त्व के, वन्दित मैं गुण वेद॥

मोक्षमार्ग के प्रवर्तक, कर्मरुपी पर्वतों के भेदक तथा विश्व के समस्त तत्त्वों के ज्ञाता को उनके गुणों की प्राप्ति के हेतु मैं वन्दना करता हूँ।

I bow to omniscient god who is promulgator of the path of liberation, the destroyer of mountains of karmas and the knower of the whole reality of this universe so that I may realise these qualities.

*********************************************

सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग: ॥१॥

मोक्ष मार्ग के लिये, तीनों का हो साथ।
सम्यग्दर्शन ज्ञान भी, सम्यक् चारित्र हाथ॥१.१॥

सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक् चारित्र तीनों मिलकर मोक्ष का मार्ग है।

Right faith, right knowledge and right conduct together constitute the path of liberation.

*********************************************

तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्॥२॥

समझ स्वरूप पदार्थ का, सच्ची श्रद्धा मान।
सम्यग्दर्शन कहे उसे, जिनवर का यह ज्ञान॥१.२॥

पदार्थ के स्वरूप का सही श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है।

Right faith is belief in substances as they are.

*********************************************

तन्निसर्गादधिगमाद्वा ॥३॥

सम्यग्दर्शन हो प्रकट, अन्तर्मना स्वभाव।
जीव को उत्पन्न हुआ, गुरु शास्त्र के भाव॥१.३॥

वह सम्यग्दर्शन स्वभाव से या दूसरे के उपदेशात्मक से उत्पन्न होता है। 

The Samyak darshan is attained by intuition or by acquisition of knowledge or cognisance.

*********************************************

जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम्॥४॥

मुक्ति मार्ग के सात तत्त्व, शास्त्र यहीं परोक्ष।
जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा मोक्ष॥१.४॥

जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष- ये सात तत्त्व है।

The soul, the non-soul, influx, bondage, stoppage, gradual dissociation and liberation constitute the reality.

*********************************************

नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यास:॥५॥

सम्यक् दर्शन स्थापना, करते चार प्रकार।
नाम, स्थापना, द्रव्य भी, भाव लोक व्यवहार॥१.५॥

नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव से उन सात तत्त्वों का लोक व्यवहार होता है।

Samyak darshan is installed by name, representation, substance and actual state.

*********************************************

प्रमाणनयैरधिगम: ॥६॥

सात तत्त्व को जानना, प्रमाण-नय को जान।
द्रव्यार्थिक, पर्यायर्थिक, भिन्न भिन्न नय ज्ञान॥१.६॥

जीवादि तत्त्वों का ज्ञान प्रमाण और नय से होता है।

The knowledge of subjects like right faith etc and 7 substances is attained by means of pramana (comprehensive knowledge) and naya (different point of views).

*********************************************

निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानत:॥७॥

सम्यग्दर्शन आदि त्रिरत्न, जीव आदि का ज्ञान।
निर्देश, साधन, स्वामित्व, अधिकरण, स्थिति, विधान॥१.७॥

सम्यग्दर्शन आदि त्रिरत्न व जीवादि सात तत्त्व का ज्ञान निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति व विधान से होता है।

The knowledge of subjects like right faith etc and 7 substances is attained by nirdesh (description), swamitva (ownership), sadhan (cause), adhikaran (substratum), sthiti (duration) and vidhan (division).

*********************************************

सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च॥८॥

सत् , संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, मिलता है यह ज्ञान।
काल, अन्तर, भाव भी, अष्ठ अल्प-बहु जान॥१.८॥

सत् , संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व इन आठ अनुयोगों के द्वारा भी पदार्थ का ज्ञान होता है।

The seven substances are also known by existence, number, place, extent of space, time, interval of time, thought activity and reciprocal comparison.

*********************************************

मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानि ज्ञानम् ॥९॥

ज्ञान पाँच प्रकार है, मति, श्रुत, अवधि ज्ञान।
मन:पर्यय चौथा कहे, पंचम केवल ज्ञान॥१.९॥

ज्ञान पाँच प्रकार के है। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान।

Knowledge is of five kinds. Sensory, scriptural, clairvoyance, telepathy and omniscience.

*********************************************

तत्प्रमाणे ॥१०॥

मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय, केवल पाँच प्रकार।
बाँटे ज्ञान प्रमाण मे, दो है भेद प्रकार॥१.१०॥

उपरोक्त पाँच प्रकार के ज्ञान ही दो प्रकार के प्रमाण है।

These five kinds of knowledge is two types of valid knowledge.

*********************************************

आद्ये परोक्षम्॥११॥

मति श्रुत दोनों को समझ, आदि के दो ज्ञान।
है परोक्ष प्रमाण कहा, ‘पर’ पर निर्भर जान॥१.११॥

प्रारम्भ के दो (मति व श्रुत) परोक्ष प्रमाण है।

The first two kind of knowledge (sensory and scriptural) are indirect knowledge.

*********************************************

प्रत्यक्षमन्यत् ॥१२॥

अवधि, मन:पर्यय, केवल है, तीन शेष है ज्ञान।
है प्रत्यक्ष प्रमाण कहा, स्व आत्मा के जान॥१.१२॥

शेष तीन (अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान) प्रत्यक्ष प्रमाण है।

The remaining three (clairvoyance, telepathy and omniscience) are direct knowledge.

*********************************************

मति: स्मृति: संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोधइत्यनर्थान्तरम्॥१३॥

मति स्मृति संज्ञा चिन्ता, रहे या अभिनिबोध।
अर्थ में है अन्तर नहीं, नामान्तर संबोध॥१.१३॥

मति स्मृति संज्ञा चिन्ता अभिनिबोध इत्यादि अर्थान्तर नहीं है बल्कि नामान्तर है।

Sensory knowledge (Mati), remembrance (smriti), recognition (sanghya), induction (chinta), deduction (abhinibodh) etc are synonyms and not different in meaning.

*********************************************

तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ॥१४॥

स्पर्श घ्राण रस चक्षु कर्ण, इन्द्रिय व मन मतिज्ञान।
निमित्त उस मतिज्ञान के, हे श्रावक यह जान॥१.१४॥

इन्द्रियाँ और मन उस मति ज्ञान के निमित्त है।

Senses (indriya) and mind (mann) are the via media for that sensory knowledge (matijnana).

*********************************************

अवग्रहेहावायधारणा:॥१५॥

मति ज्ञान के भेद है, उसे जान तू चार।
अवग्रह, ईहा, अवाय भी, करे धारणा धार॥१.१५॥

मति ज्ञान के चार भेद है। अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा।

There are four stages of sensory knowledge. Impression (avagraha), inquisitiveness (iha), comprehension (avay) and retention (dharana).

*********************************************

बहुबहुविधक्षिप्रानि:सृतानुक्तध्रुवाणां सेतराणाम्॥१६॥

जल्दि, अनि:सृत, अनुक्त, ध्रुव, बहु ओ बहुत प्रकार।
इनका उल्टा भी करे, बारह भेद विचार॥१.१६॥

बहुत, बहुत प्रकार, जल्दि, अनि:सृत, अनुक्त, ध्रुव तथा उनसे उल्टे भेदो से युक्त अर्थात एक, एकविध, अक्षिप्र, नि:सृत, उक्त और अध्रुव इस प्रकार १२ प्रकार से अवग्रह-ईहादिरूप मतिज्ञान होते है।

Many, many kind, quick, hidden, unexpressed and lasting and their opposites, this way their are 12 subdivisions of sensory etc knowledge.

*********************************************

अर्थस्य ॥१७॥

अवग्रह, ईहा, अवाय है, धारणा मति ज्ञान।
वस्तु के ही संभव है, आगम का विज्ञान॥१.१७॥

अवग्रह आदि मति ज्ञान वस्तु के होते है।

Sensory knowledge is of substances only.

*********************************************

व्यञ्जनस्यावग्रह:॥१८॥

शब्दा आदि अव्यक्त है, व्यन्जन उनको जान।
अवग्रह से ही संभव है, ईहा

आदि न मान॥१.१८॥

अप्रकट पदार्थो (शब्दादि) का मात्र अवग्रह ज्ञान होता है। ईहा, अवाय व धारणा नही होती।

For indistinct things (voice etc) only impression is possible. Inquisitiveness, comprehension and retention not possible.

*********************************************

न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम्॥१९॥

शब्द आदि अव्यक्त है, व्यन्जन उनको जान।
आँख व मन पढ़ ना सके, शब्दा आदि का ज्ञान॥१.१९॥

व्यञ्जन का अवग्रह चक्षु व मन से नही होता

Eyes and mind can’t have impression of indistinct substances.

*********************************************

श्रुतं मतिपूर्वं द्वयनेकद्वादशभेदम् ॥२०॥

श्रुत ज्ञान मति पूर्व है, इसके है दो भेद।
बारह अंगप्रविष्ट है, अंगबाह्य कई भेद॥१.२०॥

मति ज्ञान के बाद श्रुत ज्ञान होता है। वह श्रुत ज्ञान दो प्रकार का है। अंगप्रविष्ट व अंगबाह्य। अंगप्रविष्ट बारह प्रकार का व अंगबाह्य अनेक प्रकार का होता है।

Scriptural knowledge is preceded by sensory knowledge. It is of 2 types (Angapravist & Angabahya), twelve types and many types respectively.

*********************************************

भवप्रत्ययोऽवधिर्देवनारकाणाम् ॥२१॥

भवप्रत्यय का ज्ञान है, जन्म स्थल आधार।
देव नारकिय जन्म से, अवधि ज्ञान विचार॥१.२१॥

भवप्रत्यय नामक अवधि ज्ञान देव और नारकियों को होता है।

Clairvoyance based on birth is possessed by the celestial the infernal beings.

*********************************************

क्षयोपशमनिमित्त: षड्विकल्प: शेषाणाम् ॥२२॥

मनुष्य और त्रियंच का, क्षयोपशम अवधिज्ञान।
वर्धमान का अनुगमन, अवस्थित उल्टा मान॥१.२२॥

क्षयोपशमनैमित्तक अवधिज्ञान छह भेदवाला है और वह शेष अर्थात् मनुष्यो व तिर्यंचो के होता है।

Clairvoyance due to kshyopsama is of six kinds. (Anugami, Ananugami, vardhman, hiyamaan, avastith & anavastith)It is acquired by the rest namely human beings and animal.

*********************************************

ऋजुविपुलमति मन:पर्यय: ॥२३॥

पर के मन को जान ले, मन:पर्यय दो भेद।
ऋजुमति और विपुलमति, सरल कुटिल का वेद॥॥१.२३॥

मन:पर्ययज्ञान दो प्रकार का है। ऋजुमति और विपुलमति।

Telepathy knowledge is of two types. Rjumati (straight) and vipulmati (crooked).

*********************************************

विशुद्धयप्रतिपाताभ्यां तद्विशेष: ॥२४॥

ऋजुमति और विपुलमति, है विशेष दो बात।
विपुलमति है विशुद्धतर, और है अप्रतिपात॥१.२४॥

परिणामो की विशुद्धि और अप्रतिपात अर्थात् केवलज्ञान होने से पूर्व न छूटना इन दो बातो से ऋजुमति व विपुलमति ज्ञान मे अन्तर होता है।

The difference between straight telepathy and crooked telepathy knowledge is due to level of purity and infallibility from gunasthana.

*********************************************

विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमन:पर्यययो:॥२५॥

विशुद्धि क्षेत्र स्वामि विषय, अवधि मन: पर्यय विशेष।
मन:पर्यय तो विशिष्ट है, सूक्ष्म रहे ना शेष॥१.२५॥

अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान मे विशुद्धता, क्षेत्र, स्वामी और विषय की अपेक्षा से विशेषता होती है।

Clairvoyance knowledge and Telepathy knowledge differ with regard to purity, space, possessor and subject matter.

*********************************************

मतिश्रुतयोर्निबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ॥२६॥

जीव पुद्गल धर्म अधर्म, काल और आकाश।
जान सका पर्याय को, मति श्रुत का आभास॥१.२६॥

मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय संबंध कुछ पर्यायो से युक्त जीव पुद्गलादि सर्व द्रव्यो मे है।

The sensory and scriptural knowledge extends to few modes of all the six substances.

*********************************************

रूपिष्ववधे: ॥२७॥

रुप स्पर्श रस गंध है, गुण पुद्गल के जान।
सिर्फ़ इन्हें ही जानते, जो हो अवधिज्ञान॥१.२७॥

अवधिज्ञान सिर्फ रूपि पदार्थो को जानता है।

Clairvoyance knowledge can know substances with form only.

*********************************************

तदनन्तभागे मन:पर्ययस्य ॥२८॥

रुपि विषय अवधि समझ, सूक्ष्म की हो चाह।
अंग जानना अनन्तवे, मन:पर्यय की राह॥१.२८॥

मन:पर्यय ज्ञान, अवधि ज्ञान द्वारा जाने रूपि द्रव्य के अनन्तवे भाग को भी जान सकता है।

The scope of telepathy is the infinitesimal part of the matter ascertained by clairvoyance.

*********************************************

सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य॥२९॥

सर्वद्रव्य पर्याय सब, लेना हो जो ज्ञान।
त्रिलोक व त्रिकाल को, जाने केवल ज्ञान॥१.२९॥

केवलज्ञान एक ही साथ सभी पदार्थों को और उनकी सभी पर्यायों को जानता है।

Omniscience mean knowing all substances and all their modes simultaneously.

*********************************************

एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्य:॥३०॥

मति श्रुत अवधि मन:पर्यय, केवल और विचार।
ज्ञानी केवल जानता, एक साथ बस चार॥१.३०॥

एक जीव मे एक साथ एक से लेकर चार ज्ञान पाने की योग्यता हो सकती है।

One soul can acquire one to four knowledge simultaneously.

*********************************************

मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च॥३१॥

इक है और विशेषता, मति श्रुत अवधि ज्ञान।
मिथ्या की संभावना, उल्टा पड़ता जान॥१.३१॥

मति, श्रुत व अवधि ज्ञान त्रुटिपूर्ण भी हो सकते है।

Sensory, scriptural and clairvoyance knowledge can be erroneous also.

*********************************************

सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत्॥३२॥

सत् असत् का भान नहीं, वो है मिथ्या ज्ञान।
सत् असत् को सही कहे, तो भी मिथ्या जान॥१.३२॥

विद्यमान और अविद्यमान (सत् व असत्) पदार्थो का भेदरुप ज्ञान न होने से अपनी इच्छा से चाहे जैसा ग्रहण करने के कारण पागल के ज्ञान की भाँति मिथ्या दृष्टि का ज्ञान मिथ्याज्ञान होता है।

Due to lack of differentiation between real and not real knowledge of substances one receive the wrong knowledge like insane.

*********************************************

नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूढैवंभूता नया:॥१.३३॥

नैगम, व्यवहार, संग्रह, नय ऋजुसूत्र विचार।
शब्द व भूत समभिरूढ, मूल सात प्रकार॥१.३३॥

नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरुढ व एवंभूत ये सात दृष्टिकोण (नय) है।

The basic (original) nayas (stand-points) are seven:

  1. Intentional (Naigam);
  2. General/common (Samgraha);
  3. Systematic(Vyavhar);
  4. Straight (Rju-sutra);
  5. Descriptive (Shabda);
  6. Conventional (Samabhirudha); and 7. Specific (Evambhuta).
Share on Whatsapp

    Etiam magna arcu, ullamcorper ut pulvinar et, ornare sit amet ligula. Aliquam vitae bibendum lorem. Cras id dui lectus. Pellentesque nec felis tristique urna lacinia sollicitudin ac ac ex. Maecenas mattis faucibus condimentum. Curabitur imperdiet felis at est posuere bibendum. Sed quis nulla tellus.

    ADDRESS

    63739 street lorem ipsum City, Country

    PHONE

    +12 (0) 345 678 9

    EMAIL

    info@company.com

    Nectar Of Wisdom