3.ताका
ताँका
ज़माना बीता
ना लाईट ना पंखा
खुले घरों में
हुए क़्रैद काँच में
सीमेंट की डिब्बियाँ
कवि उदास
शब्द रहे अधूरे
भाव गहरे
जाने कौन समझे
जाने क्या-क्या समझे
है विडम्बना
थी शक्ति की मूरत
हूँ स़िर्फ दुर्गा
है बचा बस नाम
केवल कोहराम
हो काला टीका
लगती नहीं नज़र
माता का प्यार
बन जाते हैं पिता
सब बच्चों के यार
मिलती नहीं
है हरदम साथ
हमारी आँख
बँटे है दो में हम
एक का अहसास
मैं रंगरेज
मैं ही हूँ चुनरिया
रंग भी हूँ मैं
रंगूँ मेरे रंग में
मैं जग, जग में मैं
मानव ठाने
कुछ ना असंभव
प्रभु भी माने
हो सतत प्रयत्न
मिलते ही है रत्न
काला जीवन
पुस्तक चमकायें
व्यक्तित्व महके
ज्ञान बढ़े जो पढ़े
तब आत्मा दमके
फल हो मीठा
अनुभव की बात
पेड़ पुराना
बड़ो का नहीं मान
आया नया ज़माना
खो गया हरा
चारों ओर है काला
मन या धुआँ
पानी हुआ दूषित
नदी नाला या कुआँ
मै जो हूँ ख़ुश
दुनिया भी हो ख़ुश
खूशबू फैले
छूत की है बीमारी
जो बाँटो वो ही फैले
जो देखूँ दिखे
रावण हो या राम
मन का काम
मैं जैसा सब वैसे
मैं रावण मैं राम
बुद्ध का पथ
चले ज्ञान का रथ
हो तथागत
भूल जाना विगत
बने करुणा पथ
विरोध छोड़ो
अवरोध हो दूर
जीना सहज
काँटे न बनो तुम
फूल न बन पाओ
जहाँ भी देखा.
हर कण-कण में
तुम को पाया
प्रभु तेरी है माया
बनूँ तेरा ही साया
ऐसा कीजिए
दुनिया याद करे
जाने के बाद
छाप छोड़ो कर्म की
रहे धर्म का स्वाद
पत्थर दिल
समझें मुझे सब
ऐसा ही हूँ मैं
पिघलता है दिल
लावा ना बन पाता
इतना उठो
कुर्सी रहे ना रहे
ऊंचाई रहे
ऊँचे घर न बने
दिल में बस जाओ
सुने कोई तो
खामोशी की आवाज़
वक्त है किसे
मन के तार जुड़े
शब्द भी कम पड़े
जियो ऐसे भी
पर्दा गिरे तो भी
तालियाँ रहे
काम कर लो ऐसे
पुश्तें भी याद करे
अहं आकार,
मिटा नहीं पाया
जीना बेकार
रंक मिले राजा से
कृष्ण सुदामा प्यार
ठोकर खाई
तोहमत मत दो
बढ़ते चलो
कोई नहीं ज़िम्मेदार
तेरी ही जीत-हार
अंधेरे में था
गुरुदेव नमन
दिन दिखाया
अज्ञान भी मिटाया
प्रभु से मिलवाया
इस घर में
सब एक हैं पर
भाग्य अलग
एक ही संरचना
है अलग अलग
मिट जाएगा
सारा अर्जित मान
क्रोध ना कर
खो जाए पहचान
क्रोध मिटा दे शान
सकारात्मक
सोच और शब्द
ऊँचा उठा दे
विवाद न उलझे
बिगड़ा भी सुलझे
क़्रदम उठे
जब सही दिशा में
मंज़िल मिलें
हो भ्रमित जो दिशा
असफलता ही मिले
पतझड़ से
मिलन हो आसान
भू व सूरज
है आलिंगनबद्घ
जग नवनिर्माण
प्यार मुश्किल
नफरत आसान
मान न मान
प्यार माँगता त्याग
नफरत यानि आग
जीव चींटी भी
आत्मा एक समान
धर्म अहिंसा
यही जीवन सार
धर्म का ये आधार
पर्यावरण
गंभीर है समस्या
रोक चरण
वरना बरबादी
समय की मुनादी
हाइकु ताँका
ये कही अनकही
हर कविता
मेरे मन की बात
यही मेरे जज़्बात