धार्मिकता ही धर्म है
अक्सर हम दुविधा का सामना करते हैं कि हम सही कार्य कर रहे है या नहीं । ज्यादातर समय सही और गलत के बीच अंतर करना आसान होता है लेकिन सही और अधिक सही या गलत और अधिक गलत के बीच अंतर करना बहुत मुश्किल होता है । सही या गलत का पैमाना सार्वभौमिक सत्य और व्यक्तिगत धारणाओं के अनुसार अलग-अलग हो सकता हैं । चूँकि यह व्यक्तिपरक है तथा समाज, धर्म और पेशे पर निर्भर करता है; यह बहुत ही भ्रामक है । यदि हम सार्वभौमिक सत्य को छोड़ दें, तो अधिकांश मूल्य प्रणाली देश, धर्म, समाज और कार्य समूहों द्वारा ही शासित है । 4 पत्नियों को रखना एक धर्म में धर्म माना जाता है जबकि दूसरे धर्म में इसे स्वीकार नहीं किया जाता । नॉन-वेज खाना खाना एक समाज में अच्छी तरह से स्वीकार किया जाता है, जबकी दूसरे समाज में इसे सख्ती से प्रतिबंधित किया जाता है । हमारे पास ऐसी विडंबनापूर्ण व्यवस्था है ।
स्टीफन कोवे के अनुसार, सिद्धांत सार्वभौमिक हैं और वे प्रकाश घरों की तरह होते हैं । वे कभी नहीं बदलते लेकिन वैल्यू तथा विश्वास प्रणालियां समय, व्यक्ति, समूह और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं । यही मुख्य कारण है कि धार्मिकता की परिभाषा भी व्यक्ति दर व्यक्ति बदल जाती है । धार्मिकता को विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने की आवश्यकता है । मेरे विचार में धार्मिकता को 6 स्तरों पर समझाया जा सकता है ।
सार्वभौमिक धार्मिकता: कुछ सार्वभौमिक सिद्धांत और प्रथाएं जैसे कि ईमानदारी, प्रेम, कर्तव्य आदि दुनिया के हर हिस्से में सभी धर्मों और समाजों द्वारा स्वीकार किये जाते हैं । प्रत्येक मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह इन सिद्धांतों का पालन करे अन्यथा उस व्यक्ति के साथ सम्मान का व्यवहार नहीं भी किया जा सकता है । इसलिए धर्म मार्ग पर चलते रहो ।
राष्ट्रीय धर्म: हर देश का अपना संविधान और कानूनी व्यवस्था होती है । उस देश के प्रत्येक नागरिक से अपेक्षा की जाती है कि वे उस व्यवस्था को अपनाएं तथा उसका पालन करें ।
धार्मिक धार्मिकता: प्रत्येक धर्म की अपनी आस्था / विश्वास प्रणाली होती है और यदि आप उस धर्म से संबंध रखते हैं तो आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप उस धर्म के सिद्धांतों तथा उस धर्म की पवित्र पुस्तक का पालन करें ।
सामाजिक धार्मिकता: प्रत्येक समुदाय और समाज की अपनी एक वैल्यू सिस्टम होटा है और यदि आप इसका हिस्सा हैं, तो आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप उसका अनुसरण करें अन्यथा समुदाय आपको बहिष्कृत कर सकता हैं ।
व्यावसायिक धार्मिकता: प्रत्येक पेशे की आचार संहिता और नैतिकता परिभाषित होती है और यदि आप उस पेशे से संबंधित हैं, तो आपको उसके पालन करने की सलाह दी जाती है ।
व्यक्तिगत धार्मिकता: व्यक्तियों की अपनी शिक्षा, समाज, व्यक्तिगत मान्यताओं आदि के आधार पर अपनी नैतिक प्रणाली हो भी सकती है, हो सकता है वह दूसरों के लिए स्वीकार्य नहीं भी हो ।
धार्मिकता का रास्ता तय करने के लिए 5 टिप्स :
1. आपसे संबंधित सभी समूहों को पहचानें । उनकी आचार संहिता का पता लगाएं और उनका पालन करें ।
2. अगर आप सही रास्ते पर नहीं हैं तो चिंतित ना हों क्योकि यह आपका जागरूकता की और पहला कदम है । अधिकतर लोग अज्ञानी बने रहते है ।
3. व्यवहार और दृष्टिकोण में अचानक परिवर्तन संभव नहीं है । यह एक धीमी प्रक्रिया है । जब तक आप सही रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं, यह काफी अच्छा है ।
4. जिसे आप अनदेखा कर रहे हैं उस सबसे खतरनाक वैल्यू सिस्टम है को पहचाने और सबसे पहले उन पर काम करें ताकि आप स्वयं को उनके परिणामों से बचा सके ।
5. आपको आत्मज्ञान या मुक्ति नहीं मिलने तक यह एक सतत प्रक्रिया है । इसलिए सही राह पर चलते रहें ।
सात्विकता के साथ में, करिए अपना कर्म ।
दुनिया में कुछ है नहीं, सदाचार ही धर्म।।
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