मौन रहें या बोला जाए
हमारे जीवन में अक्सर यह सवाल सामने आ कर खड़ा हो जाता है कि मैं बोलूं या चुप रहूं । कई दफा गलत समय पर चुप्पी रखना नासमझी की स्थिति में तब्दील हो जाता है । दूसरी तरफ यदि पूर्व नियोजित ढंग से तर्क ना किया जाए तो वह एक हिंसक रूप भी ले सकता है । मौन रहना तथा बोलना दोनों ही संबंधों को बनाने या तोड़ने में सक्षम होते है । हमारा चुप रहना या टकराव दोनों समय, व्यक्ति और परिस्थितियों पर निर्भर करते है । हमें चाहिए कि हम सही समय पर और सही परिस्थितियों में आवशयकतानुसार दोनों नीतियों को उपयोग करें । विश्वास रिश्तों की कुंजी है । यदि विश्वास नहीं है तो न तो चुप्पी और न ही बोलना, कोई काम नहीं आएगा ।
टकराव की स्थिति निजी या सार्वजनिक दोनों हो सकती है । उदाहरण के लिए, यदि आप टैक्सी से यात्रा कर रहे हैं और ड्राइवर ने शराब पी राखी है ऐसी जोखिम भरी स्थिति में आपका मौन रखना मूर्खता कहलायेगा । करीबी रिश्तों में चुप रहना या बोलना अधिक महत्वपूर्ण होता है । कार्य स्थल पर कर्मचारी और बॉस के बीच , सहकर्मी तथा सहकर्मी के बीच या बाहरी एजेंसियों जैसे क्लाइंट, सप्लायर बैंकर आदि के बीच टकराव हो सकता है । निजी टकराव अक्सर पती- पत्नी के बीच, परिवारों, दोस्तों, पड़ोसियों आदि के बीच होते है । नियोजित तरीके से सोच तथा परिणामों के विश्लेषण के बाद ही मनुष्य को टकराव या मौन स्थिति में पदार्पण करना चाहिए । अनियोजित टकराव से स्थिति बदतर होने की अधिक संभावना हो जाती है ।
सवाल उठता है कि जहां स्थिति बोलने की मांग कर रही हो वहां लोग चुप क्यों रहते है तथा क्यों अप्रासंगिक मुद्दों पर लोग आपसी टकराव की स्थिति पैदा कर लेते हैं । संभवत: इसमें व्यक्ति का मूल स्वभाव भी एक महत्वपूर्ण कारक है कि कोई व्यक्ति चुप हो कर पाने खोल में घुस जाता है या टकराव की स्थिति में जाना पसंद करता है । संसार में विभिन्न प्रकृति के लोग मौजूद है कुछ अत्यधिक अंतर्मुखी तो कुछ अत्यधिक बहिर्मुखी, कुछ अत्यधिक विनम्र तो कुछ अत्यधिक प्रभुत्व रखने वाले, कुछ अत्यधिक अव्यवस्थित तो कुछ अत्यधिक व्यवस्थित आदि । ज्ञान की कमी, संबंध खोने का डर या बोलने के कौशल की कमी या टकराव की स्थिति से दूर रहने के कारणों से भी कुछ लोग चुप रहना पसंद करते है । एक अन्य दृष्टिकोण यह भी है कि हमारी शिक्षा प्रणाली, हमारा समाज और हमारा कार्य हमें अपने विचारों तथा भावनाओं को दबाना सिखाते है न कि उन्हें प्रभावी ढंग से व्यक्त करना ।
मौन तथा टकराव के प्रभावी उपयोग के लिए 5 टिप्स :
1. किसी स्थिति में मौन रहना या बोलना आपका एक सचेत निर्णय होना चाहिए । मौन रहना या बोलने जैसे औजार को समय, लोगों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस्तेमाल किया जाना चाहिए ।
2. ऐसे कुछ महत्वहीन मामले जिनका लंबी समयावधी तक कोई खास असर नहीं पड़ता, के लिए कभी-कभी “लेट-इट-गो” दृष्टिकोण को अपनाना सही है ।
3. अपने ध्यान में सदा उच्च लक्ष्य को रखें । घर पर रिश्ते तथा कार्यस्थल पर आपके काम का प्रदर्शन अधिक महत्वपूर्ण होता है ।
4. ऐसा जरूरी नहीं है कि आप हमेशा सही हों । स्थिति को दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण से भी देखें । सहानुभूतिपूर्ण बनें । जरूरत पड़े तो अपने उच्च पद के बावजूद भी अपने गलत व्यवहार के लिए माफी मांग सकते है ।
5. निर्णय की भाषा की तुलना में अक्सर विचारोत्तेजक भाषा का प्रयोग करने की कोशिश करें । इससे सुनने और समझने का बेहतर माहौल तैयार होता है ।
“बुरे लोगों के द्वारा की जा रही हिंसा की तुलना में अच्छे लोगों की चुप्पी के कारण संसार को अधिक नुकसान हुआ है” ।
मन ही निर्णय ले सदा, किसे बताये कौन ।
कहाँ मुखर रहना हमें, और कहाँ पर मौन ।।
English Blog Link: http://nectarofwisdom.in/2019/12/21/silence-or-speak-out/