४२. निक्षेप-सूत्र
जुत्तीस–जुत्तमगे जं चउभेएण होइ खलु ठवणं ।
कज्जे सदि णामादिसु तं णिक्खेवं हवे समए ॥1॥
युक्तिसुयुक्तमार्गे, यत् चतुर्भेदेन भवति खलु स्थापनम्।
कार्ये सति नामादिषु, स निक्षेपो भवेत् समये ॥1॥
युक्तिपूर्वक उपयुक्त कहा, स्थापना और भाव ।
नाम द्रव्य यह चार है, निक्षेप सूत्र प्रभाव ॥4.42.1.737॥
युक्तिपूर्वक, उपयुक्तमार्ग में प्रयोजनवश नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव में पदार्थ की स्थापना को आगम में निक्षेप कहा गया है।
According to “Agam”, “Nikshepa” is the rational and purposeful representation of and object in proper way, in name (or negative aspect), represented on (Sthapana/Installed by),Substance (Dravya) and present natural attribute (Bhava). (737)
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दव्वं विविह–सहावं, जेण सहावेण होइ तं झेयं।
तस्स णिमित्तं कीरइ एक्कं पि य दव्व चउभेयं॥2॥
द्रव्यं विविधस्वभावं, येन स्वभावेन भवति तद्ध्येयम्।
तस्य निमित्त क्रियते, एकमपि च द्रव्यं चतुर्भेदम् ॥2॥
द्रव्य विविध स्वभाव का, जिससे भी हो ज्ञान ।
निमित्त उसके ही किये, चार अंग द्रव्य समान ॥4.42.2.738॥
द्रव्य विविध स्वभाववाला है। उनमें से जिस स्वभाव के द्वारा वह ध्येय या ज्ञेय (ध्यान या ज्ञान) का विषय होता हैउस स्वभाव के निमित्त एक द्रव्य के ये चार भेद किये गये हैं॥
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णाम ट्ठाणा दव्वं, भावं तह जाण होइ णिक्खेवं ।
दव्वे सण्णा णामं दुविहं पि य तं पि विक्खायं ॥3॥
नाम स्थापनां द्रव्यं, भावं तथा जानीहि भवति निक्षेपः।
द्रव्ये संज्ञा नाम, द्विविधमपि च तदपि विख्यातम् ॥3॥
नाव, भाव, स्थापन द्रव्य निक्षेप चार प्रकार।
द्रव्य नाम संज्ञा सदा, इसके भी दो तार ॥4.42.3.739॥
और (इसीलिए) निक्षेप चार प्रकार का माना गया है- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। द्रव्य की संज्ञा को नाम कहते है। उसके भी दो भेद प्रसिद्ध है।
And (therefor); “Nikshepa” is of four kinds : Name, Representation/Installation, Substance and Present Natural attribute. Natural attribute.Name is the noun of substance. It is of two main kinds. (739)
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सायार इयर ठवणा, कित्तिम इयरा हु ‘बिंबजा पढमा।
इयरा खाइय भणिया, ठवणा अरिहो य णायव्वो॥4॥
साकारोत्तरा स्थापना, कृत्रिमेतरा हि विम्बजा प्रथमा।
इतरा इतरा भणिता, स्थापनाऽर्हश्चं ज्ञातव्य ॥4॥
स्थापना साकार करे, कृत्रिम बिम्ब बनाय ।
इधर उधर अर्हन्त दिखे, निराकार कहलाय ॥4.42.4.740॥
जहाँ एक वस्तु का किसी अन्य वस्तु में आरोप किया जाता है वहाँ स्थापना निक्षेप होता है। यह दो प्रकार का है- साकार और निराकार। कृत्रिम और अकृत्रिम अर्हन्त की प्रतिभा साकार स्थापना है तथा किसी अन्य पदार्थ में अर्हन्त की स्थापना करना निराकार स्थापना है।
(“Sthapananikshepa” is representation or Installation of one thing by another; this is of two kinds: Sakar (Formal) and Nirakar (Formless/Informal). The natural and artificial image of arhat is (an example of) Sakarasthapana (Formal/Figurative); and the representation of Arhat in some other objects is (an example of) Nirkarsthapana(Informal/Unfigurative). (740)
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दव्वं खु होइ दुविहं, आगम–णोआगमेण जह भणियं ।
अरहंत–सत्थ–जाणो, णोजुत्तो दव्व–अरिहंतो ॥5॥
णोआगमं पि तिविहं, णाणिसरीरं भावि कम्मं च ।
णाणिसरीरं तिविहं, चुद चत्तं चाविदं चेति ॥6॥
द्रव्यं शखलु भवति द्विविधं, आगममनोआगमाभ्याम् यथा भणितम् ।
अर्हत् शास्त्रज्ञायकः अनुपयुक्तो द्रव्यार्हन् ॥5॥
नोआगमः अपि त्रिविधः, देहो ज्ञानिनो भावकिर्म च ।
ज्ञानिशरीरं त्रिविधं, च्युतं त्यक्तं च्यावितम् च इति ॥6॥
नोआगम आगम कहे, द्रव्यनिक्षेप दू जात।
शास्त्र ज्ञान अर्हन्त का, कर उपयोग न पात ॥4.42.5.741॥
ज्ञायतन, भावी, करम, नोआगम के भाग।
च्युत, त्यक्त, च्यावित रहे ज्ञानी तन त्री राग ॥4.42.6.742॥
जब वस्तु की वर्तमान अवस्था का उल्लंंघन कर उसका भूतकालीन या भावी स्वरूपानुसार व्यवहार किया जाता है, तब उसे द्रव्यनिक्षेप कहते हैं। उसके दो भेद है- आगम और नोआगम। अर्हन्तकथित शास्त्र का जानकार जिस समय उस शास्त्र में अपना उपयोग नहीं लगाता उस समय वह आगम द्रव्यनिक्षेप अर्हन्त है। नोआगम द्रव्यनिक्षेप के तीन भेद हैं- ज्ञायकशरीर, भावी और कर्म। जहाँ वस्तु के ज्ञाता के शरीर को उस वस्तुरूप माना जाय वहाँ ज्ञायक शरीर नोआगम द्रव्यनिक्षेप है। जैसे राजनीतिज्ञ के मृत शरीर को देखकर कहना कि राजनीति मर गयी। ज्ञायकशरीर भी भूत, वर्तमान और भविष्य की अपेक्षा तीन प्रकार का तथा भूतज्ञायक शरीर च्युत, त्यक्त और च्यावित रूप से पुनः तीन प्रकार का होता है। वस्तु को जो स्वरूप भविष्य में प्राप्त होगा उसे वर्तमान में ही वैसा मानना भावी नोआगम द्रव्यनिक्षेप है।जैसे युवराज को राजा मानना तथा किसी व्यक्ति का कर्म जैसा हो अथवा वस्तु के विषय में लौकिक मान्यता जैसी हो गयी हो उसके अनुसार ग्रहण करना कर्म या तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्यनिक्षेप है। जैसे जिस व्यक्ति में दर्शन विशुद्धि, विनय आदि तीर्थकर नामकर्म का बन्ध करानेवाले लक्षण दिखाई दे उसे तीर्थकर ही कहना अथवा पूर्वकलश, दर्पण आदि पदार्थो को लोक-मान्यतानुसार मांगलिक कहना।
“Dravyanikshepa” (Taking the potential for the actual) is there, where there is a transaction in accordance with the past or future shape of an object, disregardful of its present state. It is of two kinds: 1. Agam-Dravya-Nikshepa (Attention-Substance- Aspect); and 2. No-Agam-Dravyanikshepa (Quasi attention-Substanceaspect). For example when the knower of the scripture of arhat does not attend that scripture it is called Arhat, according to Agam-Dravya-Nikshepa (attentionsubstanceaspect). No Agam Dravya Nikshepa (Quasi attention substance aspect) is of three kinds:- 1. Jnayaka-sarir (body of the knower); 2. Bhavi (Attributing to the body in the present a conduction of some future existence after death); and 3. Karma (Tadvyatirikta) (attributing to the body the karma matter by which it will acquire only particular condition. The Jnayak sarir No Agam Dravya nikshepa is there; where the body of the
knower of that object is considered to be equal to that thing for example, “to say that politics is dead by just seeing the dead body of a politician. The body of the knower (Jnayak) (sarir) is of three kinds: 1. Past 2. Present and 3. Future The past body of the knower (Bhuta-Jnayaksarir) is again of three kinds : 1. Fallen (cyst); 2. Deserted (Tyakta) and 3. Dripped (Chyavita). Bhavi no agam-Dravya nikshepa is that according to which an object is at present considered of the shape it is to acquire in future. For example; to consider a prince designates as the king.The karma (Tadvyatirikta) no Agam Dravya nikshepa is attributing the karmic matter of one’s deeds to his body or under standing a thing in accordance with the general recognition about it for example to call a man equipped with the attributes of Darshan visuddhi, vinaya and other characteristics of a would be tirthankar as tirthankar; or to call the filled up pitcher, looking glass etc. as auspicious, in view of general recognition thereof. (741 & 742)
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आगम–णोआगमदो तहेव भावो वि होदि दव्वं वा ।
अरहंत–सत्थ–जाणो आगमभावो हु अरहंतो ॥7॥
तग्गुणराय–परिणदो णो–आगमभाव होइ अरहंतो।
तग्गुणराई झादा केवलणाणी हु परिणदो भणिओ ॥8॥
आगमनोआगमतस्तथैव भावोऽपि भवति द्रव्यमिव।
अर्हंत् शास्त्रायकः, आगमभावो हि अर्हन् ॥7॥
तद्गुणैश्च परिणतो, नोआगमभावो भवति अर्हन्।
तद्गुणैर्ध्याता, केवलज्ञानी हि परिणतो भणितः ॥8॥
भाव–आगम निक्षेप है, नोआगम भी भाव ।
शास्त्र ज्ञायक आगम हो, अरिहंत आगमभाव ॥4.42.7.743॥
अरिहंत गुण को प्रकट, नोआगम के भाव ।
ज्ञानी केवल कहे उसे, नोआगम स्वभाव ॥4.42.8.744॥
तत्कालीन पर्याय के अनुसार ही वस्तु को सम्बोधित करना या मानना भावनिक्षेप है। इसके भी दो भेद है- आगम भावनिक्षेप और नोआगम भावनिक्षेप। जैसे अर्हन्त-शास्त्र का उसी समय अर्हन्त है; यह आगम भावनिक्षेप है। जिस समय उसमें अर्हन्त के समस्त गुण प्रकट हो गये हैं उस समय उसे अर्हन्त कहना तथा उन गुणों से युक्त होकर ध्यान करनेवाले को केवलज्ञानी कहना नोआगमभावनिक्षेप है।
“Bhavanikshepa” (positive aspect or present natural attribute) consists of giving a thing a name, counting the attributes of its present condition only. It is of two kinds: 1. Agam-Bhavanikshepa (When the soul knows and is actually attentive); and 2. No Agam bhavnikshepa (When the actual present condition of a material thing is referred to). To illustrate again Bhavnikshepa; when the knower of Arhat shastra (The scripture of Arhat) as paying his attention to that knowledge, he is Arhat. No-Agam-Bhav-nikshepa calls a man Arhat when he attains all the attributes of Arhat and call a man omniscient (one with perfect knowledge/keval Jnani) when he (Arhat) meditates manifested with those attributes. (743 & 744)
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