३१. लेश्यासूत्र
होंति कमविसुद्धाओ, लेसाओ पीयपम्हसुक्काओ ।
धम्मज्झाणोवगयस्स, तिव्व–मंदाइभेयाओ ॥1॥
भवन्ति क्रमविशुद्धाः, लेश्याः पीतपद्मशुक्लाः।
धर्मध्यानोपगतस्य, तीव्रमन्दादि–भेदाः ॥1॥
शुभ तीन लेश्या मुनि की, पीली पद्म स़फेद।
धर्म ध्यान से युक्त मुनि, तीव्र–मन्द से भेद ॥2.31.1.531॥
धर्म ध्यान से युक्त मुनि के क्रमशः विशुद्ध पीत, पद्म और शुक्ल ये तीन शुभ लेश्याएं होती है। इन लेश्याओें के तीव्र मन्द के रुप में अनेक प्रकार होते हैं।
One engaged in the meditation called `dharma-dhyana’ is possessed of three lesyas (soul-colouring), viz, yellow, lotus coloured and white – which are respectively more and more pure and are each divided into sub-types like intense, mild etc. (531)
****************************************
होंति कमविसुद्धाओ, लेसाओ पीयपम्हसुक्काओ ।
धम्मज्झाणोवगयस्स, तिव्व–मंदाइभेयाओ ॥2॥
योगप्रवृत्तिर्लेश्या, कषायोदयानुरञ्जिता भवति।
ततः द्वयोः कार्य, बन्धचतुष्कं समुद्दिष्टम् ॥2॥
योग प्रवृत्ति कषाय उदय इसे लेश्या मान ।
कषाय योग का काम है चार बंधु यह जान ॥2.31.2.532॥
कषाय के उदय से अनुरंजित मन-वचन-काय की योग प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। इन दोनों अर्थात कषाय और योग का कार्य है चार प्रकार का कर्म बंध। कषाय से कर्मों के स्थित और अनुभाग बन्ध होते हैं और योग से प्रकृति और प्रदेश बन्ध।
Occurrence of soulcolouring as a result of activities (of mind, speech and body) due to the rise of passions is called Lesya. The twin effects of activity and passions is to bring about bondage of four kinds of Karma. (532) Note: At the time of bondage of karmas to the soul, four characteristics of karmas are decided. They are : 1) Prakriti (nature). 2) Pradesh (quantity). 3) Sthiti (duration). 4) Anubhag (intensity). The nature and quantity of karmas depend on the vigor of the activities, while the duration and intensity of karmas depend upon the intensity of the desires behind the activities.
****************************************
किण्हा णीला काऊ, तेऊ पम्मा य सुक्क–लेस्सा य ।
लेस्सां णिद्देसा, छचचेव हवंति णियमेण ॥3॥
कृष्णा नीला कापोता, तेजः पद्मा च शुक्ललेश्या च।
लेश्यानां निर्देशात्, षट् चैव भवन्ति नियमेन ॥3॥
काली नील कबूतरी, पीली पद्म स़फेद।
छह तरह की लेश्या, रंगो में है भेद ॥2.31.3.533॥
लेश्याऐं छह प्रकार की है- कृष्णलेश्या, नील, कपोत (कबूतरी), पीली, पद्म और शुक्ल।
The thought colours (leshyas) are of six kinds : 1. Black; 2. Blue; 3. Gray; 4. Yellow; 5. Pink; and 6. White. (533)
****************************************
किण्हा नीला काऊ, तिण्णि वि एयाओ अहम्मलेसाओ ।
एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गइं उववज्जई बहसो ॥4॥
कृष्णाननीलाकापोता, तिस्रोऽप्येता अधर्मलेश्याः।
एताभिस्तिसृभिरपि जीवो, दुर्गतिमुपपद्यते बहुशः ॥4॥
काली नील कबूतरी, अशुभ लेश्या तीन ।
दुर्गति संयुक्त सदा पाय जीव गति हीन ॥2.31.4.534॥
कृष्ण, नील और कपोत ये तीनों अधर्म या अशुभ लेश्याऐं है। इनके कारण जीव विविध दुर्गतियों में उत्पन्न होता है।
The black, blue and grey are the three types of inauspicious Lesyas; as result of these three (Lesyas) the soul takes birth in various-unhappy states of existence. (534)
****************************************
तेऊ पम्हा सुक्का, तिण्णि वि एयाओ धम्मलेसाओ ।
एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववज्जई बहुसो ॥5॥
तेजः पद्मा शुक्ला, तिस्रोऽप्येता धर्मलेश्याः ।
एताभिस्तिसृभिरपि जीवः, सुगतिमुपपद्यते बहुशः ॥5॥
पीली, पद्म, स़फेद है, धर्म लेश्या तीन।
इन तीनों से जीव सब, सुगति पावे नवीन ॥2.31.5.535॥
पीत (पीली), पद्म और शुक्ल ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याऐं है। इनके कारण जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है।
The golden-yellow, lotuscoloured and white are the three typesof auspicious Lesyas; on account of these three, the soul mostly takes birth in various happy states of existence. (535
****************************************
तिव्वतमा तिव्वतरा, तिव्वा असुहा सुहातहा मंदा ।
मंदतरा मंदतमा, छट्ठाण–गया हु पत्तेयं ॥6॥
तीव्रतमास्तीच्रतरा–स्तीव्रा अशुभाः शुभास्तथा मन्दः ।
मन्दतरा, मन्दतमाः, षट्स्थानगता हि प्रत्येकम् ॥6॥
तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम, अशुभ लेश्या भेद।
मन्द, मन्दतर, मन्दतम, शुभ लेश्या के भेद ॥2.31.6.536॥
कृष्ण, नील और कपोत प्रत्येक के तीव्रतम, तीव्रतर व तीव्र ये तीन भेद होते है। शुभ लेश्याओं के मन्द, मन्दतर व मन्दतम ये तीन भेद होते है। तीव्र और मन्द प्रत्येक में छह वृद्धियाँ और छह हानियाँ होती है। अनन्त-भाग, असंख्यात-भाग, संख्यात-भाग, अनन्त-गुण, असंख्यात-गुण, संख्यात-गुण। इसी कारण लेश्याओं के भेदों में भी उतार चढ़ाव होता रहता है।
Each of the three inauspicious Lesyas differ in their intensity; most intense, more intense and intense; similarly the auspicious Lesyas undergo three changes; most mild, more mild and mild. And each of these sub-types is further subdivided into six classes in accordance with its relative increase and decrease. (536)
****************************************
पहिया जे छप्पुरिसा, परि–भट्ठा–रण्ण–मज्झ–देसम्हि ।
फल–भरिय–रुक्ख–मेगं, पेक्खित्ता ते विंचंतंति ॥7॥
णिम्मूलखंधसाहु–वसाहं छित्तुं चिणित्तु पडिदाइं ।
खाउं फलाइं इदि, जं मणेण वयणं हवे कम्मं ॥8॥
पथिका ये षट् पुरुषाः, परिभ्रष्टा अरण्यमध्यदेशे ।
फलभरितवृक्षमेकं, प्रेक्ष्य ते विचिन्तयन्ति ॥7॥
निर्मूलस्कन्धशाखोपशाखं छित्वा चित्वा पतितानि ।
खादितुं फलानि इति, यन्मनसा वचनं भवेत् कर्म॥8॥
छह पथिक घर से चले, भटके जंगल यार।
फल लदा इक वृक्ष मिला, करने लगे विचार ॥2.31.7.537॥
मूल तना शाखा सभी, फल का होत विचार।
टपका फल खाऊँ पका, कर्म मनन संसार ॥2.31.8.538॥
छह पथिक जंगल में भटक गये। भूख लगने पर उन्हें फलों से लदा एक वृक्ष दिखा। वे मन ही मन विचार करने लगे। एक ने सोचा की पेड़ को जड़-मूल से काटकर फल खाये। दूसरे ने सोचा केवल तने से काटा जाय। तीसरे ने सोचा शाखा ही तोड़ना ठीक रहेगा। चौथे ने विचार किया कि छोटी डाल ही तोड़ी जाय। पाँचवाँ चाहता था कि फल ही तोड़े जाय। छटे ने विचार किया कि वृक्ष से टपककर नीचे गिरे फल ही चुनकर क्यों न खाये जाय। इन छहों पथिकों के विचार, वाणी तथा कर्म क्रमशः छहो लेश्याओं के उदाहरण है।
Six persons who are travellers miss their way in the midst of a forest. They see a tree laden with fruits and begin to think of getting those fruits: one of them suggests uprooting the entire tree and eating the fruits; the second one suggests cutting the trunk of the tree; the third one suggests cutting the branches; the fourth one suggests cutting the twigs; the fifth one suggests plucking the fruits only; the sixth one suggests picking up only the fruits that have fallen down. The thoughts, words and bodily activities of each of these six travellers related to eating fruits are mutually different and respectively illustrative of the six Lesyas. (537 & 538)
****************************************
चंडो ण मुचइ वेरं, भंडण–सीलो य धरम–दय–रहिओ।
दुट्ठो ण य एदि वसं, लक्खण–मेयं तु किण्हस्स॥ 9॥
चण्डो न मुञ्चति वैरं, भण्डनशीलाश्च धर्मदयारहितः।
दुष्टो न चैति वशं, लक्षणमेतत्तु कृष्णस्य॥9॥
क्रोध बैर झगड़ा करे, दया धर्म ना भाव।
दुष्ट और वश में नहीं, कृष्ण लेश्य स्वभाव ॥2.31.9.539॥
स्वभाव की प्रचण्डता, बैर की मज़बूत गाँठ, झगड़ालू वृत्ति, धर्म और दया से शून्यता, दुष्टता, समझाने से भी नही मानना ये कृष्ण लेश्या के लक्षण हैं।
मंदो बुद्धि–विहीणो, णिव्विणाणी य विसय–लोलो य ।
लक्खण–मेयं भणियं, समासदो णील–लेस्सस्स ॥10॥
मन्दो बुद्धिविहीनो निर्विज्ञानी च विषयलोलश्च ।
लक्षणमेतद् भणितं, समासतो नीललेश्यस्य ॥10॥
मंद, अज्ञानी, बुद्धि नहीं, लोलुप भोग स्वभाव ।
लक्षण है उस जीव के, नील लेश्या भाव॥2.31.10.540॥
मन्दता, बुद्धिहीनता, अज्ञान और विषयलोलुपता- ये संक्षेप में नीललेश्या के लक्षण है।
The (mental) characteristics of a person with blue Lesya are: he is dull; he is devoid of intelligence; he has no discrimination; and he is given to sensual enjoyment. (540)
****************************************
रूसइ णिंदइ अण्णे, दूसइ बहुसो य सोय–भय–बहुलो ।
ण गणइ कज्जा–कज्जं, लक्खण–मेयं तु काउस्स ॥11॥
रुष्यति निन्दति अन्यान् दूषयति बहुशश्च शोकभयबहुलः।
न गणयति कार्याकार्य, लक्षणमेत् तु कापोस्य ॥11॥
रुष्ट हो, निन्दा, दोष मढ़े, शोकाकुल भयभीत ।
ऐसे जिसके काम वो, कपोत लेश्या रीत ॥2.31.11.541॥
जल्दी रुष्ट हो जाना, दूसरों की निन्दा करना, दोष लगाना, अति शोकाकुल होना, अत्यन्त भयभीत होना ये कपोत लेश्या के लक्षण है।
The (mental) characteristics of a person with grey Lesya are: he frequently gets angry, censures others, blames others, is
susceptible to sorrow and fear, and does not discriminate between what ought to be done and what not to be done. (541)
****************************************
जाणइ कज्जाकज्जं, सेयमसेयं च सव्व–सम–पासी।
दय–दाण–रदो य मिदू, लक्खण–मेयं तु तेउस्स ॥12॥
जानाति कार्याकार्य, श्रेयः अश्रेयः च सर्वसमदर्शी।
दयादानरतश्च मृदुः, लक्षणमेत् तु तेजसः ॥12॥
कार्य अकार्य ज्ञान हो, हो विवेक समभाव।
दया दान मृदु वृत्ति हो, पीत लेश्या भाव॥2.31.12.542॥
कार्य-अकार्य का ज्ञान, उचित-अनुचित का विवेक, समभाव, दया-दान में प्रवृत्ति ये पीत या तेजो लेश्या के लक्षण हैं।
The (mental) characteristics of a person with golden yellow Lesya are : he knows as to what ought to be done and what not to be done; he knows as to what acts lead to welfare and what do not; he has always an attitude of impartiality, he is ever engaged in acts of compassion and charity, and he is soft. (542)
****************************************
चागी भद्दी चोक्खो, उज्जव कम्मो य खमदि बहुगं पि।
साहु–गुरु–पूजन–रदो, लक्खण–मेयं तु पम्मस्स ॥13॥
त्यागी भद्रः चोक्षः, आर्जवकर्मा च क्षमते बहुकमपि।
साधुगुरुपूजरतो, लक्षणमेत् तु पद्मस्य ॥13॥
भद्र त्यागी और खरा, रखे क्षमा का भाव ।
गुरु साधु पूजित हरदम लेश्या पद्म स्वभाव ॥2.31.13.543॥
त्यागशीलता, परिणामों में भद्रता, व्यवहार में प्रामाणिकता, कार्य में शुद्धता, अपराधियों के प्रति क्षमाशीलता, साधु-गुरुजनों की पूजा सेवा में तत्परता ये पद्म लेश्या के लक्षण हैं।
The (mental) characteristics of a person with Padma Lesya are: he is generous, honest, straight-forward in his dealings, possessed of great forbearance and engaged in the worship of monks and preceptors. (543)
****************************************
णयकुणइ पक्खवायं, ण वि य णिदाणं समो य सव्वेसिं ।
णत्थि य राय–द्दोसा, णेहो वि य सुक्क–लेस्सस्स ॥14॥
न च करोति पक्षपातं, नापि च निदानं समश्च सर्वेषाम्।
न स्तः च रागद्वेषो, स्नेहोऽपि च शुक्ललेश्यस्य ॥14॥
पक्षपात, उम्मीद नहीं, समदर्शी समभाव।
राग द्वेष से दूर रहे, लेश्य शुक्ल स्वभाव॥2.31.14.544॥
पक्षपात न करना, भोगों की आकांक्षा न करना, सब ने समदर्शी रहना, सब में राग द्वेष तथा प्रणय से दूर रहना – शुक्ल लेश्या के लक्षण है।
The (mental) characteristics of a person with white Lesya are: he does not treat anybody with partiality; has no desire for future sensual pleasures, treats everybody with equality and he is devoid of affection, hatred and attachment. (544)
****************************************
लेस्सासोधी अज्झवसाण–विसोधीए होइ जीवस्स ।
अज्झवसाण–विसोधी मंदकसायस्स णादव्वा ॥15॥
लेश्याशुद्धिः अध्यवससानविशुया भवति जीवस्य ।
अध्यवसानविशुद्धिः, मन्दकषायस्य ज्ञातव्या ॥15॥
आत्मा शुद्धि जीव की, लेश्या शुद्ध हो जाय।
मन्द करे कषाय को, विशुद्ध लेश्या भाय ॥2.31.15.545॥
आत्मपरिणामों में विशुद्ध आने से लेश्या भी विशुद्ध होती है और कषायों की मन्दता से परिणाम विशुद्ध होते हैं।
On the attainment of mental purification there will be purity in the Lesyas: it would be understood that the subsidence of passions leads to attainment of mental purification. (545)
—————————————————————————————————————————