१.मंगलसूत्र
णमो अरहंताणं। णमो सिद्धाणं। णमो आइरियाणं ।
णमो उवज्झायाणं। णमो लोए सव्वसाहूणं ॥1॥
एसो पंच णमोक्कारो, सव्वपप्पणासणो ।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥2॥
नमः अर्हद्भ्यः। नमः सिद्धेभ्यः नमः आचार्येभ्यः ।
नमः उपाध्यायेभ्यः। नमो लोके सर्वसाधुभ्यः॥1॥
एष पंचनमस्कारः, सर्वपापप्रणाशनः ।
मङ्गलेषु च सर्वेषु, प्रथमं भवति मङ्गलम्॥2॥
नमन करूँ अरिहंत–सिद्ध, आचारज नवकार ।
उपाध्याय को भी नमन, नमो साधु शत्बार ॥1.1.1.1॥
पंच नमन जब सब करे, हो पापों से पार ।
मंगल में है सकल यही, मंगल प्रथम विचार॥1.1.2.2॥
अर्हतों को नमस्कार । सिद्धोें को नमस्कार । आचार्र्योेें को नमस्कार । उपाध्यायों को नमस्कार । लोकवर्ती सर्वसाधुओं को नमस्कार ॥यह पंच नमस्कार मन्त्र सब पापों का विनाश करनेवाला है और समस्त मंगलों में प्रथम मंगल है।
I pay homage to embodied pure souls who have won their all enemies.(Arihantas); I pay homage to bodiless pure souls (Siddhas); I pay homage to the Heads of the saints (Acharyas); I
pay homage to the preceptors in the order of saints (Upadhyayas); I pay homage to all saints (Sadhus) in the universe. (1)
This five homages (Pamcha-namokara-Mantra) is destructive of all sins and is the first bliss (mangal) of all the blisses (mangalas). (2)
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अरहंता मंगलं। सिद्धा मंगलं। साहू मंगलं। ।
केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगल ॥3॥
अरहंता लोगुत्तमा। सिद्धा लोगुत्तमा। साहू लोगुत्तमा। ।
केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो ॥4॥
अरहंते सरणं पव्वज्जामि। सिद्धे सरणं पव्वज्जामि ।
साहू सरणं पव्वज्जामि। केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि ॥5॥
अर्हन्तः मङ्गलम्। सिद्धाः मङ्गलम्। साधवः मङ्गलम्।
केवलिप्रज्ञप्तः धर्मः मङ्गलम्॥3॥
अर्हन्तः लोकोत्तमाः। सिद्धाः लोकोत्तमाः। साधव लोकोत्तमाः।
केवलिप्रज्ञप्तः धर्मः लोकोत्तमः॥4॥
अर्हतः शरणं प्रपद्ये। सिद्धान् शरणं प्रपद्ये। साधून् शरणं प्रपद्ये।
केवलिप्रज्ञप्तं धर्म शरणं प्रपद्ये॥5॥
मंगल हैं अरिहंत–सिद्ध, संत भी मंगल मान ।
केवलि पथ ही मंगलम्, चल कर उस पर जान॥1.1.3.3॥
अरिहंत उत्तम लोक में, सिद्ध है उत्तम लोक ।
साधु लोक में उत्तम है, जिन पथ उत्तम लोक॥1.1.4.4॥
शरण जाऊँ अरिहंत की, शरण सिद्ध की जाय ।
साधु की मैं शरण लूँ, जिन पथ शरण उपाय॥1.1.5.5॥
अर्हत् मंगल हैं। सिद्ध मंगल हैं। साधु मंगल हैैं। केवलिप्रणीत धर्म मंगल है। अर्हत् लोकोत्तम हैं। सिद्ध लोकोत्तम हैें। केवलि-प्रणीत धर्म लोकोत्तम है। अर्हतों की शरण लेता हूँ। सिद्धों की शरण लेता हूँ। साधुओं की शरण लेता हूँ। केवलि-प्रणीत धर्म की शरण लेता हूँ।
The Embodied pure and perfect souls (Arhats) are auspicious; Bodiless pure souls (Sidhas) are auspicious (Mangal); (3)
Saints (Sadhus) are auspicious (Mangal); The religion promulgated by omniscient (Kevali) is auspicions (Mangal). Embodied pure souls are best in the universe; Bodiless pure souls are best in universe; Saints (Sadhus) are best in universe; and religion promulgated by kevali is best in the universe. (4)
I take refuge under the Embodied pure souls (Arihants);
I take refuge under the bodiless pure souls(Siddhas);
I take refuge under saints; I take refuge under the religion promulgated by the omniscient (kevali). (5)
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झायहि पंच वि गुरवे, मंगल चउ–सरण–लोय–परियरिए।
णर–सुर–खेयर–महिए, आराहण–णायगे वीरे॥6॥
ध्यायत पञ्च अपि गुरून्, मङ्गल–चतुः शरण–लोकपरिकरितान्
नरसुरखेचरमहितान् आराधननायकान् वीरान्॥6॥
ध्यान पंच परमेष्ठी, मंगल उत्तम लोक ।
नर–सुर ज्ञानी पूजते, ऐसे वीर त्रिलोक॥1.1.6.6॥
पंच परमेष्ठी का ध्यान करें। लोक में यही चार शरण मंगल हैं। नर सुर-खेचर (आकाशगामी विद्याधरों) से पूजित हैं। आराधना को जानने वाले हैं।
Meditate on five great teachers, who are best in universe; who are the conquers of the worst) enemies called Karmas; who are adored by human-beings.(6)
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घण–घाइ–कम्म–गहणा, तिहुवण–वर–भव्व–कमल–मत्तंडा।
अरिहा अणंत–णाणे, अणुवम–सोक्खा जयंतु जए ॥7॥
घनघातिकर्ममथनाः, त्रिभुवनवरभव्यकमलमार्तण्डाः।
अर्हाः (अर्हन्तः) अनन्तज्ञानिनः, अनुपमसौख्या जयन्तु जगति॥7॥
कर्म जो घातक काट ले, सूर्य त्रिलोक समान।
अरिहंत ज्ञानी परम सुखी, अनन्त जय सम्मान॥1.1.7.7॥
Let the embodied pure souls, who have destroyed all the intense karmas; who are like suns that belonging to all the three Universes; who are endowed with infinite knowledge and bliss-be ever victorious in the universe. (7)
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अट्ठ–विह–कम्म–वियला, णिट्ठिय–कज्जा पणट्ठ–संसारा।
दिट्ठ–सयलत्थ–सारा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥8॥
अष्टविधकर्मविकलाः, निष्ठितकार्याः प्रणष्टसंसाराः।
दृष्टसकलार्थसाराः, सिद्धाः सिद्धिं मम दिशन्तु॥8॥
आठों कर्मों से परे, मरण–जन्म बिन ज्ञान।
सकल तत्त्व के दृष्टा सिद्ध, सिद्धि करो प्रदान ॥1.1.8.8॥
अष्ट कर्मों से रहित, कृतकृत्य, जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त तथा सकल तत्त्वार्थ के द्रष्टा सिद्ध मुझे सिद्धि प्रदान करें।सभी घातक कर्मों का अंत करने वाले तीनों लोकों में श्रेष्ठ भव्य-कमलों के लिए सूर्य (मार्तण्ड) हैं। अरिहंत जो अनंत ज्ञानी व परम सुखी हैं, उनकी जगत में जय हो।
May Bodiless pure souls (SIDDHAS) who are devoid of all the eight karmas; who is free from the vicious circle of transmigration; and who perfectly perceive the significance of all the metaphysics (Sakal-Tatvartha) bless me with Salvation.(8)
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पंच–महव्वय–तुंगा, तक्कालिय–सपर–समय–सुदधारा।
णाणा–गुण–गण–भरिया, आइरिया मम पसीदंतु ॥9॥
पञ्चमहाव्रततुङ्गाः, तत्कालिकस्वपरसमयश्रुतधाराः।
नानागुणगणभरिता, आचार्या मम प्रसीदन्तु ॥9॥
व्रत पालन पाँचों करें, समयरूप श्रुत ज्ञान।
आचार्य गुण से भरे, कृपा करो मम दान ॥1.1.9.9॥
पाँच व्रतों से उन्नत व स्व-पर श्रुत ज्ञान के ज्ञाता अनेक गुणों से परिपूर्ण आचार्य मुझ पर प्रसन्न हों।
May the heads of the saints (Acaryas) – who are highly elated owing to the adoption of five full vows, who are well conversant with the scriptures that deal with pure and impure souls; and
who are full of various attributes be pleased with me.(9)
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अण्णाण–घोर–तिमिरे, दुरंत–तीरम्हि हिंडमाणाणं।
भवियाणज्जोययरा, उवज्झया वर–मदिं देंतु ॥10॥
अज्ञानघोरतिमिरे, दुरन्ततीरे हिण्डमानानाम् ।
भव्यानाम् उद्योतकरा, उपाध्याया वरगतिं ददतु ॥10॥
ज्ञानहीन चहुँ ओर हैं, करते ज्ञान प्रकाश ।
उपाध्याय दो सत्य गति, भटकूँ ना आकाश ॥1.1.10.10॥
अज्ञान रूपी घोर अंधकार में जहाँ किनारा प्राप्त करना कठिन है उसमें घूमते हुए भव्यों को ज्ञान का प्रकाश देने वाले उपाध्याय मुझे, उत्तम मति प्रदान करें।
May the great saints (Upadhyaya), who are enlightened souls, capable of attaining salvation, -bless me with light of wisdom.(10)
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थिर–धरिय–सील–माला, ववगय–राया जसोह–पडिहत्था ।
बहु–विणय–भूसियंगा, सुहाइं साहू पयच्छतु ॥11॥
स्थिरधृतशीलमाला व्यपगतरागा यशओघप्रतिहस्ताः ।
बहुविनयभूषिताङ्गाः, सुखानि साधवः प्रयच्छन्तु ॥11॥
शीलरूप है राग नहीं, यश का है अंबार ।
विनय अलंकृत जीवन है, साधु सुखद मम्वार ॥1.1.11.11॥
शीलरूपी माला स्थिर रूप से धारण करने वाले, रागरहित, यशस्वी, विनय से भूषित, यश से परिपूर्ण तथा विनयशील साधु मुझे सुख प्रदान करें।
May the saints who are ever adorable with the moral conduct and character, who are un-attached; who are extremely renowned; and whose bodies are decorated with excellent modesty bless me with bliss. (11)
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अरिहंता असरीरा, आयरिया तह उवज्झया मुणिणो ।
पंचक्खर–णिप्पण्णो, ओंकारो पंच–परमेट्ठी ॥12॥
अर्हन्तः अशरीराः, आचार्या उपाध्याय मुनयः ।
पञ्चाक्षरनिष्पन्नः, ओमारः पञ्च परमेष्ठिनः॥12॥
अरिहंत,सिद्ध आचार्य हैं, उपाध्याय, मुनि सार ।
पंचाक्षर मिलकर सदा, पंच परम ओंकार ॥1.1.12.12॥
अरिहंत, अशरीरी (सिद्ध), आचार्य, उपाध्याय तथा मुनि- इन पाँचो के प्रथम पाँच अक्षरों (अ+अ+आ+उ+म्) को मिलाकर ॐ बनता है जो पंचपरमेष्ठी का द्योतक है।
Arihant, Asariri, (Siddha) Acharya, Upadhyaya and Munis, the five supremebeings are found in this word OM. (12)
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उसह–मजिय च वंदे, संभव–मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउम–प्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥13॥
सुविहिं च पुप्फयंत, सीयल सेयं च वायुपुज्जं च।
विमल–मणंत भयव धम्मं संतिं च वंदामि ॥14॥
कुंथुं च जिणवरिंदं, अरं च मल्लि च सुव्वयं च मणिं ।
वंदामि रिट्ठणेमिं, तह पासं वड्ढामाणं च ॥15॥
ऋषभमजितं च वन्दे, संभवमभिनन्दनं च सुमतिं च ।
पद्मप्रभं सुपार्श्व, जिनं च चन्द्रप्रभं वन्दे ॥13॥
सुविधिं च पुष्पदन्तं, शीतलं श्रेयांसं वासुपूज्यं च ।
विमलम् अनन्तभगवन्तं, धर्म शान्तिं च वन्दे ॥14॥
कुन्थुंचजिनवरेन्द्रम्, अरं च मल्लिं च सुव्रतं च नमिम् ।
वन्दे अरिष्टनेमिं, तथा पार्श्व वर्धमान च ॥15॥
ऋषभ, अजित, संभव श्री, अभिनंदन, सुमति नाथ ।
पदम प्रभु, सुपारस नमु, चन्द्र प्रभु सर हाथ॥1.1.13.13॥
सुविधि, शीतल श्रेयांस श्री, वासुपूज्य का हाथ ।
विमल, अनन्त, धर्म भगवन्त, वंदन शांति नाथ ॥1.1.14.14॥
कुन्थु नाथ, अर, मल्लि श्री, सुव्रत, नमीसुजान ।
अरिष्टनेमि, पारस नमन, महावीर भगवान॥1.1.15.15॥
मैं ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पद्यप्रभु, सुपार्श्व तथा चन्द्रप्रभु को वन्दन करता हूँ।
मैं सुविधि (पुष्पदन्त), शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति को वन्दन करता हूँ।
मैं कुन्थू, अर, मल्लि, मुनिसुन्नत, नमि, अरिष्टनेमि, पार्श्व तथा वर्धमान को वन्दन करता हूँ।
I bow to Rsabha, Ajit Sambhava, Abhinandan Sumsti, Padma- Prabhu, Suparava, Chandra-Prabhu Suvidhi (Puspa-Danta), Sitala Sreyance, Vashupujya, Vimala, Anantan, Dharma, Shanti, Kunthu, Ara, Malli, Munisuvrita, Nami, Arista-nami, Parsva and Vardhaman. (13, 14, 15)
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चंदेहि णिम्मलयार, आइचेहिं म अहियं पयासंता ।
सायरवरगभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥16॥
चन्द्रैर्निर्मलतरा, आदित्यैः अधिकं प्रकाशमानाः ।
सागरवरगम्भीराः, सिद्धाः सिद्धिं मम दिशन्तु॥16॥
चंद्र से निर्मल अधिक, रवि से प्रकाशवान ।
सागर से गहरे अधिक, सिद्ध हो मुक्ति प्रदान ॥1.1.16.16॥
चन्द्र से अधिक निर्मल, सूर्य से अधिक प्रकाश करने वाले, सागर की भाँति गंभीर सिद्ध पुरुष मुझे मुक्ति प्रदान करे।
May the Siddhas (or the Liberated Souls) who are more immaculate than the moons, brighter than the sun and more serene than the oceans, show me the path of liberation. (16)
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