१९. अष्टावक्र महागीता
जनक उवाच
तत्त्वविज्ञानसन्दंश – मादाय हृदयोदरात् ।
नानाविधपरामर्श – शल्योद्धार: कृतो मया ॥
तत्व ज्ञान की है चिमटी, मन में शूल हज़ार ।
अन्तरमन बस छाँट लो, कर दी भूल सुधार ॥19-1॥
__________________________________________
क्व धर्म: क्व च वा काम: क्व चार्थ: क्व विवेकिता।
क्व द्वैतं क्व च वाऽद्वैतं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे ॥
क्या धर्म, क्या काम है, अर्थ विवेक न सार ।
द्वैत-अद्वैत है क्या यहाँ, स्थित स्वयश आकार॥19-2॥
__________________________________________
क्व भूतं क्व भविष्यद् वा वर्तमानमपि क्व वा ।
क्व देश: क्व च वा नित्यं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे ॥
क्या भविष्य क्या भ्ाूत है, वर्तमान क्या भान।
क्या देश क्या काल यहाँ, निज महिमा में जान ॥19-3॥
__________________________________________
क्व चात्मा क्व च वानात्मा क्व शुभं क्वाशुभं तथा।
क्व चिन्ता क्व च वाचिन्ता स्वमहिम्नि स्थितस्य मे ॥
क्या आत्मा क्या अनात्मा, शुभ या अशुभ समान।
क्या चिंता क्या है नहीं, निज महिमा में जान ॥19-4॥
__________________________________________
क्व स्वप्न: क्व सुषुप्तिर्वा क्व च जागरणं तथा।
क्व तुरियं भयं वापि स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥
क्या स्वप्न, क्या निद्रा है, जागे एक समान।
भय है क्या, क्या श्ाून्य है, निज महिमा में जान॥19-5॥
__________________________________________
क्व दूरं क्व समीपं वा बाह्यं क्वाभ्यन्तरं क्व वा।
क्व स्थूलं क्व च वा सूक्ष्मं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे ॥
क्या दूर क्या पास है, भीतर बाह्य समान।
क्या छोटा, क्या है बड़ा, निज महिमा में जान ॥19-6॥
__________________________________________
क्व मृत्युर्जीवितं वा क्व लोका: क्वास्य क्व लौकिकं ।
क्व लय: क्व समाधिर्वा स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥
जन्म मृत्यु आखिर है क्या, लोक-अलोक समान।
लय है क्या, समाधि क्या, निज महिमा में जान॥19-7॥
__________________________________________
अलं त्रिवर्गकथया योगस्य कथयाप्यलं ।
अलं विज्ञानकथया विश्रान्तस्य ममात्मनि॥
तीन उद्देश्य निर्रथक है, योग कथा बेकार।
अर्थहीन विज्ञान कथन, स्थित आत्म विचार॥19-8॥
__________________________________________