Nectar Of Wisdom

कई बार डाक्टरों के मुख से या लोगों से सुना कि वायरल फ़िवर हो गया है, फला फला बीमारी वायरल से होती है। साइंस में ज़्यादा इंटरेस्ट न होने के कारण यह जानने की कोशिश नहीं की कि वायरल कैसे होता है या वायरस क्या होता है। कोविड१९ ने इतना उत्पात मचाया कि मैंने अपने पुत्र जो बायोलोजी में डाक्ट्रेट है उससे पूछा और गूगल सर्च से यह जानने की कौशिश की कि यह वायरस आख़िर होता क्या है। इसी दौरान बुक अड्डा में बुक रिव्यू करने का मेरा नम्बर लगा व जो पुस्तक रिव्यू करने के लिये सेलेक्ट हुई उसका नाम भी “गोड वायरस” है सो और अधिक वायरस के बारे में जानने की इच्छा हुई।   वायरस या जिसे हिंदी में विषाणु कहते है इसकी कुछ विशेषताएँ निम्न है। १। यह अतिसुक्ष्म होता है। सूई की नोक से भी हज़ार गुना या अधिक छोटा। २। यह जीव और निर्जीव के बोर्डर लाईन पर है। अपने आप उत्पत्ति नहीं करता। उसे कोई सजीव का साथ चाहिये होता है अपने आप को मल्टीप्लाय करने के लिये। ३। होस्ट या जीव मिल जाने पर उसकी क्षमताओं पर क़ब्ज़ा कर लेता है व विकराल रूप धारण कर होस्ट को पूरी तरह कन्ट्रोल कर उसे ख़त्म भी कर सकता है। ४। कुछ विषाणु शरीर के लिये लाभदायक भी होते है। अर्थात् यह दो तरह का हो सकता है। लाभदायक और हानिकारक। ५। अपने आपको अन्य जीवों में अपना साम्राज्य फैलाने के लिये इसे वेक्टर की ज़रूरत भी होती है। ६। यह हज़ारों साल तक सुप्त अवस्था में रह सकता है व जैसे ही उसे कोई होस्ट मिलता है यह जीवित हो उठता है व अपने पैर फैलाने चालू कर देता है।   इसी सब के बीच मेरा आध्यात्मिक अध्ययन भी चालू था। भग्वदगीता, अष्टावक्र गीता, समणसुत्तं आदि जो सभी कर्म दर्शन पर आधारित है। जैन दर्शन ने तो कर्म को कारमण वर्गणाओं की संज्ञा में ही रखा है अर्थात् कर्म एक अणु ही है जो अनादि काल से जीव अर्थात् आत्मा के संग अनन्त काल तक चलता रहता है। अगर मैं कर्म को वायरस कहूँ तो अनुचित नहीं होगा और अगर विषाणु भी कहूँ तो अतिसयोक्ति नहीं होगी। ऊपर लिखी छहो विशेषताएँ कर्म रुपी अणु में है।   कर्मरुपी विषाणु ही शुद्ध आत्मा को बांध के रखता है और चार गति व चौरासी लाख योनियों में भटकाता रहता है। जब तक मोक्ष प्राप्ति नहीं होती पीछा नहीं छोड़ता। जैसे ही उसे कोई शरीर मिलता है चाहे वनस्पति, जानवर, मनुष्य या देव का उदय में आकर नाच नचाता रहता है। इसके भी पाप और पुण्य दो प्रकार है व लाखों सालो तक सुप्त अवस्था में रह कर जागृत हो जाता है। इससे बचने के उपाय है तप, संयम, दान, स्वाध्याय और ध्यान। भारतीय दर्शन में कर्म रुपी विषाणु पर बहुत ही गहराई में शोध किया है। अधिक जानकारी के लिये हिन्दुइजम, जैनिजम व बौद्ध दर्शन को पढ़ें।
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